Articles by "Entertainment"
Entertainment लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

All About Business

 AAB NEWS/ 31 JUL 2023 

सिनेमैटोग्राफ (संशोधन) विधेयक, 2023 को लोकसभा से मंजूरी मिलने के बाद आज संसद द्वारा पारित कर दिया गया। इस विधेयक को 20 जुलाई, 2023 को राज्यसभा में पेश किया गया था और चर्चा के बाद 27 जुलाई, 2023 को इसे पारित कर दिया गया था। 40 वर्षों के बाद सिनेमैटोग्राफ अधिनियम में संशोधन करने वाला यह ऐतिहासिक विधेयक संसद द्वारा पारित किया गया। 

सिनेमैटोग्राफ अधिनियम, 1952 में अंतिम महत्वपूर्ण संशोधन वर्ष 1984 में किया गया था। इस ऐतिहासिक विधेयक का उद्देश्य ‘पायरेसी’ की समस्या पर व्यापक रूप से अंकुश लगाना है, जिससे कुछ अनुमानों के अनुसार फिल्म उद्योग को 20,000 करोड़ रुपये का नुकसान होता है। 

इस विधेयक के प्रावधानों में न्यूनतम 3 महीने की कैद और 3 लाख रुपये के जुर्माने की सख्त सजा शामिल है, जिसे बढ़ाकर 3 साल तक की कैद और ऑडिट की गई कुल लागत का जुर्माना किया जा सकता है।

प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की यह परिकल्पना है कि भारत वास्तव में समृद्ध विरासत और सांस्कृतिक विविधता, जो भारत की ताकत है, के साथ दुनिया का कंटेंट हब बनने की अपार क्षमता रखता है। केन्द्रीय सूचना और प्रसारण मंत्री ने भी प्रधानमंत्री की इस परिकल्पना को आगे बढ़ाते हुए, भारतीय सिनेमा को भारत की सॉफ्ट पावर और भारतीय संस्कृति, समाज एवं मूल्यों को विश्व स्तर पर बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण योगदान करने वाला माना है। 

उन्होंने कहा, “व्यवसाय करने में आसानी के साथ भारतीय फिल्म उद्योग का सशक्तिकरण और गोपनीयता के खतरे से इसकी सुरक्षा, भारत में कंटेंट सृजन करने से जुड़े इकोसिस्टम के विकास का एक लंबा रास्ता तय करेगी और इस क्षेत्र में काम करने वाले सभी कलाकारों एवं कारीगरों के हितों की रक्षा करने में मदद करेगी।”

सिनेमैटोग्राफ (संशोधन) विधेयक, 2023 को जब आज लोकसभा में चर्चा और पारित करने के लिए रखा गया, तो इसके बारे में बोलते हुए केन्द्रीय सूचना और प्रसारण मंत्री श्री अनुराग सिंह ठाकुर ने कहा, “भारत को कहानीकारों के देश के रूप में जाना जाता है, जो हमारी समृद्ध संस्कृति, विरासत, परंपरा और विविधता को दर्शाता है। 

अगले तीन साल में हमारी फिल्म इंडस्ट्री 100 बिलियन डॉलर की हो जाएगी, जिससे लाखों लोगों को रोजगार मिलेगा। बदलते समय की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए पायरेसी से लड़ने तथा फिल्म इंडस्ट्री को और आगे बढ़ाने के लिए हम इस विधेयक को लेकर आए हैं। इन संशोधनों से फिल्म उद्योग को 20,000 करोड़ रुपये का नुकसान पहुंचाने वाली ‘पायरेसी की समस्या पर व्यापक रूप से अंकुश लगेगा।”

श्री ठाकुर ने आगे कहा, “सरकार ने हर 10 साल में फिल्म के लाइसेंस को नवीनीकृत करने की जरूरत को खत्म कर दिया है और इसे जीवन भर के लिए वैध बना दिया है। अब नवीनीकरण के लिए सरकारी दफ्तरों के चक्कर लगाने की जरूरत नहीं होगी। के. एम. शंकरप्पा बनाम भारत सरकार मामले के फैसले को ध्यान में रखते हुए, सरकार ने इसे पुनरीक्षण शक्ति से दूर रखा है और अब इस पर विचार करने की पूरी शक्ति का अधिकार सीबीएफसी के स्वायत्त निकाय के पास होगा।''

 

सिनेमैटोग्राफ (चलचित्र) संशोधन विधेयक:

सर्वप्रथम इस विधेयक के द्वारा फिल्मों की अनधिकृत रिकॉर्डिंग और प्रदर्शन की समस्या का समाधान प्रदान करने तथा इंटरनेट पर चोरी करके फिल्म की अनधिकृत प्रतियों के प्रसारण से होने वाले पायरेसी के खतरे को समाप्त करने का प्रयास किया गया है।

इस विधेयक का दूसरा उद्देश्य यह है कि इसके माध्यम से केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड द्वारा सार्वजनिक प्रदर्शन के लिए फिल्मों के प्रमाणन की प्रक्रिया में बदलाव करने के साथ-साथ फिल्मों के प्रमाणन के वर्गीकरण में सुधार करने का प्रयास किया जा रहा है।

तीसरा, विधेयक प्रचलित शासकीय आदेशों, उच्चतम न्यायालयों के निर्णयों और अन्य प्रासंगिक कानूनों के साथ वर्तमान कानून को सुसंगत बनाने का प्रयास करता है।

ए) पायरेसी की श्रेणी में आने वाली फिल्मों की अनधिकृत रिकॉर्डिंग तथा उनके प्रदर्शन पर रोक लगाने के प्रावधान: सिनेमाघरों में कैम-कॉर्डिंग के माध्यम से फिल्म पायरेसी की जांच करना; इसके अलावा सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि किसी भी फिल्म की पायरेटेड कॉपी अथवा किसी भी अनधिकृत कॉपी रखने और ऑनलाइन प्रसारण तथा प्रदर्शन पर रोक लगाने के उद्देश्य से इसमें सख्त दंडात्मक प्रावधान शामिल किए गए हैं।

बी) आयु-आधारित प्रमाणीकरण: मौजूदा यूए श्रेणी को तीन आयु-आधारित श्रेणियों में उप-विभाजित करके प्रमाणन की आयु-आधारित श्रेणियों की शुरुआत की गई है, अर्थात बारह वर्ष के बजाय सात वर्ष (यूए 7+), तेरह वर्ष (यूए 13+), और सोलह वर्ष (यूए 16+)। ये आयु-आधारित संकेतक केवल अनुशंसात्मक होंगे,

इस पहल का उद्देश्य माता-पिता अथवा अभिभावकों को यह विचार करने के लिए प्रेरित करना है कि क्या उनके बच्चों को ऐसी इस तरह की फिल्में देखनी चाहिए।

सी) उच्चतम न्यायालय के निर्णयों के अनुरूप: के. एम. शंकरप्पा बनाम भारत सरकार (2000) के मामले में उच्चतम न्यायालय के निर्णय के अनुसार केंद्र सरकार की पुनरीक्षण शक्तियों की अनुपस्थिति को देखना।

डी) प्रमाणपत्रों की सर्वकालिक वैधता: केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (सीबीएफसी) के प्रमाणपत्रों की सर्वकालिक वैधता हेतु अधिनियम में केवल 10 वर्षों के लिए प्रमाणपत्र की वैधता पर प्रतिबंध को हटाया जाना।

ई) टेलीविजन के लिए फिल्मों की श्रेणी में परिवर्तन: टेलीविजन पर प्रसारण के लिए संपादित की गई फिल्मों का पुन:प्रमाणीकरण, क्योंकि केवल अप्रतिबंधित सार्वजनिक प्रदर्शन वाली श्रेणी की फिल्में ही टेलीविजन पर दिखाई जा सकती हैं।

एफ) जम्मू और कश्मीर का संदर्भ: जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 के अनुरूप पूर्ववर्ती जम्मू और कश्मीर राज्य के संदर्भ को हटा दिया गया है।

भारतीय फिल्म उद्योग विश्व के सबसे बड़े और सर्वाधिक वैश्वीकृत उद्योगों में से एक है, यह हर वर्ष 40 से अधिक भाषाओं में 3,000 से अधिक फिल्मों का निर्माण करता है। बीते कुछ वर्षों में सिनेमा के माध्यम में और उससे जुड़े उपकरणों एवं प्रौद्योगिकी में महत्वपूर्ण बदलाव आ चुके हैं। 

इंटरनेट और सोशल मीडिया की सुलभता के साथ ही पायरेसी का खतरा भी कई गुना बढ़ गया है। सिनेमैटोग्राफ (संशोधन) विधेयक, 2023 आज संसद द्वारा पारित कर दिया गया, जो पायरेसी के खतरे को रोकने और व्यापार करने में सुगमता लाने के साथ ही भारतीय फिल्म उद्योग को सशक्त बनाने का मार्ग प्रशस्त करेगा।

Modernisation of TV & Radio-प्रसारण अवसंरचना नेटवर्क विकास (बीआईएनडी)" योजना को मिली मंजूरी

AAB NEWS/
कैबिनेट ने 4 जनवरी, 2023 को ऑल इंडिया रेडियो और दूरदर्शन के आधुनिकीकरण, उन्नयन और विस्तार के लिए 2539.61 करोड़ रुपये के परिव्यय के साथ "प्रसारण अवसंरचना नेटवर्क विकास (बीआईएनडी)" योजना को मंजूरी दी। 
 
यह योजना 2025-26 तक, अर्थात पांच साल की अवधि के लिए है। इस योजना में आकाशवाणी और दूरदर्शन की प्राथमिक परियोजनाएं शामिल हैं, जिनमें एफएम रेडियो नेटवर्क और मोबाइल टीवी कार्यक्रम निर्माण सुविधाओं के विस्तार और मजबूती पर ध्यान केंद्रित किया गया है, जिनके लिए 950 करोड़ रुपये निर्धारित किये गए हैं। इन परियोजनाओं को फास्ट-ट्रैक मोड पर पूरा किया जाएगा।

इस योजना का उद्देश्य एलडब्ल्यूई, सीमावर्ती और रणनीतिक क्षेत्रों में बेहतर अवसंरचना तैयार करना और सार्वजनिक प्रसारक की पहुंच को बढ़ाना है। घरेलू और अंतरराष्ट्रीय दर्शक - दोनों के लिए उच्च गुणवत्ता वाली सामग्री का विकास तथा अधिक चैनलों को समायोजित करने के लिए डीटीएच प्लेटफॉर्म की क्षमता के उन्नयन के जरिये विविध सामग्री की उपलब्धता, दर्शकों के लिए उपलब्ध विकल्पों का विस्तार करेगी। योजना का उद्देश्य मुख्य रूप से एलडब्ल्यूई और आकांक्षी जिलों पर ध्यान केंद्रित करते हुए टियर II और टियर-III शहरों में एफएम नेटवर्क का विस्तार करना है।

प्रसार भारती के दो प्रमुख स्तंभों में, आकाशवाणी, देश में 501 आकाशवाणी प्रसारण केंद्रों के माध्यम से 653 आकाशवाणी ट्रांसमीटरों (122 मीडियम वेव, 7 शोर्ट वेव और 524 एफएम ट्रांसमीटर) के साथ विश्व सेवा, पड़ोस सेवाएं, 43 विविध भारती चैनल, 25 रेनबो चैनल और 4 एफएम गोल्ड चैनल की सुविधा देते हुए अपने श्रोताओं को सेवाएं प्रदान करता है।

दूरदर्शन अपने दर्शकों को 66 दूरदर्शन केंद्रों के माध्यम से 36 डीडी चैनलों का प्रसारण करता है, जो विभिन्न वितरण प्लेटफार्मों, जैसे केबल, डीटीएच, आईपीटीवी "न्यूजऑनएयर" मोबाइल ऐप, विभिन्न यूट्यूब चैनलों और 190+ देशों में वैश्विक उपस्थिति वाले अपने अंतरराष्ट्रीय चैनल डीडी इंडिया के माध्यम से कार्यक्रम प्रसारित करते हैं।

बीआईएनडी योजना के तहत निम्नलिखित प्रमुख गतिविधियों की योजना बनाई गई है

आकाशवाणी

भौगोलिक क्षेत्र और आबादी के हिसाब से देश में एफएम कवरेज को क्रमशः 58.83 प्रतिशत और 68 प्रतिशत से बढ़ाकर 66.29 प्रतिशत और 80.23 प्रतिशत करना।

भारत - नेपाल सीमा पर आकाशवाणी के एफएम के कवरेज को मौजूदा 48.27 प्रतिशत से बढ़ाकर 63.02 प्रतिशत करना।

जम्मू एवं कश्मीर सीमा पर आकाशवाणी के एफएम के कवरेज को 62 प्रतिशत से बढ़ाकर 76 प्रतिशत करना।

30,000 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र को कवर करने के लिए रामेश्वरम में 300 मीटर उंचे टावर पर 20 किलोवाट क्षमता का एक एफएम ट्रांसमीटर स्थापित किया जाएगा।

दूरदर्शन

प्रसार भारती के केन्द्रों में नवीनतम प्रसारण एवं स्टूडियो उपकरण स्थापित करके दूरदर्शन और आकाशवाणी के चैनलों को नया स्वरूप देना।

डीडीके विजयवाड़ा और लेह स्थित अर्थ स्टेशनों का 24 घंटे प्रसारण वाले चैनलों के रूप में उन्नयन।

प्रतिष्ठित राष्ट्रीय समारोह/कार्यक्रमों और वीवीआईपी कवरेज को कवर करने के लिए फ्लाई अवे यूनिटों की शुरुआत।

28 क्षेत्रीय दूरदर्शन चैनलों को हाई-डेफिनिशन प्रोग्राम प्रोडक्शन में सक्षम केंद्रों के रूप में विकसित किया जाएगा।

पूरे दूरदर्शन नेटवर्क में 31 क्षेत्रीय समाचार इकाइयों को कारगर तरीके से समाचार एकत्र करने के लिए नवीनतम उपकरणों के साथ उन्नत एवं आधुनिक बनाया जाएगा।

एचडीटीवी चैनलों को अपलिंक करने हेतु डीडीके गुवाहाटी, शिलांग, आइजोल, ईटानगर, अगरतला, कोहिमा, इंफाल, गंगटोक और पोर्ट ब्लेयर के अर्थ स्टेशनों का उन्नयन और प्रतिस्थापन।

इस योजना की कुछ प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित हैं: देश के छह लाख वर्गमीटर से अधिक इलाके, मुख्य रूप से श्रेणी- II और श्रेणी - III शहरों, एलडब्ल्यूई और सीमावर्ती इलाकों तथा आकांक्षी जिलों में एफएम कवरेज को बढ़ाने के लिए 100 वाट क्षमता वाले 100 ट्रांसमीटरों के अलावा 10 किलोवाट एवं उच्च क्षमता के 41 एफएम ट्रांसमीटर।
 
डीडी फ्री डिश की क्षमता को मौजूदा 116 चैनलों से बढ़ाकर लगभग 250 चैनलों तक पहुंचाना ताकि चैनलों का एक समृद्ध एवं विविध गुलदस्ता निशुल्क उपलब्ध कराया जा सके।
 
यहां यह बताना प्रासंगिक है कि डीडी फ्री डिश प्रसार भारती का फ्री-टू-एयर डायरेक्ट टू होम (डीटीएच) प्लेटफॉर्म है, जिसके अनुमानित 4.30 करोड़ कनेक्शन हैं (फिक्की और ई एंड वाई रिपोर्ट 2022 के अनुसार) जो इसे भारत का सबसे बड़ा डीटीएच प्लेटफॉर्म बनाते हैं। डीडी फ्री डिश के दर्शकों को इस प्लेटफॉर्म के चैनल देखने के लिए किसी मासिक या वार्षिक शुल्क का भुगतान करने की जरूरत नहीं है। 
 
इस प्लेटफॉर्म के पास 167 टीवी चैनलों का समृद्ध गुलदस्ता है जिसमें 49 दूरदर्शन और संसद चैनल, प्रमुख प्रसारकों के 77 निजी टीवी चैनल (11 जीईसी, 14 मूवी, 21 समाचार, 7 संगीत, 9 क्षेत्रीय, 7 भोजपुरी, 1 खेल, 5 भक्ति चैनल, 3 विदेशी चैनल), 51 शैक्षिक चैनल और 48 रेडियो चैनल शामिल हैं।
आपदा या प्राकृतिक आपदा की स्थिति में निर्बाध डीटीएच सेवा सुनिश्चित करने के लिए डीडी फ्री डिश डिजास्टर रिकवरी सुविधा की स्थापना।
 
सहज और कुशल निर्माण एवं प्रसारण के लिए फील्ड स्टेशनों की प्रसारण सुविधाओं का स्वचालन और आधुनिकीकरण। इसमें स्वचालित प्लेआउट सुविधाएं, न्यूज प्रोडक्शन प्रणाली के लिए समाचार कक्ष में कंप्यूटर प्रणाली, रियल टाईम प्रोडक्शन में संपादन और प्रसारण को पूरा करने के लिए फ़ाइल आधारित कार्य प्रवाह, नवीनतम स्टूडियो कैमरे, लेंस, स्विचर्स, राउटर्स आदि तथा पूरे देश भर में दूरदर्शन के फील्ड स्टेशनों के लिए अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी के प्रावधान शामिल हैं। यह क्षमता निर्माण उपाय दूरदर्शन को समय के अनुरूप प्रौद्योगिकी और आधुनिक टीवी स्टूडियो प्रोडक्शन की तकनीक से ताममेल करने में सक्षम बनाएगा।
 
मनोरंजन, स्वास्थ्य, शिक्षा, युवा, खेल और अन्य सार्वजनिक सेवा सामग्री पर ध्यान देने के साथ क्षेत्रीय भाषाओं सहित समृद्ध सामग्री उपलब्ध करना। त्वरित प्रतिक्रिया क्षमताओं के साथ समाचार एकत्र करने की सुविधाओं को मजबूत बनाना और स्थानीय समाचार कवरेज की हिस्सेदारी बढ़ाने के लिए अर्ध-ग्रामीण क्षेत्रों में इसका विस्तार करना।
 

दृष्टिगत रूप से आकर्षक कार्यक्रमों के कंटेंट निर्माण के लिए ऑगमेंटेड रियलिटी और वर्चुअल रियलिटी जैसी नई तकनीकों का समावेश।

उपग्रह ट्रांसपोंडरों के कुशल उपयोग के लिए स्पेक्ट्रम कुशल प्रौद्योगिकी के साथ मौजूदा अप-लिंक स्टेशनों को अपग्रेड करना।

ऑल इंडिया रेडियो और दूरदर्शन नेटवर्क में डेटा प्रवाह के प्रभावी प्रबंधन के साथ गवर्नेंस में दक्षता और पारदर्शिता लाना।

घरेलू और वैश्विक दर्शकों दोनों के लिए डिजिटल पहुंच में महत्वपूर्ण बढ़ोत्तरी करना।

दूरस्थ, जनजातीय, एलडब्ल्यूई और सीमावर्ती क्षेत्रों में 8 लाख से अधिक डीडी डीटीएच रिसीवर सेटों के मुफ्त वितरण की योजना बनाई गई है ताकि इन क्षेत्रों में दर्शकों को टेलीविजन और रेडियो सेवाओं का उपयोग करने में सक्षम बनाया जा सके।

यह योजना प्रसारण उपकरणों की आपूर्ति और स्थापना से संबंधित विनिर्माण और सेवाओं के माध्यम से अप्रत्यक्ष रोजगारों का सृजन भी करेगी। विभिन्न मीडिया क्षेत्रों के सामग्री उत्पादन क्षेत्र में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रोजगार भी उपलब्ध होंगे।

Self-Regulation is Must For OTT Platform-स्व-नियमन  निकाय में नहीं रहेगा सरकार का नुमाइंदा

एएबी समाचार ।
केंद्रीय सूचना और प्रसारण मंत्री प्रकाश जावडेकर ने ऑल्ट बालाजी, हॉटस्टार, एमेजॉन प्राइम, नेटफ्लिक्स, जियो, ज़ी5, वायाकॉम 18, शेमारू, एमएक्स प्लेयर आदि सहित विभिन्न ओटीटी प्लेटफार्मों के प्रतिनिधियों के साथ बातचीत की।

इस उद्योग के प्रतिनिधियों को संबोधित करते हुए केंद्रीय मंत्री ने जिक्र किया कि सरकार ने अतीत में ओटीटी कंपनियों के साथ कई दौर की बातचीत की है और स्व-नियमन की जरूरत पर बल दिया है।

श्री जावडेकर ने कहा कि उन्हें सिनेमा और टीवी उद्योग के प्रतिनिधियों ने कहा है कि जहां उनके लिए नियमन मौजूद हैं, वहीं ओटीटी उद्योग के लिए कोई नियमन नहीं है। इस प्रकार यह निर्णय लिया गया कि सरकार ओटीटी कंपनियों के लिए प्रगतिशील संस्थागत तंत्र लेकर आएगी और स्व-नियमन के विचार के साथ उनके लिए एक बराबरी की जमीन विकसित करेगी। मंत्री महोदय ने सराहना की कि कई ओटीटी प्लेटफार्मों ने इन नियमों का स्वागत किया है।

इस उद्योग के प्रतिनिधियों को नियमों के प्रावधानों के बारे में सूचित करते हुए श्री जावडेकर ने कहा कि उन्हें केवल जानकारी का खुलासा करने की आवश्यकता है, उन्हें मंत्रालय के साथ किसी भी प्रकार का पंजीकरण करने की कोई जरूरत नहीं है। मंत्री महोदय ने कहा कि इसके लिए एक फॉर्म जल्द ही तैयार हो जाएगा। इसके अलावा, ये नियम सेंसरशिप के किसी भी रूप के बजाय विषय वस्तु के आत्म वर्गीकरण पर ही ध्यान केंद्रित करते हैं। इसके अलावा ओटीटी प्लेटफार्मों से उम्मीद की जाती है कि वे एक प्रभावी शिकायत निवारण तंत्र विकसित करेंगे।

अफवाहों को खारिज करते हुए केंद्रीय मंत्री ने स्पष्ट किया कि इस स्व-नियमन निकाय में कोई भी सदस्य सरकार द्वारा नियुक्त नहीं किया जाएगा।

इन नियमों के अंतर्गत सरकार की शक्ति पर बात करते हुए माननीय मंत्री ने बताया कि जो शिकायतें स्व-नियमन के स्तर पर अनसुलझी रहेंगी उन्हें देखने के लिए सरकार अंतर विभागीय समिति बनाएगी।

इस उद्योग के प्रतिनिधियों ने नए नियमों का स्वागत किया और अपनी अधिकांश चिंताओं को दूर करने के लिए मंत्री महोदय का शुक्रिया अदा किया। अंत में श्री जावडेकर ने कहा कि उनका मंत्रालय इस उद्योग के किसी भी प्रश्न या स्पष्टीकरण के लिए हमेशा तैयार है।



Govt-Issued-Guidelines-for-OTT-Platform-निर्देशों-का-पालन-सूचना-एवं-प्रसारण-मंत्रालय-कराएगा

एएबी समाचार ।
डिजिटल मीडिया से जुड़ी पारदर्शिता के अभाव, जवाबदेही और उपयोगकर्ताओं के अधिकारों को लेकर बढ़ती चिंताओं के बीच आम जनता और हितधारकों के साथ विस्तृत सलाह-मशविरा के बाद सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 87(2) के तहत मिले अधिकारों का उपयोग करते हुए और पूर्व सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती संस्‍थानों के लिए दिशा-निर्देश) नियम 2011 के स्‍थान पर सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती संस्‍थानों के लिए दिशा-निर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम 2021 तैयार किए गए हैं।

इन नियमों को अंतिम रूप देते समय इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय और सूचना व प्रसारण मंत्रालय दोनों ने आपस में विस्तृत विचार-विमर्श किया, ताकि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के साथ-साथ डिजिटल मीडिया और ओटीटी (ओवर द टॉप) प्लेटफॉर्म, इत्‍यादि के संबंध में एक सामंजस्यपूर्ण एवं अनुकूल निगरानी व्‍यवस्‍था सुनिश्चित की जा सके।

इन नियमों का भाग-II इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय द्वारा संचा‍लित किया जाएगा, जबकि डिजिटल मीडिया के संबंध में आचार संहिता और प्रक्रिया एवं हिफाजत से संबंधित भाग- III को सूचना और प्रसारण मंत्रालय द्वारा संचा‍लित किया जाएगा।

 

पृष्ठभूमि: डिजिटल मीडिया मंच का फैलाव

 

डिजिटल इंडिया कार्यक्रम ने अब एक आंदोलन का रूप ले लिया है जो प्रौद्योगिकी की ताकत के बल पर आम भारतीयों को सशक्त बना रहा है। मोबाइल फोन, इंटरनेट, इत्‍यादि के व्यापक प्रसार ने कई सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों को भी भारत में अपनी पैठ को मजबूत करने में सक्षम कर दिया है।आम लोग भी इन प्लेटफॉर्मों का उपयोग अत्‍यंत महत्वपूर्ण तरीके से कर रहे हैं। कुछ पोर्टल, जो सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों के बारे में विश्लेषण प्रकाशित करते हैं और जिनको लेकर कोई विवाद नहीं है, ने भारत में प्रमुख सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों के उपयोगकर्ताओं की कुल संख्‍या के बारे में निम्‍नलिखित आंकड़े पेश किए हैं:

 

व्हाट्सएप के उपयोगकर्ता: 53 करोड़

यूट्यूब के उपयोगकर्ता 44.8 करोड़

फेसबुक के उपयोगकर्ता: 41 करोड़

इंस्टाग्राम के उपयोगकर्ता: 21 करोड़

ट्विटर के उपयोगकर्ता: 1.75 करोड़

 

इन सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों ने आम भारतीयों को अपनी रचनात्मकता दिखाने, सवाल पूछने, विभिन्‍न सूचनाओं से अवगत होने और सरकार एवं उसके अधिकारियों की आलोचना करने सहित अपने-अपने विचारों को खुलकर साझा करने में सक्षम बनाया है। सरकार लोकतंत्र के एक अनिवार्य अंग के रूप में आलोचना करने एवं असहमति व्‍यक्‍त करने से संबंधित प्रत्येक भारतीय के अधिकार को स्वीकार करती है और उसका सम्मान करती है। 

भारत दुनिया का सबसे बड़ा खुला इंटरनेट समाज है और सरकार सोशल मीडिया कंपनियों द्वारा भारत में अपना संचालन करने, कारोबार करने और इसके साथ ही मुनाफा कमाने का भी स्वागत करती है। हालांकि, इन कंपनियों को भारत के संविधान और कानूनों के प्रति जवाबदेह होना पड़ेगा।

सोशल मीडिया का प्रसार, एक तरफ नागरिकों को सशक्त बनाता है तो दूसरी तरफ कुछ गंभीर चिंताओं और आशंकाओं को जन्म देता है जो हाल के वर्षों में कई गुना बढ़ गए हैं। इन चिंताओं को समय-समय पर, संसद और इसकी समितियों, न्यायिक आदेशों और देश के विभिन्न हिस्सों में सिविल सोसाइटी द्वारा किए गए विचार-विमर्श समेत विभिन्न मंचों पर उठाया गया है। इस तरह की चिंताओं को दुनिया भर में भी उठाया जाता है और यह एक अंतरराष्ट्रीय मुद्दा बन गया है। 

हाल में, सोशल मीडिया प्लेटफार्मों पर कुछ बहुत परेशान करने वाले घटनाक्रम देखे गए हैं। फर्जी खबरों के लगातार प्रसार ने कई मीडिया प्लेटफार्मों को तथ्य-जांच तंत्र बनाने के लिए मजबूर किया है। महिलाओं की छेड़छाड़ वाली तस्वीरों और बदला लेने वाली पोर्न से संबंधित सामग्री को साझा करने के लिए सोशल मीडिया के दुरुपयोग ने महिलाओं की गरिमा के लिए खतरा पैदा किया है।

कॉरपोरेट प्रतिद्वंद्विता को अनैतिक तरीके से निपटाने के लिए सोशल मीडिया का दुरुपयोग, व्यापार जगत के लिए एक बड़ी चिंता का विषय बन गया है। प्लेटफार्मों के माध्यम से अपमानजनक भाषा, अनर्गल और अश्लील सामग्री तथा धार्मिक भावनाओं के प्रति असम्मानजनक विचारों के इस्तेमाल की घटनाएं बढ़ रहीं हैं।

पिछले कई वर्षों से, अपराधियों और राष्ट्र-विरोधी तत्वों द्वारा सोशल मीडिया के दुरुपयोग के बढ़ते मामलों ने कानून प्रवर्तन एजेंसियों के लिए नई चुनौतियां पैदा की हैं। इनमें शामिल हैं- आतंकवादियों की भर्ती के लिए लोगों को उकसाना, अश्लील सामग्री का प्रसार, असहिष्णुता फैलाना, वित्तीय धोखाधड़ी, हिंसा भड़काना आदि।

यह पाया गया कि वर्तमान में कोई मजबूत शिकायत तंत्र नहीं है, जिसमें सोशल मीडिया और ओटीटी प्लेटफार्मों के सामान्य उपयोगकर्ता अपनी शिकायत दर्ज कर सकते हैं और निश्चित समय-सीमा के भीतर इसका समाधान कर सकते हैं। 

पारदर्शिता की कमी और मजबूत शिकायत समाधान तंत्र की अनुपस्थिति ने उपयोगकर्ताओं को पूरी तरह से सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों के मनमौजीपन पर निर्भर कर दिया है। अक्सर देखा जाता है कि एक उपयोगकर्ता जिसने सोशल मीडिया प्रोफाइल विकसित करने में अपना समय, ऊर्जा और पैसा खर्च किया है, उसकी प्रोफ़ाइल को प्लेटफार्म द्वारा प्रतिबंधित कर दिया जाता है या हटा दिया जाता है। उसे सुनवाई का मौका भी नहीं दिया जाता और ऐसी स्थिति में उपयोगकर्ता के पास कोई उपाय नहीं बचता है।

सोशल मीडिया और अन्य मध्यस्थों का विकास:

यदि हम सोशल मीडिया मध्यस्थों के विकास पर गौर करते हैं, तो पाते हैं कि वे अब केवल मध्यस्थ की भूमिका निभाने तक सीमित नहीं हैं और अक्सर वे प्रकाशक बन जाते हैं। इन नियमों में उदार भावना के साथ स्व-नियामक तंत्र का अच्छा मिश्रण है। यह देश के मौजूदा कानूनों और अधिनियमों के अनुसार काम करता है, जो ऑनलाइन या ऑफलाइन सामग्री पर समान रूप से लागू होते हैं। 

समाचार और सामयिक घटनाक्रम के संदर्भ में प्रकाशकों से उम्मीद की जाती है कि वे प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया के पत्रकार आचरण और केबल टेलीविजन नेटवर्क अधिनियम के तहत कार्यक्रम संहिता का पालन करेंगे, जो पहले से ही प्रिंट और टीवी पर लागू हैं। इसलिए, प्रस्ताव में समानता के आधार को प्रमुखता दी गयी है।

नए दिशा-निर्देशों का औचित्य

ये नियम, डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म के आम उपयोगकर्ताओं को उनके अधिकारों के उल्लंघन के मामले में उनकी शिकायतों के समाधान होने और इनकी जवाबदेही तय करने के लिए पर्याप्त रूप से सशक्त बनाते हैं। इस दिशा में, निम्नलिखित घटनाक्रम उल्लेखनीय हैं:

सर्वोच्च न्यायालय ने रिट याचिका (प्रज्जवल मुकदमा) पर स्वतः संज्ञान लेते हुए 11 दिसम्बर, 2018 के आदेश में कहा था कि भारत सरकार सामग्री उपलब्ध कराने वाले प्लेटफॉर्म और अन्य अनुप्रयोगों में चाइल्ड पोर्नोग्राफी, रेप और गैंगरेप की तस्वीरों, वीडियो तथा साइट को खत्म करने के लिए आवश्यक दिशा-निर्देश तैयार कर सकती है।

सर्वोच्च न्यायालय ने 24 सितम्बर, 2019 के आदेश में नए नियमों को अधिसूचित करने की प्रक्रिया को पूरा करने के संबंध में, इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय को समय-सीमा से अवगत कराने का निर्देश दिया था।

सोशल मीडिया के दुरुपयोग और फर्जी खबरों के प्रसार पर राज्यसभा में एक ध्यानाकर्षण प्रस्ताव लाया गया था और मंत्री महोदय ने 26 जुलाई, 2018 को सदन को अवगत कराया था कि सरकार कानूनी ढांचे को मजबूत करने और कानून के तहत सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को जवाबदेह बनाने के लिए प्रतिबद्ध है। सुधार के उपाय करने के संबंध में संसद सदस्यों की बार-बार मांग के बाद उन्होंने यह जानकारी दी थी।     

राज्यसभा की तदर्थ समिति ने सोशल मीडिया पर पोर्नोग्राफी के चिंताजनक मुद्दे और बच्चों तथा समाज पर इसके प्रभाव का अध्ययन करने के बाद 03 फरवरी, 2020 को अपनी रिपोर्ट पेश की और ऐसी सामग्री के मूल निर्माता की पहचान को सक्षम बनाने की सिफारिश की थी।

परामर्श:     

इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (एमईआईटीवाई) ने मसौदा नियम तैयार किए और 24 दिसम्बर, 2018 को लोगों से सुझाव आमंत्रित किये। एमईआईटीवाई को आम लोगों, सिविल सोसाइटी, उद्योग संघ और संगठनों से 171 सुझाव प्राप्त हुए। इन सुझावों पर 80 जवाबी टिप्पणियां भी प्राप्त हुईं। इन सुझावों/टिप्पणियों का विस्तार से विश्लेषण किया गया तथा एक अंतर-मंत्रालयी बैठक भी आयोजित की गई।  तदनुसार, इन नियमों को अंतिम रूप दिया गया।   

 

मुख्य विशेषताएं

 

इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय द्वारा प्रबंधित किए जाने वाले सोशल मीडिया से संबंधित दिशा-निर्देश :

 

मध्यवर्ती इकाइयों द्वारा पालन की जाने वाली जांच-परख :  नियमों में सुझाई गई जांच-परख का सोशल मीडिया मध्यवर्ती इकाइयों सहित मध्यवर्तियों (बिचौलियों) द्वारा पालन किया जाना चाहिए। अगर मध्यवर्ती इकाइयों द्वारा जांच-परख का पालन नहीं किया जाता है तो सेफ हार्बर का प्रावधान उन पर लागू नहीं होगा।

शिकायत निवारण तंत्र : उपयोगकर्ताओं को सशक्त बनाने से जुड़े नियमों के तहत सोशल मीडिया मध्यवर्ती इकाइयों सहित मध्यस्थों को उपयोगकर्ताओं या पीड़ितों से मिली शिकायतों के समाधान के लिए एक शिकायत निवारण तंत्र स्थापित करना अनिवार्य कर दिया गया है। 

मध्यस्थों को ऐसी शिकायतों के निस्तारण के लिए एक शिकायत अधिकारी की नियुक्ति करनी होगी और इस अधिकारी का नाम व संपर्क विवरण साझा करना होगा। शिकायत अधिकारी को शिकायत पर 24 घंटे के भीतर पावती भेजनी होगी और इसके प्राप्त होने के 15 दिनों के भीतर समाधान करना होगा।

उपयोगकर्ताओं विशेष रूप से महिला उपयोगकर्ताओं की ऑनलाइन सुरक्षा और गरिमा सुनिश्चित करना :मध्यस्थों को कंटेंट की शिकायत मिलने के 24 घंटों के भीतर इसे हटाना होगा या उस तक पहुंच निष्क्रिय करनी होगी, जो किसी व्यक्ति के निजी क्षेत्रों को उजागर करते हों, किसी व्यक्ति को पूर्ण या आंशिक रूप से निर्वस्त्र या यौन क्रिया में दिखाते हों या बदली गई छवियों सहित छद्मरूप में दिखाए गए हों। ऐसी शिकायत या तो किसी व्यक्ति द्वारा या उनकी तरफ से किसी अन्य व्यक्ति द्वारा दर्ज कराई जा सकती है।

सोशल मीडिया मध्यस्थों की दो श्रेणियां : नवाचार को प्रोत्साहन देने और छोटे प्लेटफॉर्म्स को नियंत्रित किए बिना नए सोशल मीडिया मध्यस्थों के विकास को सक्षम बनाने के लिए अनुपालन आवश्यकताओं की अहमियत को देखते हुए, नियमों में सोशल मीडिया मध्यस्थों और प्रमुख सोशल मीडिया मध्यस्थों के बीच अंतर स्पष्ट किया गया है।

 यह विभेदन सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर उपयोगकर्ताओं की संख्या के आधार पर है। सरकार को उपयोगकर्ता आधार की सीमा को अधिसूचित करने का अधिकार मिल गया है, जो सोशल मीडिया मध्यस्थों और प्रमुख सोशल मीडिया मध्यस्थों के बीच अंतर करेगा। नियमों के तहत, प्रमुख सोशल मीडिया मध्यस्थोंको कुछ अतिरिक्त जांच-परख का पालन करने की जरूरत होगी।

प्रमुख सोशल मीडिया मध्यस्थों द्वारा अतिरिक्त जांच-परख का पालन :

एक मुख्य अनुपालन अधिकारी की नियुक्ति, जो अधिनियम और नियमों क साथ अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए उत्तरदायी होगा। ऐसा व्यक्ति भारत का निवासी होना चाहिए।

कानून प्रवर्तन एजेंसियों के साथ 24x7 समन्वयन के लिए एक नोडल संपर्क व्यक्ति की नियुक्ति। ऐसा व्यक्ति भारत का निवासी होगा।

एक रेजीडेंट शिकायत अधिकारी की नियुक्ति, जो शिकायत समाधान तंत्र के अंतर्गत उल्लिखित कामकाज करेगा। ऐसा व्यक्ति भारत का निवासी होगा।

एक मासिक अनुपालन रिपोर्ट प्रकाशित करनी होगी, जिसमें मिलने वाली शिकायतों और शिकायतों पर की गई कार्रवाई के साथ ही प्रमुख सोशल मीडिया मध्यस्थों द्वारा तत्परता से हटाए गए कंटेंट के विवरण का उल्लेख करना होगा।

प्राथमिक रूप से संदेश के रूप में सेवाएं दे रहे प्रमुख सोशल मीडिया मध्यस्थों को पहली बार सूचना जारी करने वाले की पहचान में सक्षम बनाया जाएगा, जो भारत की सम्प्रभुता और अखंडता, देश की सुरक्षा, दूसरे देशों के साथ मित्रतापूर्ण संबंधों, या सार्वजनिक आदेश से संबंधित अपराध या उक्त से संबंधित या बलात्कार, यौन सामग्री या बाल यौन शोषण सामग्री से संबंधित सामग्री, जिसमें कम से कम पांच साल के कारावास की सजा होती है, से जुड़े अपराधों को बढ़ावा देने वालों पर रोकथाम, पता लगाने, जांच, मुकदमे या सजा के प्रस्ताव के लिए जरूरी है।

प्रमुख सौशल मीडिया मध्यस्थों को अपनी वेबसाइट या मोबाइल ऐप या दोनों पर भारत में अपना भौतिक संपर्क पता प्रकाशित करना होगा।

स्वैच्छिक उपयोगकर्ता सत्यापन तंत्र : स्वैच्छिक रूप से अपने खातों का सत्यापन कराने के इच्छुक उपयोगकर्ताओं को अपने खातों के सत्यापन के लिए एक उचित तंत्र उपलब्ध कराया जाएगा और सत्यापन का प्रदर्शन योग्य और दृश्य चिह्न उपलब्ध कराया जाएगा।

उपयोगकर्ताओं को मिलेगा अपना पक्ष रखने का अवसर : उस स्थिति में, जहां प्रमुख सोशल मीडिया मध्यस्थों ने अपने हिसाब से किसी जानकारी को हटा दिया है या उस तक पहुंच निष्क्रिय कर दी है तो उस जानकारी को साझा करने वाले को इस संबंध में सूचित किया जाएगा जिसमें इस कार्रवाई का आधार और वजह विस्तार से बताई जाएगी। उपयोगकर्ता को मध्यस्थों द्वारा की गई कार्रवाई का विरोध करने के लिए पर्याप्त और वाजिब अवसर दिया जाना चाहिए।

गैर कानूनी जानकारी को हटाना : अदालत के आदेश के रूप में या अधिकृत अधिकारी के माध्यम से उपयुक्त सरकार या उसकी एजेंसियों द्वारा अधिसूचित की जा रही वास्तविक जानकारी मिलने पर मध्स्थों द्वारा उसे पोषित या ऐसी कोई जानकारी प्रकाशित नहीं करनी चाहिए जो भारत की सम्प्रभुता और अखंडता, सार्वजनिक आदेश, दूसरे देशों के साथ मित्रवत संबंधों आदि के हित के संबंध में किसी कानून के तहत निषेध हो।

राजपत्र में इनके प्रकाशन की तारीख के साथ ही ये नियम प्रभावी हो जाएंगे, हालांकि प्रमुख सोशल मीडिया मध्यस्थों के लिए अतिरिक्त जांच-परख के नियम इन नियमों के प्रकाशन के 3 महीनों के बाद प्रभावी होंगे

डिजिटल मीडिया और ओटीटी प्लेटफॉर्म्स से संबंधित डिजिटल मीडिया आचार संहिता का पालन सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय द्वारा कराया जाएगा :

डिजिटल मीडिया और ओटीटी प्लेटफॉर्म्स दोनों पर प्रकाशित डिजिटल कंटेंट से संबंधित मुद्दों को लेकर व्यापक स्तर पर चिंताएं हैं। सिविल सोसाइटी, फिल्म निर्माता, मुख्यमंत्री सहित राजनेता, व्यापारिक संगठन और संघों सभी ने अपनी-अपनी चिंताएं जाहिर की हैं और एक उपयुक्त संस्थागत तंत्र विकसित करने की जरूरत को रेखांकित किया है। 

सरकार सिविल सोसाइटी और अभिभावकों की तरफ से कई शिकायतें मिली हैं, साथ ही हस्तक्षेप की मांग की गई हैं। उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों में ऐसे कई मामले आए थे, जिनमें अदालतों ने सरकार से उपयुक्त उपाय करने का भी अनुरोध किया था।

चूंकि मामला डिजिटल प्लेटफॉर्म्स से संबंधित है, इसलिए सावधानी से फैसला लिया गया कि डिजिटल मीडिया और ओटीटी व इंटरनेट पर आने वाले अन्य रचनात्मक कार्यक्रमों की देखरेख सूचना और प्रसारण मंत्रालय द्वारा की जाएगी, लेकिन यह समग्र व्यवस्था सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम के अधीन रहेगी जो डिजिटल प्लेटफॉर्म्स को नियंत्रित करता है।

परामर्श :

सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने दिल्ली, मुंबई और चेन्नई में बीते डेढ़ साल परामर्श किया, जहां ओटीटी कंपनियों ने स्व नियामक तंत्र विकसित करने का अनुरोध किया। सरकार ने भी सिंगापुर, ऑस्ट्रेलिया, ईयू और यूके सहित कई अन्य देशों के मॉडलों का अध्ययन किया और पाया कि इनमें से अधिकांश में या तो डिजिटल कंटेंट के नियमन की संस्थागत व्यवस्था है या वे इसकी स्थापना की प्रक्रिया से गुजर रहे हैं।

ये नियम एक उदार स्व नियामकीय व्यवस्था और एक आचार संहिता व समाचार प्रकाशकों, ओटीटी प्लेटफॉर्म्स और डिजिटल मीडिया के लिए तीन स्तरीय समाधान तंत्र स्थापित करते हैं।

सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 87 के अंतर्गत अधिसूचित ये नियम सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय को नियमों के भाग-3 को लागू करने के लिए सशक्त बनाते हैं, जिसमें निम्नलिखित सुझाव दिए हैं :

ऑनलाइन समाचारों, ओटीटी प्लेटफॉर्म्स और डिजिटल मीडिया के लिए आचार संहिता : यह संहिता ओटीटी प्लेटफॉर्म्स, ऑनलाइन समाचार और डिजिटल मीडिया इकाइयों द्वारा पालन किए जाने वाले दिशा-निर्देश सुझाती है।

कंटेंट का स्व वर्गीकरण : ओटीटी प्लेटफॉर्म्स, जिन्हें नियमों में ऑनलाइन क्यूरेटेड कंटेंट के प्रकाशक कहा गया है, को पांच उम्र आधारित श्रेणियों- यू (यूनिवर्सल), यू/ए 7+, यू/ए 13+, यू/ए 16+, और ए (वयस्क) के आधार पर कंटेंट का खुद ही वर्गीकरण करना होगा। प्लेटफॉर्म्स को यू/ए 13+ या उससे ऊंची श्रेणी के रूप में वर्गीकृत कंटेंट के लिए अभिभावक लॉक लागू करने की जरूरत होगी और  के रूप में वर्गीकृत कंटेंट के लिए एक विश्वसनीय उम्र सत्यापन तंत्र विकसित करना होगा। 

ऑनलाइन क्यूरेटेड कंटेंट के प्रकाशक को हर कंटेंट या कार्यक्रम के साथ कंटेंट विवरणक में प्रमुखता से वर्गीकरण रेटिंग का उल्लेख करते हुए उपयोगकर्ता को कंटेंट की प्रकृति बतानी होगी और हर कार्यक्रम की शुरुआत में दर्शक विवरणक (यदि लागू हो) पर परामर्श देकर कार्यक्रम देखने से पहले सोच समझकर फैसला लेने में सक्षम बनाना होगा।

डिजिटल मीडिया पर समाचार के प्रशासकों को भारतीय प्रेस परिषद के पत्रकारिता आचरण के मानदंड और केबल टेलीविजन नेटवर्क विनियमन अधिनियम के तहत कार्यक्रम संहिता पर नजर रखनी होगी, जिससे ऑफलाइन (प्रिंट, टीवी) और डिजिटल मीडिया को एक समान वातावरण उपलब्ध कराया जा सके

नियमों के तहत स्व-विनियमन विभिन्न स्तरों के साथ एक तीन स्तरीय शिकायत समाधान तंत्र स्थापित किया गया है।

 

स्तर-I : प्रकाशकों द्वारा स्व-विनियमन;

स्तर-II : प्रकाशकों की स्व-विनियमित संस्थाओं का स्व-विनियमन;

स्तर-III : निगरानी तंत्र।

 

प्रकाशकों द्वारा स्व-विनियमन  : प्रकाशक को भारत में एक शिकायत समाधान अधिकारी नियुक्त करना होगा, जो खुद को मिली शिकायतों के समाधान के लिए जवाबदेह होगा। अधिकारी खुद को मिली हर शिकायत पर 15 दिन के भीतर फैसला लेगा।

स्व-विनियमित संस्था : प्रकाशकों की एक या ज्यादा स्व-विनियामकीय संस्थाएं हो सकती हैं। ऐसी संस्था की अध्यक्षता उच्चतम न्यायालय, उच्च न्यायालय का एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश या एक स्वतंत्र प्रतिष्ठित व्यक्ति करेगा और इसमें छह से ज्यादा सदस्य हों। इस संस्था को सूचना और प्रसारण मंत्रालय में पंजीकरण कराना होगा। यह संस्था प्रकाशक द्वारा आचार संहिता के पालन की देख-रेख करेगी और उन शिकायतों का समाधान करेगी, जिनका प्रकाशक द्वारा 15 दिन के भीतर समाधान नहीं किया गया है।

निगरानी तंत्र : सूचना और प्रसारण मंत्रालय एक निरीक्षण तंत्र विकसित करेगा। यह आचार संहिताओं सहित स्व-विनियमित संस्थाओं के लिए एक चार्टर का प्रकाशन करेगा। यह शिकायतों की सुनवाई के लिए एक अंतर विभागीय समिति का गठन करेगा।