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Self-Regulation is Must For OTT Platform-स्व-नियमन  निकाय में नहीं रहेगा सरकार का नुमाइंदा

एएबी समाचार ।
केंद्रीय सूचना और प्रसारण मंत्री प्रकाश जावडेकर ने ऑल्ट बालाजी, हॉटस्टार, एमेजॉन प्राइम, नेटफ्लिक्स, जियो, ज़ी5, वायाकॉम 18, शेमारू, एमएक्स प्लेयर आदि सहित विभिन्न ओटीटी प्लेटफार्मों के प्रतिनिधियों के साथ बातचीत की।

इस उद्योग के प्रतिनिधियों को संबोधित करते हुए केंद्रीय मंत्री ने जिक्र किया कि सरकार ने अतीत में ओटीटी कंपनियों के साथ कई दौर की बातचीत की है और स्व-नियमन की जरूरत पर बल दिया है।

श्री जावडेकर ने कहा कि उन्हें सिनेमा और टीवी उद्योग के प्रतिनिधियों ने कहा है कि जहां उनके लिए नियमन मौजूद हैं, वहीं ओटीटी उद्योग के लिए कोई नियमन नहीं है। इस प्रकार यह निर्णय लिया गया कि सरकार ओटीटी कंपनियों के लिए प्रगतिशील संस्थागत तंत्र लेकर आएगी और स्व-नियमन के विचार के साथ उनके लिए एक बराबरी की जमीन विकसित करेगी। मंत्री महोदय ने सराहना की कि कई ओटीटी प्लेटफार्मों ने इन नियमों का स्वागत किया है।

इस उद्योग के प्रतिनिधियों को नियमों के प्रावधानों के बारे में सूचित करते हुए श्री जावडेकर ने कहा कि उन्हें केवल जानकारी का खुलासा करने की आवश्यकता है, उन्हें मंत्रालय के साथ किसी भी प्रकार का पंजीकरण करने की कोई जरूरत नहीं है। मंत्री महोदय ने कहा कि इसके लिए एक फॉर्म जल्द ही तैयार हो जाएगा। इसके अलावा, ये नियम सेंसरशिप के किसी भी रूप के बजाय विषय वस्तु के आत्म वर्गीकरण पर ही ध्यान केंद्रित करते हैं। इसके अलावा ओटीटी प्लेटफार्मों से उम्मीद की जाती है कि वे एक प्रभावी शिकायत निवारण तंत्र विकसित करेंगे।

अफवाहों को खारिज करते हुए केंद्रीय मंत्री ने स्पष्ट किया कि इस स्व-नियमन निकाय में कोई भी सदस्य सरकार द्वारा नियुक्त नहीं किया जाएगा।

इन नियमों के अंतर्गत सरकार की शक्ति पर बात करते हुए माननीय मंत्री ने बताया कि जो शिकायतें स्व-नियमन के स्तर पर अनसुलझी रहेंगी उन्हें देखने के लिए सरकार अंतर विभागीय समिति बनाएगी।

इस उद्योग के प्रतिनिधियों ने नए नियमों का स्वागत किया और अपनी अधिकांश चिंताओं को दूर करने के लिए मंत्री महोदय का शुक्रिया अदा किया। अंत में श्री जावडेकर ने कहा कि उनका मंत्रालय इस उद्योग के किसी भी प्रश्न या स्पष्टीकरण के लिए हमेशा तैयार है।



51st-International-Film-Festival-1970-के-दशक-में-फिल्मों-में-नई-तकनीक-का-आगाज-हुआ-था-राहुल-रवैल

एएबी समाचार ।
फिल्म निर्माता राहुल रवैल ने भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव-आईएफएफआई के 51वें संस्करण में आज वर्चुअल वार्तालाप के दौरान बताया कि हिंदी सिनेमा के इतिहास में 1970 के दशक में नए विचारों, नए प्रयोगों और एक्शन फिल्मों की एक नई शैली का प्रवाह देखा गया। यह समय ऐसा था जिसे गैर-पारंपरिक फिल्मों के लिए स्वर्णिम वर्ष कहा जाता है, क्यूंकि इसी दौरान भारतीय सिनेमा में नई तकनीक का आगाज भी हुआ था। उन्होंने आईएफएफआई में आज 50, 60 और 70 के दशक में बनने वाली फिल्मों के निर्माण पर चर्चा की, राहुल रवैल ने बीते दौर में हिंदी फिल्म उद्योग के विकास की अद्भुत यात्रा के बारे में वर्चुअल रूप से भाग लेने वाले प्रतिनिधियों से चर्चा की। 

अपने सिनेमाई सफर को याद करते हुए फिल्म-निर्माता राहुल रवैल ने कहा कि, “उन्होंने 60 के दशक के अंत से फिल्म जगत में काम करना शुरू कर दिया था और दिग्गज राज कपूर के सहायक के रूप में अपना करियर प्रारंभ किया। उन्होंने बताया कि, के. आसिफ और महमूद जैसे कलाकारों ने 60 के दशक में शानदार सेटों के साथ फिल्में बनाईं, इसके बाद 70 के दशक में बाबूराम ईशारा की फिल्म 'चेतना' की लोकेशन पर हुई शूटिंग 25 से 30 दिनों में ही पूरी कर ली गई, जिससे हिंदी सिनेमा में एक क्रांति की शुरुआत हुई और उन दिनों ये बात बेहद असाधारण थी”।
 
राहुल रवैल ने कहा कि, विजय आनंद की 'जॉनी मेरा नाम' का जिक्र किया जिसमें देव-आनंद मुख्य अभिनेता थे। उस फिल्म ने भी 70 के दौर में एक्शन-ओरिएंटेड, बड़े प्लॉट वाली फिल्मों के एक नए रूप को जन्म दिया। जिस समय हिंदी फिल्म-उद्योग में कारोबार तेजी से बढ़ रहा था तब 70 के दशक में फिल्म जंजीर में अमिताभ बच्चन द्वारा निभाए गए किरदार के रूप में एक 'अपरंपरागत नायक' देखा गया था। इसने 'एंग्री यंग मैन’ की छवि को दर्शकों के सामने रखा और फिर एक नया ब्रांड स्थापित हुआ। 
 
 
राहुल रवैल ने बताया कि, 1973 में नासिर हुसैन की फिल्म ‘यादों की बारात’ आई, जिससे एक बेहतरीन स्क्रिप्ट के साथ सलीम-जावेद की जोड़ी का आगमन हुआ। राज कपूर ने 'बॉबी’ के ज़रिये ऋषि कपूर और डिंपल कपाड़िया को पेश किया, इस फिल्म ने भी एक नया चलन शुरू किया। उन्होंने कहा कि, "ये फिल्में एक बदलाव ला रही थीं और फिल्म बनाने के पूरे तालमेल में इजाफा कर रही थीं।"
 
 ऋषि कपूर को याद करते हुए श्री रवैल कहते हैं, उन दिनों वह कम उम्र के अभिनेता थे। फिल्म स्टार जीतेन्द्र भी हिंदी सिनेमा की दुनिया में एक नई अपील और नई शैली के साथ बड़े पर्दे पर सामने आए। वर्चुअल वार्तालाप के इस मौके पर राहुल रवैल ने फिल्म दीवार को भी याद किया - यह शानदार ढंग से बनाई गई एक फिल्म थी जो यश चोपड़ा को उस दौर में महान ऊंचाइयों पर ले गई। यश चोपड़ा त्रिशूल जैसी और भी यादगार फिल्मों के साथ आगे बढ़े। 
 

श्री रवैल ने याद करते हुए बताया कि, “उन दिनों फिल्मी सितारों के बीच एक स्वस्थ प्रतिस्पर्धा हुआ करती थी। हर अभिनेता एक-दूसरे से बढ़-चढ़ कर काम कर रहा था, लेकिन कोई प्रतिद्वंद्विता नहीं होती थी।" एक मज़ेदार घटना को याद करते हुए उन्होंने बताया कि, एक बार तीन धुरंधर अभिनेता राज कपूर, देव आनंद और दिलीप कुमार किसी रेस्तरां में मिले, वे एक-दूसरे के पास आए और गुज़रे दिनों तथा एक-दूसरे की फिल्मों के बारे में अंतरंग दोस्तों की तरह बातें करने लगे।

श्री रवैल ने एक और दिलचस्प किस्सा सुनाया कि, किस प्रकार से महान सचिन देव बर्मन ने बड़ी विनम्रता से कहा था कि, 'लैला मजनू' के लिए संगीत देना उनके लिए सही नहीं है और इस काम के लिए उन्होंने मदन मोहन की सिफारिश की। एक शानदार फिल्म बनाने के लिए संगीत निर्देशक, महान गायक और गीतकार निर्देशक के साथ बैठकर कहानी को जानेंगे और अभिनेता भी इसमें सहयोग करेंगे, जिन्हें लिप-सिंक करना है। 

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फिल्म-निर्माता राहुल रवैल ने एक और महान फिल्म, एल. वी. प्रसाद की 'एक दूजे के लिए’ का भी ज़िक्र किया, जिसमें एक ऐसी प्रेम कहानी सामने लाई गई थी, “जहां नायक हिंदी नहीं बोल पाता था और केवल तमिल बोलता था जबकि नायिका केवल हिंदी में बात कर सकती थी, उसे तमिल नहीं आती थी”। उन्होंने कहा कि, "लोग आविष्कार कर रहे थे और विभिन्न प्रकार के नये-नये काम कर रहे थे"। दर्शकों को अलग - अलग प्रकार की नई फिल्मों का भी अनुभव हो रहा था। यह 80 के दशक में किया गया जब ज़्यादातर नए लोग सिनेमा में आए, हालांकि पुराने धुरंधर अभी भी वहां थे। 
 
80 के दशक में सुभाष घई और शत्रुघ्न सिन्हा जैसे दिग्गजों का आना देखा गया। जब उस वक़्त रवैल ने फिल्म अर्जुन को बनाया, तो एक नया चलन शुरू किया गया, जहां पर किसी कहानी को नहीं, बल्कि चरित्र को तवज्जो दी गई। राहुल रवैल ने उस याद को साझा करते हुआ बताया कि, जावेद अख्तर ने 8 घंटे में ही 'अर्जुन' की पटकथा लिखी थी। रवैल ने खलनायक की भूमिका के लिए लोकप्रिय अमजद खान को भी एक हास्य भूमिका में प्रस्तुत करने का। हालांकि कई लोग उनके इस फैसले के बारे में उलझन में थे, लेकिन राहुल रवैल ने अपने गुरु राज कपूर की सलाह को याद रखा कि 'एक महान स्क्रिप्ट हमेशा काम करेगी' और इसके साथ चलते चलो। 

अंत में, राहुल रवैल ने कहा कि, 70 और 80 का दशक वह दौर था जब भारतीय फिल्म उद्योग बहुत आगे बढ़ गया था और यह अभी भी बढ़ रहा है।

एएबी समाचार। केन्‍द्रीय सूचना और प्रसारण मंत्री श्री प्रकाश जावडेकर ने आज फिल्‍म दिखाने के लिए मानक संचालन प्रक्रिया (एचओपी) जारी की। फिल्‍मों के प्रदर्शन के लिए निवारक उपायों पर यह एसओपी स्‍वास्‍थ्‍य और परिवार कल्‍याण मंत्रालय के साथ परामर्श करके तैयार की गई है।


एसओपी जारी करते हुए श्री जावडेकर ने कहा कि गृह मंत्रालय के निर्णय के अनुसार 15 अक्‍टूबर, 2020 से सिनेमा हॉल फिर से खुलेंगे। इसके लिए सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने यह एसओपी तैयार की है।

   मार्गदर्शी सिद्धांतों में वे सामान्‍य सिद्धांत शामिल हैं, जो सभी आगंतुकों/कर्मचारियों की थर्मल स्क्रिनिंग, पर्याप्‍त शारीरिक दूरी, फेस कवर/मास्‍क का प्रयोग, बार-बार हाथ धोना, हैंड सैनिटाइजर का प्रावधान और फिल्‍मों के प्रदर्शन के सम्‍बन्‍ध में श्‍वास लेने सम्‍बन्‍धी शिष्‍टाचार सहित स्‍वास्‍थ्‍य और परिवार कल्‍याण मंत्रालय द्वारा दिए गए हैं। 

SOP For Film Theaters- हर शो के बाद सिनेमाघर को करना होगा सैनिटाइज़

मंत्रालय ने शारीरिक दूरी, नामित क्‍यूमार्कर्स के साथ प्रवेश और निकास, सैनिटाइजेशन, कर्मचारियों की सुरक्षा, न्‍यूनतम संपर्क सहित इस क्षेत्र में अधिसूचित अंतर्राष्‍ट्रीय प्रक्रियाओं को ध्‍यान में रखते हुए यह सामान्‍य एसओपी तैयार की है। बैठने की व्‍यवस्‍था कुल क्षमता की 50 प्रतिशत तक सीमित रहेगी। मल्‍टीप्‍लेक्‍स शो की टाइमिंग इस प्रकार विभाजित की जाएगी, ताकि उनके शो शुरू होने और समाप्‍त होने के समय अलग-अलग रहें। तापमान सेटिंग 24 डिग्री से 30 डिग्री सेंटीग्रेड की सीमा में रहेगी।

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 SOP For Film Theaters- कोविड-19 से बचाव सम्बन्धी फिल्म हर शो में तीन बार दिखाना होगी

मार्गदर्शी सिद्धांत और एसओपी का सभी राज्‍यों, अन्‍य हितधारकों तथा राज्‍य सरकारों द्वारा फिल्‍म का फिर से प्रदर्शन शुरू करते समय उपयोग किया जाएगा। फिल्‍मों का प्रदर्शन एक प्रमुख आर्थिक गतिविधि है और इसने देश के सकल घरेलू उत्‍पाद में काफी योगदान दिया है। मौजूदा कोविड-19 महामारी को देखते हुए यह महत्‍वपूर्ण है कि फिल्‍म प्रदर्शन गतिविधियों में लगे विभिन्‍न हितधारक अपने संचालन और गतिविधियां पुन: शुरू करते समय महामारी के प्रसार को रोकने के लिए उचित उपाय करें। मंत्री की मुताबिक कोविड-19 से बचाव सम्बन्धी फिल्म फिल्म शुरु होने की पहले, मध्यांतर व समाप्त होने के समय दिखाना होगी ।


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    गृह मंत्रालय ने अपने 30 सितम्‍बर, 2020 के आदेश द्वारा 15 अक्‍टूबर, 2020 से कंटेनमेंट जोन से बाहर के क्षेत्रों में 50 प्रतिशत बैठने की क्षमता के साथ सिनेमा घरों, थियेटरों और मल्‍टीप्‍लेक्‍स को फिर से खोलने के लिए दिशा-निर्देश जारी किए हैं।

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Class-of-83-saga-of-thrill-and-suspense-पुलिस-राजनीति-जुर्म-के-नापाक-रिश्तों-को-बेनकाब-करती-है-यह-फिल्म

एएबी समाचार। 
हिंदी फ़िल्मी दुनिया में वैसे तो पुलिस, राजनेताओं व  अपराधियों के भयावह गठजोड़ को उजागर करने वाली सैकड़ों फ़िल्में बनी हैं लेकिंन फिल्म क्लास ऑफ 83 की बात कुछ और ही है । इस  फिल्म का कथानक बीती शताब्दी के 80 दशक के वर्ष 1980 से 1983 के दौरान का है । जिसमे में यह बेहद प्रभाव पूर्ण तरीके से दिखाया गया है कि पुलिस की प्रशिक्षण अकादमियां जो बहुत हद तक अफसरों की बिरादरी में सजा के तौर पर दी जाने वाली पदस्थापना के केंद्र होतीं हैं । जिसके चलते नए भर्ती हुए अफसरों व कर्मियों को इन अफसरों की हताशा से भरे रवैयों के बीच विभागीय तौर-तरीके सीखने पड़ते हैं ।
 

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फिल्म निर्माता अतुल सब्बरवाल ने हुसैन ज़ैदी के लिखे उपन्यास  के आधार पर   पुलिस , अपराध और राजनीति के उन काली करतूतों को उजागर किया है जो देश के पुलिस तंत्र पर नाकारा बनाने में अहम् भूमिका अदा करती है । विजय सिंह ( बॉबी देओल ) को एक राजनेता की नाराजगी के चलते ही  नासिक की ऐसी ही पुलिस अकादमी का डीन पदस्थ कर दिया जाता है । विजय सिंह प्रशिक्षण अकादमी की प्रशिक्षुओं के बीच के बीच हमेशा चर्चाओं में रहते थे लेकिन कभी नजर नहीं आते थे ।
 

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प्रशिक्षण अकादमियों में  नये भर्ती हुए सब इंसपेक्टर्स को  ट्रेनिंग में सबसे पी टी मास्टर से ज्यादा निष्ठुर शख्स और कोई नजर नहीं आता है । फिल्म में नासिक की प्रशिक्षण अकादमी में ऐसा ही पी टी मास्टर है मंगेश ( विश्वजीत प्रधान ) जिसके खूंखार रवैये से परेशान होकर तीन प्रशिक्षु अफसर जाधव , सुर्वे और शुक्ला ( निनाद , प्रार्थविक और भूपेन्द्र ) मंगेश को सबक शिखने की लिए रात में चुपके से उसके कमरे में घुसते हैं पर वहाँ पहले से मौजूद डीन इन सबको तो तबियत से धुन देता है |
 

तीनों प्रशिक्षुओं  का झूठ  दूसरे दिन की क्लास में बेनकाब हो जाता है जब डीन विजय सिंह खुद क्लास लेता है | लेकिन कुछ समय बाद प्रशिक्षक मंगेश डीन को बताता है कि ये तीनों शरारती प्रशिक्षु परम्परागत ट्रेनिंग में सबसे पीछे चल रहे हैं ।
 

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 तब ही विजय सिंह  दिमाग में एक विचार आता है कि परंपरागत प्रशिक्षण में फिसड्डी साबित हो रहे पाँचों में कुछ अलग गुण हैं । यह पांचो दोस्ती निभाने में एक नम्बर हैं और इनमे सच कहने  का दम है और  बहादुर भी हैं और ये बातें पढ़ाकू और  बनावटी अफ़सरों में नहीं होती । डीन अपने विचार को अमली जमा पहनने के लिए इन्हें उस अंदाज में प्रशिक्षित करने की योजना बनता है जिससे इनको राजनीति और अपराध के गंठजोड़ से बम्बई को मुक्त कराने में लगाया जा सके ।
 

डीन के मित्र राघव ( ज़ोय सेनगुप्त ) जो उस समय  राज्य का पुलिस प्रमुख था को उसका यह आईडिया पसंद नहीं आता है वह  विजय को उलाहना देता है कि तुम अपने बेटे को तो पुलिस अफ़सर बना नहीं पाये ,पत्नी को भी खो चुके हो अब इन फिसड्डियों को किस आशा से मौक़ा दे रहे हो ?  विजय कहता है को वो उन्हें नहीं खुद को एक और मौक़ा दे रहा है | इसके बाद इन  प्रशिक्षियू को नए तरह की पाठ्यक्रम के मुताबिक प्रशिक्षण दिया जाने लगता है  और ये मुम्बई की पुलिस फ़ोर्स में सम्मिलित हो जाते हैं ।
 

अस्सी के दशक में मुम्बई में मज़दूरों की हड़ताल , बंद होती मिलें और तस्करी के माफिया का राजनीति से सम्बंध का दौर दिखाया गया है जिसमें ये अफ़सर खास तरह  प्रशिक्षण  के कारण जल्द ही एक अलग पहचान बना लेते हैं पर जिसकी आशा थी उससे विपरीत इन माफिया के इशारों पर एनकाउंटर का खेल रचने लगते हैं |
 

इसी दौरान  विजय सिंह को एक बार फिर  मुम्बई की कमान सौंपी जाती है और वह दुबारा  अपने  बरसों पुराने अधूरे छूट गए मकसद को पाने में लग जाता है । क्या वो इसमें सफल हो पाता है और क्या राह से भटके उसके ट्रेनी अफ़सर उसका साथ दे पाते हैं इन सब को जानने में लिए आपको ये फ़िल्म देखनी होगी जो , ज़ाहिर है , ओटीटी प्लेटफ़ार्म पर ही उपलब्ध है , क्योंकि कोरोना से थिएटर तो बंद हैं
 

कोरोना महामारी के दौर में सभी का थिएटर के बजाए घर में फ़िल्म देखने का नया तजुर्बा मिल रहा है । सामान्यतः घर पर फिल्म देखते वक़्त लोग थिएटर में फिल्म देखने की तुलना में एक से ज्यादा इंटरवल कर लेते हैं लेकिन इस फिल्म की यह खासियत है की  इसको एक बार देखना शुरू करने के बाद हो सकता है की आपको परंपरागत एक मध्यांतर करने का भी ख्याल न आये   फ़िल्म की कहानी बड़ी दिलचस्प है और  देखने योग्य है |

दर्शकों को बंधकर रखने की फिल्म की खूबी के पीछे पार्श्व संगीत की भी अहम् रहा । संगीत का उतार चढाव दर्शको को भावनाओं के हिंडोले में खूब रोमांचा का अहसास करता है । सहयोगी कलाकारों के अभिनय दमदार है  लेकिन मुख्य किरदार के भी भावप्रवण अभिनय ने भी नई ऊंचाइयों को छुआ है ।

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 एएबी समाचार । चाहे  बरेली के बाज़ार में झुमका गिरने की बात हो , रूठों को माने की मनुहार हो , या प्रिय को जीवन की डोर से बाँधने की बात हो जब -जब भी ये गीत कानों में पड़ेंगे तब -तब इस अदाकारा को चाहने वाले यह कहने से खुद को रोक नहीं पाएंगे की -मैं देखूं जिस और सखी रे सामने मेरे .... आ जातीं हैं अभिनेत्री साधना शिवदासानी । जी हाँ आज उनकी जयंती के दिवस उन्हें याद किये बिना कैसे रहा जा सकता है ।
 

भूमिका चाहे चुलबुली हसीना की रही हो या फिर संजीदा युवती की उन्होंने बड़ी खूबी से निभायी । हिंदी फ़िल्मी दुनिया के शोमैन कहे जाने वाले राजकपूर द्वारा  फिल्म श्री 420 में एक छोटी से भूमिका दिए जाने की बाद  साधना के लिए उनकी अदाकारी की कद्रदान मिलने लगे ।
 

उनकी अदाकारी के विभिन रंगों को देखकर फिल्म निर्माताओं ने उनको फिल्मो में अहम् भूमिकाएँ देना शुरू कर दिया । एक फूल दो माली, मेरे मेहबूब, आरजू, वक्त, वो कौन थी, मेरा साया, वंदना, अमानत, गीता मेरा नाम' उल्फत,लव इन शिमला,  बदतमीज, इश्क पर जोर नहीं, परख, प्रेमपत्र,हम दोनों, गबन, जैसी फ़िल्में की सफलताओं में उनकी अदाकारी के योगदान की चर्चा होने लगी ।
 
दो सितंबर 1941 में जन्मी साधना शिवदासानी की मां लालीदेवी और पिता शेवाराम थे। विभाजन के बाद जब उनका परिवार भारत आया उनकी उम्र महज 6 वर्ष थी । साधना ने रूमानी, रहस्मयी फिल्मों के अलावा  कला फिल्मों में भी अभिनय किया । साधना कट के नाम से चर्चित हुई उनकी हेयर स्टाइल, का जिक्र किये बिना उनका परिचय पूरा माना  ही नहीं जा सकता है । फिल्मो में उनको ख़ास तरह के पहनावा में ज्यादा पसंद किया गया । चूड़ीदार-कुर्ता, शरारा, गरारा, कान में बड़े झुमके, बाली और बेसुध करने वाली मुस्कान ने उन्हें एक अलग तरह की ही पहचान दी ।
 

साधना जिन प्रमुख अदाकारों के साथ काम किया उनमें फिरोज खान, सुनील दत्त, मनोज कुमार, शम्मी कपूर, संजय खान ,राजेन्द्र कुमार, राज कपूर, जॉय मुखर्जी, देव आनंद, , शशि कपूर, किशोर कुमार, व वसंत चौधरी आदि का नाम आता है ।
 

अभिनेत्री साधना के करीबियों के मुताबिक वो  हमेशा सार्वजनिक आयोजनों से दूरी बनाये रखना पसंद करतीं    थीं । फ़िल्मी दुनिया की चमक-दमक भरी पार्टियों में इस चमकदार अभिनेत्री को अक्सर अनुपस्थित ही पाया जाता  था ।
 

लेकिन जब कभी भी उन पर फिल्माए गए  गीत - झुमका गिरा रे बरेली के बाज़ार में , अजी रूठा कर के कहाँ जाईये गा , ओ सजना बरखा बहार आई , अभी न जाओ छोड़कर , तेरा मेरा प्यार अमर ..., तुझे जीवन की डोर से बाँध लिया है ..गोरे-गोरे चाँद से मुख पर काली -काली आँखे ...के बोल जब भी किसी के कानों में पड़ते थे उनके जेहन में साधना का मुस्कराता शरारती चेहरा न उभरता हो ऐसा कम ही होता था । आज साधना भले दुनिया में नहीं पर उनके द्वारा निभाए गए किरदारों के बहाने वो सदा अपने चाहने वालों की यादों में मौजूद रहेंगी ।

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एएबी समाचार। केंद्रीय मंत्री  प्रकाश जावड़ेकर के मुताबिक मीडिया प्रोडक्शन को देश के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में व्‍यापक योगदान देने  वाली एक बेहद खास आर्थिक गतिविधि    है । फिल्म और टेलीविजन सेक्‍टर बड़ी संख्या में लोगों को रोजगार देता है । इसलिए मीडिया प्रोडक्शन से जुड़ी गतिविधियों को शुरू किया जाना जरूरी है । 

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  Media Production : कामकाज के अंतर्राष्ट्रीय मानदंडों की अनुरूप करे काम

मंत्री ने कामकाज सम्बन्धी दिशा-निर्देश जारी करते हुए कहा, ‘एसओपी अंतरराष्ट्रीय मानदंडों के अनुरूप है । इससे कोरोना वायरस के कारण तकरीबन 6 माह से बेहद प्रभावित उद्योग को बड़ी राहत मिलेगी और लोग मंत्रालय के इस कदम का स्वागत करेंगे ।
 

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Media Production :अर्थव्यवस्था के विकास को देगा गति

सरकार के इस कदम का उद्देश्य अर्थव्यवस्था के विकास को नई गति प्रदान करना भी है ।  लेकिन इसके लिए अवश्यक है की  महामारी के संक्रमण को काबू में रखते हुए ही इस कार्य क्षेत्र से जुड़े लोग अपने काम शुरू करें ।
सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के परामर्श से मीडिया प्रोडक्शन के लिए निवारक उपायों पर मार्गदर्शक सिद्धांतों के साथ-साथ मानक परिचालन प्रक्रियाएं (SOP-Standard Operating Processor) भी तैयार की   हैं ।  
 

 Media Production :ज्यादा जोखिम वाले कर्मचारियों का रखें विशेष ख्याल

केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री  प्रकाश जावड़ेकर ने  इन सिद्धांतों का खुलासा करते हुए बताया कि ज्‍यादा जोखिम वाले कर्मचारियों को अतिरिक्त सावधानियां बरतनी होंगी । इसी तरह फेस कवर/मास्क पहनना होगा, बार-बार हाथ धोना पड़ेगा, हैंड सैनिटाइजर, इत्‍यादि की व्‍यवस्‍था करनी होगी और इसके साथ ही विशेषकर मीडिया प्रोडक्शन के संबंध में साँस लेने -छोड़ने  से जुड़ी तहजीब या नियम-कायदों को ध्‍यान में रखना होगा।

Media Production :भौतिक दूरियां बनाये रखें

 मंत्रालय ने मीडिया क्षेत्र में अधिसूचित अंतर्राष्ट्रीय प्रथाओं या तौर-तरीकों को ध्यान में रखते हुए सामान्य एसओपी तैयार की हैं जिनमें सामाजिक या भौतिक दूरी बनाए रखने खास जोर दिया गया है । इसके अलावा इसमें शूट वाले स्थानों के लिए निर्दिष्‍ट प्रवेश एवं निकासी मार्गों की व्‍यवस्‍था करना, सैनिटाइजेशन, कर्मचारियों की सुरक्षा, न्यूनतम संपर्क सुनिश्चित करना और क्‍वारंटाइन/आइसोलेशन सहित गृह मंत्रालय द्वारा जारी यात्रा संबंधी दिशा-निर्देशों का पालन करना शामिल हैं ।
 

Media Production : कैमरे के सामने मौजूद अभिनेताओं के अलावा सभी पहने मास्क

अंतर्राष्ट्रीय प्रथाओं के अनुसार, कैमरे के सामने मौजूद अभिनेताओं को छोड़कर अन्‍य सभी कलाकारों और शूटिंग करने वाली टीम के सदस्‍यों के लिए फेस मास्क अनिवार्य किया गया है । मीडिया प्रोडक्शन फिर से शुरू करते समय सभी राज्य सरकारों एवं अन्य हितधारकों द्वारा मार्गदर्शक सिद्धांतों और एसओपी का उपयोग किया जा सकता है। मंत्री ने उम्मीद जताई कि सभी राज्य मानक संचालन प्रक्रिया  ‘एसओपी’ को स्वीकार करेंगे एवं इसे लागू करेंगे तथा आवश्‍यकता पड़ने पर कुछ अन्‍य शर्तों को इसमें जोड़ देंगे । 

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Amitabh_Bachchan_tests_covid-19_positive
एएबी समाचार ।
महाराष्ट्र में कोविड-19  का कहर आम -ओ -खास सभी को अपनी गिरफ्त में लेता जा रहा है शनिवार को  बॉलीवुड के सुपर स्टार अमिताभ बच्चन ने भी  अपने ट्विटर हैंडल पर बताया है कि वो भी कोरोना पॉजिटिव हो गए हैं । उन्होंने अपनी इस ट्वीट में " पिछले दस दिनों में जाओ लोग मेरे  करीब रहे हैं  विनम्रता पूर्वक निवेदन वो सभी लोग कृपया कोरोना का परीक्षण करा लें । अमिताभ बच्चन की सुपुत्र अभिषेक बच्चन का कोविड -19 परीक्षण भी पॉजिटिव आया है ।



अमिताभ बच्चन की इस ट्वीट के सार्वजनिक होते ही उनके चाहने वालों में हडकंप सा मच गया । उनके ट्विटर हैंडल पर उनके जल्दी स्वस्थ हो जाने की प्रार्थना करने वालों का तांता लग गया । उनके शीघ्र स्वस्थ्य होने की कामना करने वालों में दक्षिण भारत के सुपर स्टार माने जाने वाले अदाकार महेश बाबू , फिल्म अभिनेत्री सोनम कपूर , रिपब्लिक चैनल की प्रमुख अर्नव गोस्वामी , ममूटी ,पहलवान गीता फोगोत , उद्योगपति नवीन जिंदल , पाकिस्तान की क्रिकेट खिलाडी शोअब अख्तर , फिल्म अभिनेत्री  कंगना रानौत ,फिल्म निर्माता  बोनी कपूर और उनका एक बहुत बड़ा प्रशंसक वर्ग शामिल है ।

अमिताभ बच्चन को शनिवार की शाम को मुंबई के नानावटी अस्पताल में भर्ती कराया गया । जहाँ उनका कोविड -19 का परीक्षण पॉजिटिव आया ।

अमिताभ बच्चन हाल ही में  सुजीत सरकार की फिल्म गुलाबो - सिताबो में आयुष्मान खुराना के साथ दर्शकों की सामने आई थे । इस फिल्म का प्रदर्शन ओटीटी प्लेटफार्म amazon प्राइम वीडियोस पर हुआ था । आने वाले समय में उनकी कुछ और फिल्मे - झुण्ड , चेहरे और ब्रम्हास्त्र  भी प्रदर्शित होने वाली हैं ।

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