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सरकार ने IN-SPACe के तहत अंतरिक्ष क्षेत्र के लिए 1,000 करोड़ रुपये के उद्यम पूंजी निधि (Venture Capital Fund) को मंजूरी दी है। अंतरिक्ष क्षेत्र में स्टार्टअप को निधि देने के लिए 5 साल में धीरे-धीरे निधि का इस्तेमाल किया जाएगा।
 

🗼भारत का विनिर्माण पीएमआई सितंबर में 56.5 के मुकाबले बढ़कर अक्टूबर में  57.4 हो गया, और सेवा पीएमआई सितंबर में 57.7 के मुकाबले बढ़कर अक्टूबर में 57.9 हो गया । इसका मतलब है कि दोनों क्षेत्रों में पिछले महीने की तुलना में उत्पादन में वृद्धि देखी गई।

🗼गोदावरी बायोरिफाइनरीज आईपीओ को 1.83 गुना सब्सक्राइब किया गया। खुदरा सदस्यता: 1.71 गुना। सदस्यता के लिए बंद।

🗼क्रिसिल  के मुताबिक सीएनजी कंपनियों की गैस खरीद लागत में 2-3 रुपये प्रति किलोग्राम की वृद्धि होने की उम्मीद है।

🗼सरकार ‘भारत’ किराना ब्रांड के तहत सब्सिडी दरों पर चना साबुत और मसूर दाल बेचने की योजना बना रही है।

🗼वारी एनर्जीज आईपीओ को 76.34 गुना सब्सक्राइब किया गया। खुदरा सदस्यता: 10.79 गुना।

🗼दीपक बिल्डर्स एंड इंजीनियर्स आईपीओ को 41.54 गुना सब्सक्राइब किया गया। खुदरा सदस्यता: 39.79 गुना।

🗼सितंबर में भारत में 

खुदरा बिक्री में साल-दर-साल 5% की वृद्धि हुई। 

खाद्य और किराना में सबसे अधिक 12% की वृद्धि देखी गई। 

आभूषणों की बिक्री में 8% की वृद्धि हुई, 

उपभोक्ता टिकाऊ वस्तुओं और 

इलेक्ट्रॉनिक्स की बिक्री में 6% की वृद्धि हुई, 

क्यूएसआर और परिधानों की बिक्री में 5% की वृद्धि हुई: आरएआई सर्वेक्षण (RAI Survey)
 

🗼हुंडई मोटर इंडिया का आईपीओ अपने आईपीओ मूल्य से 1.33% नीचे सूचीबद्ध हुआ।

🗼चीन ने अक्टूबर में अपनी मासिक बैठक में प्रमुख उधार (या ब्याज) दरों में कटौती की। 1-वर्ष की दर को घटाकर 3.1% (सितंबर में 3.35% के मुकाबले) कर दिया गया, और 5-वर्ष की दर को घटाकर 3.6% (सितंबर में 3.85% के मुकाबले) कर दिया गया।

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केंद्रीय शिक्षा तथा कौशल विकास एवं उद्यमिता मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने आज नई दिल्ली के भारत मंडपम में नई दिल्ली विश्व पुस्तक मेले का उद्घाटन किया। इस कार्यक्रम में भारत में सऊदी अरब के राजदूत,सालेह बिन ईद अल-हुसैनी; शिक्षा राज्य मंत्री अन्नपूर्णा देवी; शिक्षा मंत्रालय के उच्च शिक्षा विभाग के सचिव संजय के. मूर्ति; स्कूली शिक्षा एवं साक्षरता विभाग के सचिव संजय कुमार; नेशनल बुक ट्रस्ट के चेयरमैन प्रोफेसर मिलिंद सुधाकर मराठे; नेशनल बुक ट्रस्ट के निदेशक युवराज मलिक और अन्य गणमान्य व्यक्ति भी उपस्थित थे।

52वें नई दिल्ली विश्व पुस्तक मेले का उद्घाटन करते हुए श्री प्रधान ने इस बात पर प्रकाश डाला कि इस वर्ष मेले की थीम 'बहुभाषी भारत: एक जीवंत परंपरा' भारत की भाषाई विविधता और वैश्विक साहित्यिक परंपराओं का उत्सव मना रही है। 

उन्होंने यह भी कहा कि यह मेला साहित्य, विविध संस्कृतियों, कलात्मक अभिव्यक्तियों और ज्ञान का सामंजस्यपूर्ण मिश्रण है। श्री प्रधान ने कहा कि बहुभाषावाद हमारी विविधता का मूल है और इसलिए, भाषा और किताबें 2047 तक विकसित भारत के लक्ष्य, जैसी प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने परिकल्पना की है, को साकार करने के लिए संपत्ति हैं।

उन्होंने एक पुस्तक-प्रेमी और पुस्तक-पढ़ने वाले समाज को विकसित करने की आवश्यकता पर भी जोर दिया, जो एक प्रगतिशील सामाजिक व्यवस्था के निर्माण के लिए दूरदर्शी विचारों को बढ़ावा देता है और यह आवश्यक है क्योंकि देश विकसित भारत के लक्ष्य को साकार करने के लिए आगे बढ़ रहा है।

उद्घाटन सत्र में अपने संबोधन में श्री सालेह बिन ईद अल-हुसैनी ने दोनों देशों के बीच संबंधों को प्रगाढ़ करने के लिए पारस्परिक प्रतिबद्धता पर जोर दिया। उन्होंने भारत के अमृत काल और सऊदी अरब के 2030 के दृष्टिकोण के बीच समानताएं बताईं, क्योंकि बेहतर भविष्य के लिए हमारे बीच साझा प्रतिबद्धता है।

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श्री धर्मेंद्र प्रधान ने बजट 2023-34 में घोषित ‘नेशनल डिजिटल लाइब्रेरीज़ फॉर ऑल’ का ऐप लॉन्च किया। राष्ट्रीय ई-पुस्तकालय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के दृष्टिकोण आधारित कथन, "जब नागरिक पढ़ते हैं, तो देश नेतृत्व करता है के अनुरूप बच्चों और किशोरों को ध्यान में रखते हुए विभिन्न गैर-शैक्षणिक पुस्तकों तक पहुँचने के लिए अपनी तरह की पहली डिजिटल लाइब्रेरी है।"

राष्ट्रीय ई-पुस्तकालय छात्रों के बीच जीवन भर पढ़ने की आदत के प्रति लगाव को बढ़ावा और प्रोत्साहन देगा तथा विभिन्न शैलियों जैसे कथा, गैर-काल्पनिक, कविता और जीवनी आदि समेत विविध साहित्य विकल्प प्रदान करेगा, जिससे पढ़ने की विभिन्न प्राथमिकताएँ पूरी होंगी और छात्रों को उनकी पसंद की भाषा में विभिन्न प्रकार के साहित्य से परिचित होने में मदद मिलेगी। 

यह आलोचनात्मक सोच और कल्पना को भी प्रोत्साहित करेगा, जो छात्रों को उनकी रचनात्मकता और विश्लेषणात्मक कौशल विकसित करने और बढ़ाने में मदद कर सकता है। राष्ट्रीय ई-पुस्तकालय बच्चों और किशोरों के बीच उनके शैक्षणिक पाठ्यक्रम से परे विभिन्न पुस्तकों के साथ जुड़कर साक्षरता और भाषा विकास का समर्थन कर सकता है। 

यह भारतीय भाषाओं और विदेशी भाषाओं के साहित्य को सामने रखेगा और वसुधैव कुटुंबकम को साकार करने के इरादे से सांस्कृतिक जागरूकता, देशभक्ति और सहानुभूति की भावना पैदा करेगा और इन्हें बढ़ावा देगा।

बच्चों और किशोरों के लिए राष्ट्रीय ई-पुस्तकालय 4 अलग-अलग आयु समूहों - 3-8 वर्ष, 8-11 वर्ष, 11-14 वर्ष और 14-18 वर्ष के लिए आयु के अनुरूप पठन सामग्री तक एक उपकरण के माध्यम से पहुंच प्रदान करेगा। 

राष्ट्रीय ई-पुस्तकालय में किताबें युवा भारतीयों में गर्व की भावना विकसित करने के लिए भारत के इतिहास, संस्कृति, वैज्ञानिक और अन्य उपलब्धियों पर ध्यान केंद्रित करेंगी और इसमें अंग्रेजी के अलावा, संविधान की आठवीं अनुसूची के तहत सभी 23 (तेईस) भाषाओं की किताबें शामिल होंगी। 

 

अब तक, 30 से अधिक प्रतिष्ठित प्रकाशकों को शामिल किया जा चुका है और 1000 से अधिक किताबें प्लेटफार्म पर अपलोड की जा चुकी हैं।

श्री प्रधान ने ‘ई-लर्निंग प्लेटफॉर्म’, 'ई-जादुई पिटारा' का भी अनावरण किया, जो राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 के अनुरूप है और इसमें पहेलियां और कहानियां शामिल हैं। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) का उपयोग करके 22 भाषाओं में अनुवादित समावेशी और सूचनात्मक पठन-सामग्री का उद्देश्य प्रारंभिक बचपन की शिक्षा में बदलाव लाना है।

मंत्री ने एनईपी 2020 से जुड़े विशेष मॉड्यूल, शिक्षण-ज्ञान प्राप्ति संसाधन और विषय-विशिष्ट मॉड्यूल भी जारी किए। मंत्री द्वारा जी20 पहल, विकसित भारत और नारी शक्ति वंदन को बढ़ावा देने वाले संसाधन भी जारी किए गए, जो सामाजिक विकास और सशक्तिकरण के लिए भारत की प्रतिबद्धता पर प्रकाश डालते हैं।

श्री प्रधान ने "इग्नाइटिंग कलेक्टिव गुडनेस मन की बात @100" संकलन भी जारी किया, जिसमें रेडियो शो के 100 एपिसोड शामिल हैं और जिसे एनबीटी-इंडिया द्वारा 12 भाषाओं में प्रकाशित किया गया है। उन्होंने "क्रिएटिंग इंटेलेक्चुअल हेरिटेज" परियोजना के तहत चार नए शीर्षक भी जारी किए, जिन्हें एनबीटी-इंडिया द्वारा प्रकाशित किया गया है।

श्री प्रधान ने प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी द्वारा लिखित पुस्तक ‘एग्जाम वॉरियर्स’ के हिंदी और अंग्रेजी ब्रेल संस्करण भी जारी किए, जिन्हें एनबीटी-इंडिया द्वारा प्रकाशित किया गया है।

उद्घाटन सत्र के बाद पुस्तक मेले का अवलोकन किया गया, जिसमें थीम मंडप, जम्मू, कश्मीर और लद्दाख के इतिहास की यात्रा पर एक फोटो प्रदर्शनी और सऊदी अरब साम्राज्य के अतिथि देश मंडप का उद्घाटन कार्यक्रम भी शामिल थे।

'बहुभाषी भारत: एक जीवंत परंपरा की थीम पर आधारित, नई दिल्ली विश्व पुस्तक मेला 2024 राष्ट्र के सांस्कृतिक कैनवस में भाषाओं की पच्चीकारी का उत्सव मनाता है। 

परंपरा के अनुसार, एनडीडब्ल्यूबीएफ में सम्मानित अतिथि के रूप में एक देश के साथ -इस वर्ष सऊदी अरब सम्मानित अतिथि देश है - सांस्कृतिक आदान-प्रदान, साहित्यिक कार्यक्रम और संवाद को बढ़ावा दिया जाता है। 

एनडीडब्ल्यूबीएफ (NDWBF) 2024 10-18 फरवरी 2024 तक हॉल 1 से 5, प्रगति मैदान में सुबह 11.00 बजे से शाम 8.00 बजे तक खुला रहेगा। स्कूल यूनिफॉर्म में बच्चों, वरिष्ठ नागरिकों और दिव्यांगजनों के लिए प्रवेश निःशुल्क है। टिकट आईटीपीओ की वेबसाइट पर ऑनलाइन और चुनिंदा मेट्रो स्टेशनों पर उपलब्ध हैं।



 



 

 

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 भारतीय गुणवत्ता परिषद (QCI-Quality Council Of India)) अब 'नए भारत की नई खादी' की गुणवत्ता सुनिश्चित करेगी, जो माननीय प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में एक 'वैश्विक ब्रांड' बन गया है। 

खादी और ग्रामोद्योग आयोग (KVIC-Khadi And Village Industries Commission) तथा भारतीय गुणवत्ता परिषद (QCI-Quality Council Of India) ने खादी उत्पादों की गुणवत्ता बढ़ाने, कारीगरों को सशक्त बनाने और कोचराब आश्रम, अहमदाबाद में आज खादी के लिए 'मेड इन इंडिया' बैनर तले गुणवत्तापूर्ण उत्पाद प्रस्तुत करने के लिए एक समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर किए। 

एमओयू (MoU) का आदान-प्रदान केवीआईसी के अध्यक्ष  मनोज कुमार और क्यूसीआई (QCI-Quality Council Of India) के अध्यक्ष जक्षय शाह की उपस्थिति में हुआ। दोनों संगठनों के बीच सहयोग का उद्देश्य प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के विजन के अनुरूप 'विश्व स्तरीय खादी उत्पाद' बनाना है।

समझौता ज्ञापन के अनुसार भारतीय गुणवत्ता परिषद खादी और ग्रामोद्योग उत्पादों की गुणवत्ता बढ़ाने, घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उनकी उत्पादकता और विपणन क्षमता में सुधार करने के लिए प्रशिक्षण सहित विभिन्न गतिविधियों में केवीआईसी को सहायता देगी। इसके साथ ही यह खादी कारीगरों को सशक्त बनाने तथा विभिन्न माध्यमों से खादी उत्पादों को बढ़ावा देकर केवीआईसी का समर्थन करेगी। 

इसके अतिरिक्त यह सहयोग खादी को 'मेड इन इंडिया'(Made In India) उत्पादों के रूप में एक नई पहचान देगा, जिससे विश्व भर में गुणवत्ता के प्रतीक के रूप में खादी उत्पादों का उत्पादन और बिक्री बढ़ेगी। इससे खादी कारीगरों को उन्नत कौशल और ज्ञान से लैस करके अधिक उत्पादकता और दक्षता के साथ रोजगार के नए अवसर प्रदान किया जाएगा।

खादी और ग्रामोद्योग आयोग (KVIC-Khadi And Village Industries Commission) के अध्यक्ष श्री मनोज कुमार ने इस अवसर पर कहा- “माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में ‘नए भारत की नई खादी’ विकसित भारत की पहचान बनने की ओर आगे बढ़ रही है।” केवाईआईसी खादी को और आधुनिक बनाने के लिए लगातार प्रयास कर रहा है। 

इसके अंतर्गत पिछले वर्ष प्रसार भारती, एनबीसीसी (इंडिया) लिमिटेड और डिजिटल इंडिया कॉर्पोरेशन के साथ तीन महत्वपूर्ण समझौता ज्ञापनों पर हस्ताक्षर किए गए थे, जिसका विस्तार करते हुए आज क्वालिटी काउंसिल ऑफ इंडिया के साथ एमओयू पर हस्ताक्षर किए गए हैं। 

इन समझौता ज्ञापनों का उद्देश्य माननीय प्रधानमंत्री  नरेन्द्र मोदी के विजन के अनुरूप खादी और ग्रामोद्योग आयोग को आधुनिक बनाने और युवाओं के बीच अपने उत्पादों को लोकप्रिय बनाने के लिए एक रोडमैप तैयार करना है।” 

श्री मनोज कुमार ने कहा कि क्यूसीआई के साथ इस सहयोग से खादी उद्योग और इससे जुड़े कारीगरों के कौशल में वृद्धि होगी और खादी उत्पादों की गुणवत्ता की वैश्विक स्तर पर एक नई पहचान बनाएगी।

क्यूसीआई के अध्यक्ष श्री जक्षय शाह ने कहा कि "खादी और केवीआईसी उत्पादों की गुणवत्ता बढ़ाने तथा इसमें शामिल कारीगरों को सशक्त बनाने के लिए केवीआईसी के साथ साझेदारी करना गर्व का क्षण है, क्योंकि खादी सिर्फ एक उद्योग नहीं है, बल्कि यह भारत की संस्कृति और विरासत का प्रतीक है।" 

खादी भारत की सांस्कृतिक पहचान, शिल्प कौशल और स्थिरता का भी प्रतिनिधित्व करती है। उन्होंने कहा कि आज जब हम विकसित भारत के लक्ष्य को प्राप्त करने की दिशा में काम कर रहे हैं तो यह सहयोग निश्चित रूप से अधिक वैश्विक मान्यता का मार्ग प्रशस्त करने में योगदान देगा। 

इस अवसर पर खादी संस्थानों के प्रतिनिधि, खादी कारीगर, खादी कार्यकर्ताओं के साथ-साथ केवीआईसी और क्यूसीआई के अधिकारी और कर्मचारी उपस्थित थे।

 

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देश में भुगतान के लिए सबसे लोकप्रिय विकल्पों में एकीकृत भुगतान अंतराफलक (UPI-Unified Payment Interface)  का कोई मुकाबला नहीं है। भारत में  डिजिटल लेनदेन की शुरुआत के साथ ही इसके उपयोग में जबर्दस्त इजाफा देखा गया है। इस लेनदेन को और अधिक सुरक्षित बनाने के लिए  RBI ने उपयोग में नहीं आ रहे UPI खातों को बंद करने की दिशा में भी कदम उठाया है

इसकी लोकप्रियता को देखते हुए भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने (UPI-Unified Payment Interface) भुगतान को और बेहतर बनाने के लिए अतिरिक्त नियमों और समायोजनों पर नए कदम उठाये हैं जो 1 जनवरी 2024 से प्रभावी होंगे।

1 जनवरी, 2024 से शुरू होकर, UPI लेनदेन से संबंधित कई महत्वपूर्ण कानून और नियम पारित किए गए।

ऐसे प्रयासों में सबसे अहम् है UPI के सुरक्षा सम्बन्धी प्रावधान इसके लिए भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने उपयोग में नहीं रहने वाले  UPI को निष्क्रिय करना का कदम उठाया है उसने   Paytm, Google Pay, PhonePe और बैंकों जैसे भुगतान अनुप्रयोगों को भारत के राष्ट्रीय भुगतान निगम (NPCI-National Payment Corporation ऑफ़ India) द्वारा उन UPI आईडी और नंबरों को अक्षम करने का अनुरोध किया गया है जिनका एक वर्ष से अधिक समय से उपयोग नहीं किया गया है। 

यदि यूपीआई आईडी या संबंधित मोबाइल फोन का उपयोग एक वर्ष से अधिक समय तक लेनदेन के लिए नहीं किया जाता है, तो उन्हें समाप्त कर दिया जाएगा। यह अप्रयुक्त खातों को रोकने की दिशा में एक अत्यंत महती कदम है।
 

यूपीआई एटीएम(UPI-ATM): भारतीय रिज़र्व बैंक(RBI) पूरे देश में यूपीआई एटीएम शुरू करने की योजना बना रहा है। ये एटीएम आपको क्यूआर कोड स्कैन करके सीधे आपके बैंक खाते से नकदी निकालने की अनुमति देते हैं।

UPI से पहले बड़े भुगतान पर प्रतिबंध: ऑनलाइन भुगतान धोखाधड़ी की बढ़ती घटनाओं को कम करने के प्रयास में उन ग्राहकों के बीच 2,000 रुपये से अधिक के पहले भुगतान के लिए चार घंटे का समय प्रतिबंध होगा, जिन्होंने पहले कभी लेनदेन नहीं किया है। यूपीआई के सदस्य जल्द ही एक ही क्लिक पर भुगतान यानि "Tap & Pay" सुविधा  का उपयोग कर सकेंगे। 

लेनदेन शुल्क (Interchange Fee): 2,000 रुपये से अधिक के विशेष व्यापारी यूपीआई लेनदेन के लिए 1.1 फीसदी  का लेनदेन शुल्क  लिया जाएगा जो प्रीपेड (Prepaid) भुगतान उपकरणों (पीपीआई) जैसे ऑनलाइन वॉलेट (Online Wallet) का उपयोग करके किया जाता है।

एक लाख से ऊपर UPI लेनदेन: UPI लेनदेन के लिए, NPCI ने 1 लाख रुपये की नई अधिकतम दैनिक भुगतान सीमा स्थापित की है। लेकिन, 8 दिसंबर को RBI ने स्वास्थ्य सेवा और शैक्षणिक संस्थानों के लिए UPI लेनदेन की सीमा बढ़ाकर 5 लाख रुपये कर दी। पिछली लेनदेन की सीमा एक लाख रुपये थी।


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AAB NEWS/ भोपाल/ भारतीय स्टेट बैंक के भोपाल मंडल के नव-नियुक्त मुख्य महाप्रबंधक, चंद्रशेखर शर्मा का कहना है कि कार्यालयों में तनाव मुक्त वातावरण होना चाहिए। कर्मचारियों और अधिकारीयों को ग्राहकों को अच्छी सेवा  देने का मूल मंत्र है ग्राहकों को  मुस्कराहट के साथ सेवाएं प्रदान करें

यह विचार उन्होंने सोमवार को भारतीय स्टेट बैंक के भोपाल मंडल के नए मुख्य महाप्रबंधकके तौर पर  अपना कार्यभार ग्रहण करने के अवसर पर अपने उद्बोधन के दौरान व्यक्त किये 

भारतीय स्टेट बैंक के मीडिया अधिकारी अनिल चौबे के मुताबिक  श्री शर्मा ने 1994 में परिवीक्षाधीन अधिकारी के रूप में भारतीय स्टेट बैंक में अपना सफर शुरू किया था। उनके 29 साल की सेवा काल में, उन्होंने एसबीआई के विभिन्न शाखाओं में व्यापक अनुभव हासिल किया, साथ ही एसबीआई की विदेशी सहायक कंपनी में अंतर्राष्ट्रीय बैंकिंग, वाणिज्यिक ऋण और परिचालन के क्षेत्र में कार्य किया।

इससे पहले, वे भुवनेश्वर मंडल के मुख्य महाप्रबंधक के पद पर कार्यरत थे। उन्होंने हॉगकांग के क्वालून शाखा में मुख्य परिचालन अधिकारी के रूप में अपना सफल योगदान दिया था।

अपने पदभारग्रहण एवं नए साल के अवसर पर स्थानीय प्रधान कार्यालय स्थित सभाग्रह में समस्त स्टाफ को संबोधित करते हुये, श्री शर्मा ने सभी को नए साल की शुभकामनाएं दी और सभी के स्वस्थ्य जीवन, बैंक के प्रति समर्पण और कार्य के प्रति समर्पितता की अपील की। 

इस कार्यक्रम में, अन्य वक्ताओं ने भी सभी को संबोधित करते हुये नव वर्ष की शुभकामनाएं देते हुये पूर्ण विश्वास व्यक्त किया कि एसबीआई भोपाल मण्डल, श्री शर्मा के नेतृत्व मे नयी ऊचाइयों को छूते हुये नए कीर्तिमान स्थापित करेगा। 

वक्ताओं में भारतीय स्टेट बैंक के महाप्रबंधक  कुंदन ज्योति, अजिताव पाराशर,  नीरज प्रसाद सहित दीपक कुमार झा उपमहाप्रबंधक एवं मण्डल विकास अधिकारी शामिल थे। उन्होने सभी उपस्थित स्टाफ सदस्यों से उत्कृष्ट ग्राहक सेवा से का प्रण लेने का आग्रह किया।

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S/  अंतर्राष्ट्रीय चीनी संगठन (ISO,International Sugar Organization) ने अपनी 63वीं परिषद बैठक में घोषणा की कि भारत वर्ष 2024 के लिए संगठन का अध्यक्ष होगा। इस संगठन का मुख्यालय लंदन में है। वैश्विक चीनी क्षेत्र का नेतृत्व करना देश के लिए एक बड़ी उपलब्धि है और यह इस क्षेत्र में देश के बढ़ते कद को दर्शाता है। 

आईएसओ (International Sugar Organization) परिषद बैठक में भाग लेते हुए भारत के खाद्य सचिव श्री संजीव चोपड़ा ने कहा कि भारत 2024 में आईएसओ की अपनी अध्यक्षता की अवधि के दौरान सभी सदस्य देशों से समर्थन और सहयोग चाहता है और गन्ने की खेती, चीनी तथा इथेनॉल उत्पादन में अधिक टिकाऊ प्रथाओं को अपनाने और उप-उत्पादों के बेहतर उपयोग के लिए सभी सदस्य देशों को एक साथ लाने पर ध्यान केंद्रित करना चाहता है।

भारत दुनिया में चीनी का सबसे बड़ा उपभोक्ता और दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश रहा है। वैश्विक चीनी खपत में लगभग 15 प्रतिशत हिस्सेदारी और चीनी के लगभग 20 प्रतिशत उत्पादन के साथ, भारतीय चीनी रुझान वैश्विक बाजारों को बहुत प्रभावित करते हैं। यह अग्रणी स्थिति भारत को अंतर्राष्ट्रीय चीनी संगठन (
International Sugar Organisation) का नेतृत्व करने के लिए सबसे उपयुक्त राष्ट्र बनाती है, जो चीनी और संबंधित उत्पादों पर शीर्ष अंतरराष्ट्रीय निकाय है। इसके लगभग 90 देश सदस्य हैं।

चीनी बाजार में विश्व के पश्चिमी गोलार्ध में ब्राजील तो पूर्वी गोलार्ध में भारत अग्रणी है। अब, अमेरिका और ब्राजील के बाद इथेनॉल उत्पादन में दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा देश होने के नाते भारत ने हरित ऊर्जा के प्रति अपनी प्रतिबद्धता और घरेलू बाजार में अधिशेष चीनी की चुनौतियों को जीवाश्म ईंधन आयात के समाधान में बदलने की क्षमता दिखाई है और इसे सीओपी 26 लक्ष्यों को पूरा करने के लिए एक उपकरण के रूप में पेश किया है। 

यह उल्लेखनीय है कि भारत में इथेनॉल मिश्रण प्रतिशत 2019-20 में 5 प्रतिशत से बढ़कर 2022-23 में 12 प्रतिशत हो गया है, जबकि इसी अवधि के दौरान उत्पादन 173 करोड़ लीटर से बढ़कर 500 करोड़ लीटर से अधिक हो गया है।

भारतीय चीनी उद्योग ने पूरे व्यापार मॉडल को टिकाऊ और लाभदायक दोनों बनाने के लिए इसके आधुनिकीकरण और विस्तार के साथ-साथ अतिरिक्त राजस्व धाराओं का सृजन करने के लिए अपने सह-उत्पादों की क्षमता के दोहन हेतु विविधीकरण में एक लंबा सफर तय किया है। 

इसने कोविड महामारी के दौरान अपनी मिलों का संचालन करके अपनी मजबूती साबित की है, जबकि देश लॉकडाउन का सामना कर रहा था और देश में मांग को पूरा करने के लिए पर्याप्त हैंड सैनिटाइज़र का उत्पादन करके आगे बढ़ रहा था।

भारत को अपने किसानों के लिए उच्चतम गन्ना मूल्य का भुगतानकर्ता होने का एक अनूठा गौरव प्राप्त है और अब भी यह बिना किसी सरकारी वित्तीय सहायता के आत्मनिर्भर तरीके से काम करने और लाभ कमाने में पर्याप्त रूप से सक्षम है। सरकार और चीनी उद्योग के बीच तालमेल ने भारतीय चीनी उद्योग को फिर से जीवंत करना और देश में हरित ऊर्जा में एक प्रमुख खिलाड़ी के रूप में बदलना संभव बना दिया है। 

किसानों के लंबित गन्ना बकाये का युग अब बीते जमाने की बात हो गई है। पिछले सीजन 2022-23 के 98 प्रतिशत से अधिक गन्ना बकाया का भुगतान पहले ही किया जा चुका है और पिछले गन्ना मौसम के 99.9 प्रतिशत से अधिक गन्ना बकाया का भुगतान हो चुका है। इस प्रकार, भारत में गन्ना बकाया लंबित राशि अब तक के सबसे निचले स्तर पर है।

भारत ने न केवल किसानों और उद्योग का ध्यान रखकर बल्कि उपभोक्ताओं को भी आगो रखकर मिसाल कायम की है। घरेलू चीनी खुदरा कीमतें सुसंगत और स्थिर हैं। जहां वैश्विक कीमतें एक वर्ष में लगभग 40 प्रतिशत बढ़ जाती हैं वहीं भारत चीनी उद्योग पर अतिरिक्त बोझ डाले बिना पिछले साल से 5 प्रतिशत की वृद्धि के भीतर चीनी की कीमतों को नियंत्रित करने में सक्षम रहा है।

तकनीकी पक्ष पर भी, राष्ट्रीय चीनी संस्थान, कानपुर ने अपना विस्तार किया है और इस क्षेत्र में नवीनतम प्रौद्योगिकियों और सर्वोत्तम प्रथाओं को साझा करने के लिए इंडोनेशिया, नाइजीरिया, मिस्र, फिजी आदि सहित कई देशों के साथ सहयोग कर रहा है।

 

Aviation Industry-भारतीयों को ज्यादा रास आ रहा है हवा में उड़ना

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देश के नागर विमानन क्षेत्र अच्छा इजाफा हो रहा है
इसकी वजह घरेलू हवाई सेवाओं में उड़ान भरना पसंद आना है। विभिन्न घरेलू एयरलाइनों द्वारा उपलब्ध कराए गए यातायात आंकड़ों के आधार पर जनवरी-मई 2023 के दौरान यात्रियों की संख्या 636.07 लाख के प्रभावशाली स्तर तक पहुंच गई, जो पिछले वर्ष की इसी अवधि की तुलना में 36.10 प्रतिशत की महत्वपूर्ण वार्षिक वृद्धि दर को दर्शाती है। पिछले वर्ष की इसी अवधि के दौरान यात्रियों की संख्या 467.37 लाख रही थी।

मई 2022 के दौरान यात्रियों की संख्या 114.67 लाख रही थी, जो मई 2023 में बढ़कर 132.41 लाख हो गई। इस प्रकार मासिक दर मासिक 15.24 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज हुई। यात्रियों को संख्या में हो रही लगातार वृद्धि एक सुरक्षित, कुशल, ग्राहक केंद्रित, विमानन ईकोसिस्टम को बढ़ावा देने में एयरलाइंस, हवाई अड्डों और नागर विमानन मंत्रालय के सामूहिक प्रयासों का प्रमाण है।

अप्रैल 2023 की तुलना में मई 2023 में यात्रियों की कुल संख्या में 3.26 लाख (2.52 प्रतिशत) की वृद्धि दर्ज हुई है।

यात्रियों की संख्या में हुई उल्लेखनीय वृद्धि भारत के विमानन क्षेत्र की ताकत और मजबूती को दर्शाती है। यह कनेक्टिविटी को बेहतर करने और देश के नागरिकों को सुविधाजनक यात्रा का विकल्प उपलब्ध कराने के लिए किए गए निरंतर प्रयासों को भी दर्शाती है। 

जनवरी से मई 2023 के दौरान 636.07 लाख यात्रियों की भारी संख्या का बोझ हवाई यात्रा की बढ़ती हुई मांग को दर्शाता है और यह विमानन उद्योग की अनुकूल दिशा में बढ़ने का भी सूचक  है।

इसके अलावा, मई 2019 की तुलना में मई 2023 में शिकायतों की संख्या में कमी आई है। मई 2019 में अनुसूचित घरेलू एयरलाइनों को यात्रियों से संबंधित कुल 746 शिकायतें प्राप्त हुई थीं, जबकि मई 2023 में इन एयरलाइनों को यात्रियों से संबंधित कुल 556 शिकायतें प्राप्त हुई थीं।

केंद्रीय नागर विमानन और इस्पात मंत्री श्री ज्योतिरादित्य एम. सिंधिया के अनुसार, “विमानन क्षेत्र के विकास को आगे बढ़ाने और भारत को एक प्रमुख वैश्विक विमानन केंद्र के रूप में स्थापित करने में सभी हितधारकों के सहयोगात्मक प्रयासों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। 

घरेलू एयरलाइन उद्योग का विस्तार और क्षेत्रीय एयरलाइनों का उदय हमारी अर्थव्यवस्था को निरंतर मजबूत कर रहा है। यह पूरे राष्ट्र को परस्पर जोड़ रहा है और उड़ान योजना के माध्यम से अंतिम मील तक कनेक्टिविटी स्थापित कर रहा है। 

मंत्रालय सुरक्षा, दक्षता और यात्रियों को संतुष्टि प्रदान करने के बारे में उच्चतम मानकों को सुनिश्चित करते हुए विमानन उद्योग को विकास करने तथा उनके सतत विकास को बढ़ावा देने के लिए अनुकूल माहौल को बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्ध है।

एयरलाइनों की यह उपलब्धि उद्योग द्वारा पूरी तरह सावधानीपूर्वक बनाई गई योजना, परिचालन प्रभावशीलता और सक्रिय कार्यों का ही परिणाम है। कोविड-19 महामारी के बाद एयरलाइनों ने बेहतर हवाई सेवाओं के साथ-साथ यात्रियों को सुगम और सहज यात्रा अनुभव प्रदान करके अपनी क्षमता का प्रदर्शन किया है।

Khadi Cotton Weavers-कारीगरों की मासिक आय में 33% कीहोगी  वृद्धि

 
AAB NEWS/ खादी और ग्रामोद्योग आयोग की 694वीं बैठक मनोज कुमार की अध्यक्षता में 30 जनवरी, 2023 को गुजरात के कच्छ में आयोजित हुई। इस दौरान, प्रधानमंत्री की प्रेरणा और खादी कपास-बुनकरों के योगदान को ध्यान में रखते हुए खादी और ग्रामोद्योग आयोग ने श्रमिकों की आय में बढ़ोतरी के लिए उनका मेहनताना 7.50 रुपये प्रति लच्छे से बढ़ाकर 10 रुपये प्रति लच्छा करने का ऐतिहासिक निर्णय लिया गया। इस पहल से कारीगरों की मासिक आय में लगभग 33% की वृद्धि होगी और बुनकरों की मजदूरी में 10% की वृद्धि होगी। यह फैसला पहली अप्रैल 2023 से प्रभावी होगा।

जैसा कि हम सभी जानते हैं कि स्वदेशी उत्पादों को बढ़ावा देने के लिए प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी लगातार राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय मंचों पर खादी तथा ग्रामोद्योग उत्पादों को खरीदने के लिए अपील कर रहे हैं ताकि गरीब से गरीब व्यक्ति को अधिक से अधिक कार्य करने का अवसर दिया जा सके और उनकी आय में वृद्धि हो सके। इस तरह के प्रयासों के परिणामस्वरूप हमारे कारीगरों के हाथ में अधिक आमदनी होगी।

प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने अपने मासिक रेडियो प्रसारण कार्यक्रम "मन की बात" के माध्यम से खादी को खरीदने के लिए देशवासियों से कई बार अपील की है। उन्होंने "विशेष रूप से युवाओं" को इस पहल में आगे आने का आह्वान किया है। 

इसके सकारात्मक असर से साल दर साल खादी उत्पादों की रिकॉर्ड बिक्री हुई है। प्रधानमंत्री ने खादी को लोकप्रिय बनाने के लिए बार-बार "खादी फॉर नेशन, खादी फॉर फैशन एंड खादी फॉर ट्रांसफॉर्मेशन" के आदर्श वाक्य के साथ खादी को अपनाने तथा उत्पादन एवं बिक्री बढ़ाने के हर संभव प्रयास की सराहना की है।

इस अवसर पर केवीआईसी के अध्यक्ष श्री मनोज कुमार ने कहा कि वित्तीय वर्ष 2021-2022 में खादी और ग्रामोद्योग उत्पादों का उत्पादन 84,290 करोड़ का और बिक्री 1,15,415 करोड़ की हुई थी। इस साल 2 अक्टूबर को खादी इंडिया के कनॉट प्लेस बिक्री केंद्र ने एक ही दिन में 1.34 करोड़ रुपये की खादी उत्पाद बेचने का नया रिकॉर्ड बनाया है। 

जिसका श्रेय हमारे यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी द्वारा देश की जनता को खादी खरीदने के लिए किए गए आह्वान को जाता है। इसके अलावा खादी उत्पादन एवं विक्रय कार्य में लगे लाखों कारीगरों और अथक परिश्रम खादी श्रमिकों की भी इस कार्य में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका है।

इसके अलावा, अध्यक्ष श्री मनोज कुमार ने कहा कि, ग्रामीण स्तर पर खादी श्रमिकों को प्रोत्साहित करने और खादी उत्पादन बढ़ाने के उद्देश्य से केवीआईसी कई कार्यक्रम आयोजित करता रहता है। 

इसी क्रम में पिछले कुछ महीनों में खादी श्रमिकों, देश के विभिन्न क्षेत्रों में कार्यरत संस्थाओं और खादी संगठनों के साथ खादी संवाद की श्रृंखला का आयोजन किया गया। इन कार्यक्रमों का उद्देश्य खादी से जुड़े लोगों के लिए इष्टतम रोजगार सृजित करके ग्रामीण-अर्थव्यवस्था को सशक्त बनाना है। 

 श्री मनोज कुमार ने खादी कारीगरों एवं श्रमिकों की समस्या को समझने तथा उनमें नई ऊर्जा का संचार करने के लिए सीधे उनसे बातचीत की।

केवीआईसी के अध्यक्ष ने कहा कि खादी क्षेत्र के सूत कातने वालों तथा बुनकरों ने खादी का उत्पादन बढ़ाने में विशेष योगदान दिया है और खादी संवाद के दौरान उन्हें यह जानकारी मिली थी कि श्रमिकों के पारिश्रमिक को बढ़ाने की मांग दशकों से लंबित है। उन्होंने कहा कि इस महत्वपूर्ण विषय को गंभीरता से लिया गया।

  श्री मनोज कुमार ने बताया कि उनकी अध्यक्षता में आयोजित केवीआईसी की 694वीं बैठक में एक विशेष निर्णय लिया गया, जिसके तहत श्रमिकों एवं कारीगरों की आय में वृद्धि करने तथा अधिक से अधिक देशवासियों को खादी की ओर आकर्षित करने के लिए पारिश्रमिक में 33 प्रतिशत संशोधन करने का प्रस्ताव किया गया।

केवीआईसी ने खादी श्रमिकों एवं खादी संगठनों की इस मांग पर विचार करते हुए अपनी 694वीं बैठक में खादी-ग्रामोद्योग कार्यक्रम से जुड़े श्रमिकों के हाथों में अधिक से अधिक धन उपलब्ध कराने, उनकी आय के स्रोत बढ़ाने तथा उनकी आर्थिक स्थिति को और बेहतर करने का निर्णय लिया। यह ऐतिहासिक फैसला एक मजबूत, समृद्ध और आत्मनिर्भर भारत के निर्माण में सहायता करेगा।

खादी को वैश्विक स्तर पर स्थानीय परिधान बनाने के लिए प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने पिछले 9 वर्षों के दौरान खादी के प्रति अपने आकर्षण और प्रेम से खादी को पुनर्जीवित किया है, जिसके परिणामस्वरूप खादी सहित भारत के स्वदेशी उत्पादों की मांग में बहुत वृद्धि हुई है, इस निर्णय से खादी क्षेत्र में खुशी की लहर आई है। खादी क्षेत्र को लगातार एक बड़ा प्रोत्साहन मिल रहा है, जो अधिक से अधिक रोजगार के अवसर उत्पन्न करेगा।

 AAB NEWS/ 2023-24 के दौरान भारत की जीडीपी विकास दर 6.0 से 6.8 प्रतिशत रहेगी, जो वैश्विक आर्थिक और राजनीतिक घटनाक्रमों पर निर्भर है।

 

विकास अनुमान का आशावादी पक्ष विभिन्न सकारात्मक तथ्यों पर आधारित है, जैसे निजी खपत में मजबूती जिसमें उत्पादन गतिविधियों को बढ़ावा दिया है; पूंजीगत व्यय की उच्च दर (कैपेक्स); सार्वभौमिक टीकरकरण कवरेज, जिसने संपर्क आधारित सेवाओं – रेस्टोरेंट, होटल, शोपिंगमॉल, सिनेमा आदि - के लिए लोगों को सक्षम किया है

शहरों के निर्माण स्थलों पर प्रवासी श्रमिकों के लौटने से भवन निर्माण सामग्री के जमा होने में महत्वपूर्ण कमी दर्ज की गई है, कॉरपोरेट जगत के लेखा विवरण पत्रों में मजबूती; पूंजी युक्त सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक जो ऋण देने में वृद्धि के लिए तैयार हैं तथा सूक्ष्म, लघु और मध्यम उध्यम क्षेत्र के लिए ऋण में बढ़ोत्तरी।

 

 

केन्द्रीय वित्त एवं कॉरपोरेट कार्य मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमण ने आज 31 जनवरी, 2023 को संसद में आर्थिक समीक्षा   2022-23 पेश किया, जिसका अनुमान है कि जीडीपी विकास दर वित्त वर्ष 2024 के लिए वास्तविक आधार पर 6.5 प्रतिशत रहेगी। इस अनुमान की बहुपक्षीय एजेंसियों जैसे विश्व बैंक, आईएमएफ, एडीबी और घरेलू तौर पर आरबीआई द्वारा किए गए अनुमानों से तुलना की जा सकती है।

 

 

सर्वेक्षण कहता है कि वित्त वर्ष 2024 में विकास की गति तेज रहेगी क्योंकि कॉरपोरेट और बैंकिंग क्षेत्र के लेखा विवरण पत्रों के मजबूत होने से ऋण अदायगी और पूंजीगत निवेश के शुरु होने का अनुमान  है। आर्थिक विकास को लोक डिजिटल प्लेटफॉर्म के विस्तार तथा ऐतिहासिक उपायों जैसे पीएम गतिशक्ति, राष्ट्रीय लॉजिस्टिक नीति और उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजनाओं के माध्यम से समर्थन मिलेगा, जो निर्माण उत्पादन को बढ़ावा देंगे।

 

 

सर्वेक्षण कहता है कि वास्तविक स्तर पर मार्च, 2023 को समाप्त होने वाले वर्ष के लिए अर्थव्यवस्था में 7 प्रतिशत की दर से वृद्धि होगी। पिछले वित्तीय वर्ष के दौरान विकास दर 8.7 प्रतिशत रही थी।

कोविड-19 के तीन लहरों तथा रूस-यूक्रेन संघर्ष के बावजूद एवं फेडरल रिजर्व के नेतृत्व में विभिन्न देशों की अर्थव्यवस्थाओं के केन्द्रीय बैंकों द्वारा महंगाई दर में कमी लाने की नीतियों के कारण अमेरिकी डॉलर में मजबूती दर्ज की गई है और आयात करने वाली अर्थव्यवस्थाओं का चालू खाता घाटा (सीएडी) बढ़ा है। दुनियाभर की एजेंसियों ने भारत को सबसे तेजी से बढ़ने वाली बड़ी अर्थव्यवस्था माना है, जिसकी विकास दर वित्त वर्ष 2023 में 6.5 – 7.0 प्रतिशत रहेगी।

 

 

सर्वेक्षण के अनुसार, वित्त वर्ष 2023 के दौरान भारत के आर्थिक विकास का मुख्य आधार निजी खपत और पूंजी निर्माण रहा है, जिसने रोजगार के सृजन में मदद की है। यह शहरी बेरोजगारी दर में कमी तथा कर्मचारी भविष्य निधि के कुल पंजीकरण में तेजी के माध्यम से दिखाई पड़ती है। 

इसके अतिरिक्त, विश्व के दूसरे सबसे बड़े टीकाकरण अभियान, जिसमें 2 बिलियन खुराकें दी गई हैं, ने भी उपभोक्ताओं के मनोभाव को मजबूती दी है, जिससे खपत में वृद्धि होगी। निजी पूंजीगत निवेश को नेतृत्व करने की आवश्यकता है ताकि रोजगार के अवसरों का तेजी से सृजन हो सके।

 

 

भारत के विकास दृष्टिकोण को निम्न से बढ़ावा मिला है – (i) चीन के कोविड-19 संक्रमण के वर्तमान लहर से पूरी दुनिया के प्रभावित होने की तुलना में भारत में स्वास्थ्य और अर्थव्यवस्था पर अपेक्षाकृत कम असर पड़ा है, जिससे आपूर्ति श्रृंखलाएं सामान्य रही हैं। (ii) चीन की अर्थव्यवस्था के फिर से खुलने के कारण मुद्रास्फीति बढ़ने की संभावना न तो महत्वपूर्ण है और न ही निरंतर है। 

(iii) विकसित अर्थव्यवस्थाओं में (एई) मंदी के रुझानों से मौद्रिक मजबूती में कमी आई है; भारत में घरेलू मुद्रास्फीति दर 6 प्रतिशत से कम रही है, जिससे देश में पूंजीगत प्रवाह बढ़ा है तथा (iv) उद्योग जगत का रुझान बेहतर हुआ है, जिससे निजी क्षेत्र निवेश में वृद्धि हुई है।

सर्वेक्षण कहता है कि सूक्ष्म, लघु और मध्यम उध्यम (एमएसएमई) क्षेत्र के लिए ऋण में तेज वृद्धि दर्ज की गई है, जो जनवरी-नवम्बर, 2022 के दौरान औसत आधार पर 30.6 प्रतिशत रही और इसे केन्द्र सरकार की आपात ऋण से जुड़ी गारंटी योजना (ईसीएलजीएस) का समर्थन मिला। 

एमएसएमई क्षेत्र में रिकवरी की गति तेज हुई है, जो उनके द्वारा भुगतान किए जाने वाले वस्तु एवं सेवाकर (जीएसटी) की धनराशि से परिलक्षित होती है। उनकी आपात ऋण से जुड़ी गारंटी योजना (ईसीएलजीएस) ऋण संबंधी चिंताओं को आसान कर रही है।

इसके अलावा बैंक ऋण में हुई वृद्धि, उधार लेने वालों के बदलते रुझानों से भी प्रभावित हुई है, जो जोखिम भरे बॉन्ड मार्किट में निवेश कर रहे हैं, जहां धन अर्जन अधिक होता है। यदि मुद्रास्फीति वित्त वर्ष 2024 में कम होती है और ऋण की वास्तविक लागत नहीं बढ़ती है तो वित्त वर्ष 2024 के लिए ऋण वृद्धि तेज रहेगी।

केंद्र सरकार का पूंजीगत व्यय (कैपेक्स) वित्त वर्ष 2023 के पहले 8 महीनों में 63.4 प्रतिशत तक बढ़ गया, जो चालू वित्त वर्ष में भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास का प्रमुख घटक रहा है। 2022 के जनवरी-मार्च तिमाही से नीजि पूंजीगत व्यय में वृद्धि हुई है। 

वर्तमान रुझानों के अनुसार लगता है कि पूरे वर्ष के लिए पूंजीगत व्यय बजट हासिल कर लिया जाएगा। निजी पूंजीगत निवेश में भी वृद्धि होने का अनुमान है, क्योंकि कॉपोरेट जगत के लेखा विवरण पत्र मजबूत हुए है जिससे ऋण देने में वृद्धि होगी।

सर्वेक्षण ने महामारी के कारण निर्माण गतिविधियों में आई बाधाओं को रेखांकित किया है। सर्वेक्षण कहता है कि टीकाकरण से प्रवासी श्रमिकों को शहरों में वापस आने में सुविधा मिली है। इससे आवास बाजार मजबूत हुआ है। 

यह इस बात से परिलक्षित होता है कि विनिर्माण सामग्री के भंडार में महत्वपूर्ण कमी दर्ज की गई है, जो पिछले साल के 42 महीनों के मुकाबले वित्त वर्ष 2023 की तीसरी तिमाही में 33 महीने रह गया  है।

सर्वेक्षण कहता है कि महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (एमजीएनआरईजीएस) ग्रामीण क्षेत्रों में प्रत्यक्ष तौर पर रोजगार प्रदान कर रही है और अप्रत्यक्ष तौर पर ग्रामीण परिवारों को अपनी आय के स्रोतों में बदलाव लाने में मदद कर रही है। 

पीएम किसान और पीएम गरीब कल्याण योजना जैसी योजनाएं देश में खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित कर रही है और इनके प्रभावों को संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) ने भी अनुशंसा प्रदान की है। 

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) के परिणामों ने भी दिखाया है कि वित्त वर्ष 2016 से वित्त वर्ष 2020 तक ग्रामीण कल्याण संकेतक बेहतर हुए हैं, जिनमें लिंग, प्रजनन दर, परिवार की सुविधाएं और महिला सशक्तिकरण जैसे विषयों को शामिल किया गया है।

सर्वेक्षण उम्मीद करता है कि भारतीय अर्थव्यवस्था महामारी के प्रभावों से मुक्त हो चुकी है और वित्त वर्ष 2022 में दूसरे देशों की अपेक्षा तेजी से पहले की स्थिति में आ चुकी है। भारतीय अर्थव्यवस्था अब वित्त वर्ष 2023 में महामारी-पूर्व के विकास मार्ग पर आगे बढ़ने के लिए तैयार है। 

हालांकि चालू वर्ष में भारत ने यूरोपीय संघर्ष के कारण हुई मुद्रास्फीति में वृद्धि को कम करने की चुनौती का सामना किया है। सरकार और आरबीआई के द्वारा किए गए उपायों और वैश्विक स्तर पर वस्तुओं की कीमतों में आई कमी से नवंबर, 2022 से खुदरा मुद्रास्फीति को आरबीआई की लक्ष्य-सीमा से नीचे लाने में मदद मिली।

 

 

हालांकि, रुपए में मूल्यहास की चुनौती अधिकांश अन्य मुद्राओं की तुलना में हमारी मुद्रा बेहतर निष्पादन कर रही है, यूएस फेड द्वारा नीतिगत दरों में और वृद्धि किए जाने की संभावना बनी हुई  है। सीएडी का बढ़ना भी जारी रह सकता है क्योंकि वैश्विक जिंस की कीमतों में उच्चता बनी हुई है और भारतीय अर्थव्यवस्था  की विकास गति भी मजबूत बनी हुई है। 

निर्यात प्रोत्साहन का नुकसान आगे भी संभव है क्योंकि धीमी पड़ती वैश्विक समृद्धि और व्यापार ने चालू वर्ष की दूसरी छमाही में वैश्विक बाजार के आकार को कम करती है।

इस प्रकार से वर्ष 2023 में वैश्विक संवृद्धि में गिरावट का अनुमान लगाया गया है और इसके बाद के वर्षों में भी आमतौर पर कमजोर रहने की संभावना है। धीमी मांग की वजह से वैश्विक कमोडिटी की कीमतों में कमी आएगी और वित्त वर्ष 24 में भारत के सीएडी में सुधार होगा।

हालाकि चालू खाता शेष के लिए नकारात्मक जोखिम मुख्य रूप से घरेलू मांग और कुछ हद तक निर्यात द्वारा संचालित तेज रिकवरी से उत्पन्न होता है। सीएडी पर बारीकी से नजर रखने की आवश्यकता है क्योंकि चालू वर्ष की विकास गति अगले वर्ष की विकास गति बनाए रखेगी।

समीक्षा में इस महत्वपूर्ण तथ्य की भी जानकारी दी गई है कि सामान्य तौर पर, पिछले समय में वैश्विक आर्थिक झटके काफी गंभीर रहे हैं लेकिन समय के बीतने के साथ इनसे बाहर निकला गया है परन्तु इसने शताब्दी के तीसरे दशक में परिवर्तन किया क्योंकि 2020 के बाद से वैश्विक अर्थव्यवस्था को कम से कम तीन झटके झेलने पड़े हैं।

यह सब महामारी से प्रभावित वैश्विक उत्पादन में आई कमी से प्रारंभ हुआ जिसे रूस-यूक्रेन संघर्ष ने विश्व को मुद्रास्फीति की ओर अग्रसर कर दिया फिर फेडरल रिजर्व के पीछे-पीछे अर्थव्यवस्थाओं के केन्द्रीय बैंकों ने मुद्रास्फीति पर अंकुश लगाने के लिए समकालिक नीतिगत दरों में वृद्धि की।

यूएस फेड द्वारा दरों में की गई वृद्धि ने अमेरिकी बाजारों में पूंजी को आकर्षित किया, जिससे अधिकांश मुद्राओं के मुकाबले अमेरिकी डॉलर का मूल्य बढ़ गया। परिणामस्वरूप चालू घाटा सीएडी बढ़ गया और निबल आयातक अर्थव्यवस्थाओं में मुद्रास्फीति दबाव में वृद्धि आई।

दर में वृद्धि और सतत मुद्रास्फीति ने आईएमएफ द्वारा विश्व आर्थिक आउटलुक के अक्टूबर 2022 के अपडेट में 2022 और 2023 के लिए वैश्विक विकास पूर्वानुमानों को कम कर दिया। चीनी अर्थव्यवस्ता की क्षीणता ने आगे विकास के पूर्वानुमानों को और कमजोर किया। 

मौद्रिक तंगी के अलावा धीमी वैश्विक वृद्धि भी उन्नत अर्थव्यवस्थाओं से उत्पन्न वित्तीय संक्रमण का कारण बन सकती हैं जहां गैर-वित्तीय क्षेत्र का ऋण वैश्विक वित्तीय संकंट के बाद से सबसे अधिक बढ़ गया है। उन्नत अर्थव्यवस्थाओं में मुद्रास्फीति के बने रहने और केन्द्रीय बैंकों द्वारा दरों में अधिक वृद्धि के संकेत से, वैश्विक आर्थिक दृष्टिकोण के लिए नकारात्मक जोखिम बढ़ा हुआ दिखाई देता है।

भारत का आर्थिक लचीलापन और विकास संचालक

भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा मौद्रिक सख्ती, सीएडी का बढ़ना, और निर्यात की स्थिर वृद्धि अनिवार्य रूप से यूरोप में भू-राजनीतिक विवाद का परिणाम है। जैसा कि इन गतिविधियों ने वित्त वर्ष 23 में भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास के लिए नकारात्मक जोखिम पैदा किया है, दुनिया भर में कई एजेंसियां रूक-रूक कर भारतीय अर्थव्यवस्था के अपने विकास पूर्वानुमान को नीचे की ओर संशोधित कर रही हैं। एनएसओ द्वारा जारी किए गए अग्रिम अनुमानों सहित ये पूर्वानुमान अब मोटे तौर पर 6.5-7.0 प्रतिशत की सीमा में हैं।

 

 

 

नीचे की ओर संशोधन के बावजूद, वित्त वर्ष 23 के लिए विकास का अनुमान लगभग सभी प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में अधिक बना हुआ है और यहां तक की महामारी से पहले के दशक में भारतीय अर्थव्यवस्था की औसत वृद्धि से थोड़ा अधिक है।

आईएमएफ का अनुमान है कि भारत 2022 में तेजी से बढ़ती शीर्ष दो महत्वपूर्ण अर्थव्यवस्थाओं में से एक होगा। मजबूत वैश्विक विपरीत परिस्थितियों और कड़ी घरेलू मौद्रिक नीति के बावजूद, यदि भारत अभी भी 6.5 और 7.0 प्रतिशत के बीच बढ़ने की उम्मीद करता है और वह भी आधार प्रभाव के लाभ के बिना, तो यह भारत के अंतर्निहित आर्थिक लचीलेपन का प्रतिबिंब है, और अर्थव्यवस्था के विकास चालकों को पुनः प्राप्त करने, नवीनीकृत करने और फिर से सक्रिय करने की इसकी क्षमता है। भारत के आर्थिक लचीलेपन को विकास के लिए घरेलू प्रोत्साहन में देखा जा सकता है जो बाहरी प्रोत्साहनों की जगह ले सकता है। 

निर्यात में वृद्धि वित्त वर्ष 2023 की दूसरी छमाही में कम हो सकती है। हालाकि, वित्त वर्ष 2022 में उनके उछाल और वित्त वर्ष 2023 की पहली छमाही ने उत्पादन प्रक्रियाओं के गियर में हल्की तेजी से क्रूज मोड में बदलाव के लिए प्रेरित किया है।

खपत में फिर से वृद्धि को पेंट-अप मांग के बाहर निकलने के भी समर्थन मिला है, एक ऐसी घटना जो फिर से भारत के लिए अद्वितीय नहीं है, लेकिन फिर भी डिस्पोजेबल आय में खपत के हिस्से में वृद्दि से प्रभावित एक स्थानीय घटना का प्रदर्श से भारत के लिए अद्वितीय नहीं है, लेकिन फिर भी डिस  करती है। 

चूंकि भारत में प्रयोज्य आय में खपत का हिस्सा अधिक है इसलिए महामारी के कारण खपत को कम करने से बहुत अधिक परावर्तक की शक्ति का निर्माण हुआ। इसलिए खपत पुनर्वद्धि स्थायी शक्ति हो सकती है।

 

भारतीय अर्थव्यवस्था में मैक्रोइकॉनॉमिक और विकास संबंधी चुनौतियां

भारत पर महामारी के प्रभाव के कारण वित्त वर्ष 21 में एक महत्वूपर्ण जीडीपी संकुचन देखा गया था। अगले वर्ष, वित्तीय वर्ष 22. में भारतीय अर्थव्यवस्था जनवरी 2022 की ओमिक्रॉन लहर के बावजूद पटरी पर आने लगी थी। 

इस तीसरी लहर ने भारत में आर्थिक गतिविधियों को उतना प्रभावित नहीं किया, जितना महामारी की पिछली लहरों ने जनवरी 2020 में इसका प्रकोश शुरू होने पर प्रभावित किया था। स्थानीकृत लॉकडाउन, तेजी से टीकाकरण कवरेज, हल्के लक्षण और वायरस से जल्दी ठीक होने के कारण 2022 की जनवरी-मार्च तिमाही में आर्थिक उत्पादन के नुकसान को कम करने में मदद मिली। 

परिणास्वरूप, वित्तीय वर्ष 2022 का आउटपुट, कई देशों से पहले भारतीय अर्थव्यवस्था के पूरी तरह से पटरी पर आ जाने के कारण, वित्तीय वर्ष 20 के महामारी पूर् स्तर पर जा पहुंचा। ओमिक्रॉन वैरिएंट के साथ अनुभव ने एक सतर्क आशावाद को जन्म दिया कि महामारी के बावजूद शारिरिक रूस से गति शील रहना और आर्थिक गतिविधियों में संलग्न रहना संभव था। 

इस प्रकार, वित्त वर्ष 23 एक दृढ़ विश्वास के साथ शुरू हुआ कि महामारी तेजी से कम हो रही थी और भारत तेज गति से बढ़ने के लिए तैयार था और जल्दी ही महामारी पूर्व विकास पथ अग्रसर होने वाला था।

 

 

यूरोपीय सांर्ष ने वित्त वर्ष 23 में आर्थिक संवृद्धि और मुद्रास्फीति की प्रत्याशा में एक संशोधन आवश्यक कर दिया। जनवरी 2022 में देश की खुदरा मद्रास्फीति आरबीआई की स्वीकार्य सीमा से ऊपर चली गई थी। यह नवंबर से 6 प्रतिशत के लक्ष्य सीमा के ऊपरी छोर से नीचे लौटने से पहले दस महीनों के लिए लक्ष्य सीमा से ऊपर रही। 

उन दस महीनों के दौरान, अत्यधिक गर्मी और बेमौसम बारिश जैसे स्थीनय मौसम के चरम पर होने के बावजूद भी बढ़ती अंतराष्ट्रीय वस्तुओं की कीमतों ने भारत की खुदरा मद्रास्फीति में योगदान दिया, जिससे खाद्य कीमतों में वृद्धि हुई। 

सरकार ने उत्पाद और सीमा शुल्क में कटौती की और मुद्रास्फीती को नियंत्रित करने के लिए निर्यात को प्रतिबंधित किया, जबकि अन्य केंद्रीय बैंकों की तरह आरबीआई ने खेपो दरों में वृद्धि की और अतिरिक्त नकदी को वापस ले लिया।

 

 

अनुमान-2023-24

2023-24 के लिए अनुमान के विवरण में समीक्षा में बताया गया है कि महामारी से भारत की भरपाई अपेक्षाकृत तीव्र थी और ठोस घरेलू मांग के समर्थन और पूंजीगत निवेश में वृद्धि से आगामी वर्षों में प्रगति होगी। इसमें बताया गया है कि सशक्त वित्तीय घटकों के बल पर निजी क्षेत्र में पूंजी निर्माण प्रक्रिया का अंतर्निहित लक्षण परिलक्षित है और पूंजीगत व्यय में निजी क्षेत्र की सावधानी के लिए भरपाई करना और सरकार द्वारा पर्याप्त पूंजीगत व्यय जुटाना इससे भी अधिक महत्वपूर्ण बात है।

 

समीक्षा के अनुसार, वित्त वर्ष 16 से वित्त वर्ष 23 तक पिछले 7 वर्षों में बजटीय पूंजीगत व्यय में 2.7 गुणा वृद्धि हुई, जिससे पूंजीगत व्यय को मजबूती मिली। वस्तु एवं सेवाकर की शुरुआत और दिवाला एवं दीवालियापन संहिता जैसे रचनात्मक सुधारों से अर्थव्यवस्था की क्षमता और पारदर्शिता बढ़ी और वित्तीय अनुशासन एवं बेहतर अनुपालन सुनिश्चित हुआ।

 

अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष के वर्ल्ड इकनॉमिक आउटलुक, अक्टूबर 2022 के अनुसार, वैश्विक विकास का वर्ष  2023 में 3.2 प्रतिशत से धीमा होकर वर्ष 2023 में 2.7 प्रतिशत होने का अनुमान है। आर्थिक उत्पादन में धीमी वृद्धि के साथ बढ़ती अनिश्चितता व्यापार वृद्धि को कम कर देगी। वैश्विक व्यापार में वृद्धि के संबंध में विश्व व्यापार संगठन द्वारा वर्ष 2022 में 3.5 प्रतिशत से 2023 में 1.0 प्रतिशत गिरावट का पूर्वानुमान किया गया है।

 

बाह्य दृष्टि से, चालू  लेखा शेष के जोखिम अनेक स्रोतों से उत्पन्न होते हैं, जबकि वस्तुओं की कीमतें  रिकॉर्ड ऊंचाई से कम हो गई हैं, वे अभी भी संघर्ष-पूर्व  के स्तर से ऊपर हैं। वस्तुओं की उच्च कीमतों के बीच मजबूत घरेलू मांग से भारत के कुल आयात बिल में वृद्धि होगी और चालू खाता शेष में अलाभकारी विकास को बढ़ावा मिलेगा। वैश्विक मांग में कमी के कारण निर्यात वृद्धि को स्थिर करके इन्हें और बढ़ाया जा सकता है। यदि चालू लेखा घाटे में और वृद्धि होती है तो मुद्रा पर मूल्यह्रास का दबाव बढ़ेगा।

 

 

बढ़ी हुई मुद्रास्फीति सख्ती की प्रक्रिया को लंबा कर सकती है और इसलिए, उधार लेने की लागत लंबे समय तक अधिक रह सकती है। ऐसे परिदृश्य में, वैश्विक अर्थव्यवस्था में वित्तीय वर्ष 2024 में कम वृद्धि हो सकती है। तथापि धीमे वैश्विक विकास के परिदृश्य से दो उम्मीदें पैदा होती हैं- तेल की कीमतें कम रहेंगी, और भारत का सीएडी वर्तमान के स्तर से बेहतर होगा। कुल मिलाकर बाह्य स्थिति नियंत्रण में रहेगी।

 

 

भारत का समावेशी विकास

समीक्षा में इस बात पर जोर दिया गया है कि विकास तब समावेशी होता है, जब यह रोजगार सृजित करता है। आधिकारिक और गैर-आधिकारिक दोनों स्रोत इस बात की पुष्टि करते हैं कि चालू  वित्त वर्ष में रोजगार के स्तर में वृद्धि हुई है।  

आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (पीएलएफएस) से पता चलता है कि 15 वर्ष और उससे अधिक आयु के लोगों के लिए शहरी बेरोजगारी दर सितंबर 2021 को समाप्त तिमाही में 9.8 प्रतिशत से घटकर एक वर्ष बाद (सितंबर 2022 को समाप्त तिमाही में) 7.2 प्रतिशत हो गई। इसके साथ-साथ श्रम बल भागीदारी दर (एलएफपीआर) में भी सुधार हुआ है। यह वित्त वर्ष 2023 की शुरुआत में अर्थव्यवस्था के महामारी से प्रेरित मंदी से उभरने की पुष्टि करता है।

 

वित्तीय वर्ष 21 में, सरकार ने आपातकालीन क्रेडिट लाइन गारंटी योजना की घोषणा की। यह योजना सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों को वित्तीय संकट से बचाने में सफल रही। सिबिल की एक हालिया रिपोर्ट (ईसीएलजीएस अंतर्दृष्टि, अगस्त 2022 ने दिखाया कि इस योजना ने एमएसएमई को कोविड झटके का सामना करने में  मदद की है, जिसमें 83 प्रतिशत उधारकर्ताओं ने ईसीएलजीएस का सूक्ष्म-उद्यमों के रूप में लाभ उठाया है। इन सूक्ष्म इकाइयों में, आधे से अधिक का समग्र जोखिम 10 लाख रुपए से कम था।

 

इसके अलावा सिबिल डेटा से भी यह पता चलता है कि ईसीएलजीएस उधारकर्ताओं की अनुपयोज्य संपत्ति दरें उन उद्यमों की तुलना में कम थीं जो ईसीएलजीएस के लिए पात्र थे, लेकिन इसका लाभ नहीं उठाया। 

इसके अलावा, वित्त वर्ष 21 में गिरावट के बाद एमएसएमई द्वारा भुगतान किया गया जीएसटी तब से बढ़ रहा है और अब वित्तीय वर्ष 20 के पूर्व-महामारी स्तर को पार कर गया है, जो छोटे व्यवसायियों की वित्तीय लचीलापन और एमएसएमई के लिए लक्षित सरकार के हस्तक्षेप की प्रभावशीलता को दर्शाता है।

 

महात्मा  गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) के तहत सरकार द्वारा लागू की गई योजना किसी भी अन्य श्रेणी की तुलना में व्यक्तिगत भूमि पर काम के संबंध में तेजी से अधिक संपत्ति का सृजन कर रही है। इसके अतिरिक्त, ग्रामीण आबादी के आधे हिस्से को कवर करने वाले परिवारों के लिए लाभकारी पीएम-किसान जैसी योजनाएं और पीएम गरीब कल्याण अन्न योजना ने देश में गरीबी को कम करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।

 

जुलाई 2022 की यूएनडीपी रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में हाल ही में मुद्रास्फीति के प्रकरण में

अच्छे लक्षित समर्थन के कारण गरीबी पर कम प्रभाव पड़ेगा। इसके अलावा, भारत में राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) वित्तीय वर्ष 2016 की तुलना में वित्तीय वर्ष 2020 में ग्रामीण कल्याण संकेतकों में सुधार को दर्शाता है, जिसमें लिंग, प्रजनन दर, घरेलू सुविधाओं और महिला सशक्तिकरण जैसे पहलुओं को कवर किया गया है।

 

 

अब तक भारत के लिए आर्थिक लचीलापन के प्रति देश के विश्वास को मजबूत किया  है। अर्थव्यवस्था ने इस प्रक्रिया में विकास की गति को खोए बिना रूस-यूक्रेन संघर्ष के कारण हुए बाहरी असंतुलन को कम करने की चुनौती का सामना किया है। विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों द्वारा की गई निकासी से प्रभावित हुए बगैर चालू वर्ष 2022 में भारत के शेयर बाजारों में सकारात्मक वापसी हुई। कई उन्नत देशों और क्षेत्रों की तुलना में भारत की मुद्रास्फीति दर अपनी लक्षित सीमा से बहुत अधिक नहीं बढ़ी।

 

क्रय शक्ति समता (पीपीपी) के अनुसार भारत दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और बाजार विनिमय दरों में पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। इतने बड़े एक राष्ट्र की अपेक्षा के अनुसार वित्तीय वर्ष 2023 में भारतीय अर्थ व्यवस्था ने उसे ‘पुनः प्राप्त’ किया है, जो खो गया था, उसे ‘नवीनीकृत’ किया है, जो रुका हुआ था और उसे  ‘पुनः सक्रिय’ किया है, जो वैश्विक महामारी के दौरान और यूरोप में संघर्ष के बाद से धीमा हो गया था।

 

वैश्विक अर्थव्यवस्था विशिष्ट चुनौतियों का सामना कर रही है

 

समीक्षा में बताया गया है कि वैश्विक अर्थव्यवस्था लगभग 6 चुनौतियों का सामना कर रही है। कोविड-19 से संबंधित चुनौतियों के कारण रुकावट आई, रूस-यूक्रेन संघर्ष और इसके प्रतिकूल प्रभाव के साथ-साथ आपूर्ति श्रृंखला, मुख्य रूप से खाद्य, ईंधन तथा उर्वरक की आपूर्ति में बाधा उत्पन्न हुई और महंगाई को रोकने के लिए फेडरल रिजर्व की दरों में वृद्धि के कारण विभिन्न देशों के केंद्रीय बैंकों के सामने समस्याएं उत्पन्न हुईं। 

इसके परिणामस्वरूप अमरीकी डॉलर में उछाल आया और सकल आयात अर्थव्यवस्थाओं में चालू खाता घाटा बढ़ा। वैश्विक गतिरोध की संभावनाओं का सामना करते हुए, राष्ट्रों ने अपने संबंधित आर्थिक स्थिति की रक्षा करने के लिए मजबूरी महसूस की, सीमापार व्यापार धीमा कर दिया, जिसने विकास के लिए चौथी चुनौती पेश की। 

शुरुआत से पांचवीं चुनौती बढ़ रही थी, क्योंकि चीन ने अपनी नीतियों से प्रेरित काफी मंदी का अनुभव किया। विकास के लिए छठी मध्यम अवधि की चुनौती को शिक्षा और आय अर्जन के अवसरों के नुकसान से उत्पन्न महामारी से डरा हुआ देखा गया।

 

समीक्षा में बताया गया  है कि दुनिया के  बाकी हिस्सों की तरह, भारत ने भी इन असाधारण चुनौतियों का सामना किया, लेकिन अधिकांश अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में इसने उनका बेहतर तरीके से सामना किया।

 

पिछले ग्यारह महीनों में, विश्व अर्थव्यवस्था ने लगभग उतने ही व्यवधानों का सामना किया है, जितना दो वर्षों में महामारी के कारण हुआ है। संघर्ष के कारण कच्चे तेल, प्राकृतिक गैस, उर्वरक और गेहूं जैसी महत्वपूर्ण वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि हुई। 

इसने मुद्रास्फीति के दबावों को बढ़ाया, जिससे वैश्विक आर्थिक सुधार शुरू हो गया था, जो 2020 में उत्पादन संकुचन को सीमित करने के लिए बड़े पैमाने पर राजकोषीय प्रोत्साहन और अति-समायोजन कार्य मौद्रिक नीतियों से समर्थित था। 

उन्नत अर्थव्यवस्थाओं (एई) में मुद्रास्फीति, जो अधिकांश वैश्विक राजकोषीय विस्तार और मौद्रिक सहजता के लिए जिम्मेदार है, ने ऐतिहासिक ऊंचाइयों को पार कर लिया है। बढ़ती कमोडिटी की कीमतों ने उभरती बाजार अर्थव्यवस्थाओं (ईएमई) में भी उच्च मुद्रास्फीति को जन्म दिया, जो अन्यथा 2020 में आउटपुट संकुचन को संबोधित करने के लिए अपनी सरकारों द्वारा अंशाकित राजकोषीय प्रोत्साहन के आधार पर निम्न मुद्रास्फीति क्षेत्र में थे।

समीक्षा में बताया गया है कि मुद्रास्फीति और मौद्रिक तंगी ने सभी अर्थव्यवस्थाओं में बॉन्ड प्रतिफल को सख्त कर दिया और इसके परिणामस्वरूप दुनियाभर की अधिकांश अर्थव्यवस्थाओं से इक्विटी पूंजी का बहिर्वाह अमरीका के पारंपरिक रूप से सुरक्षित आश्रय बाजार में हो गया। 

पूंजी उड़ान ने बाद में अन्य मुद्राओं के प्रति अमरीकी डॉलर को मजबूत किया- जनवरी और सितंबर 2022 के बीच अमरीकी डॉलर सूचकांक 16.1 प्रतिशत मजबूत हुआ। अन्य मुद्राओं को परिणामी मूल्यह्रास सीएडी को बढ़ा रहा है और शुद्ध आयातक अर्थव्यवस्थाओं में मुद्रास्फीति के दबावों को बढ़ा रहा है।