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Rang Mahotsav-राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय का रंग महोत्सव  16 से 26 फरवरी, 2023 तक

AAB NEWS/
राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय (एनएसडी) 16 से 26 फरवरी, 2023 तक भारत रंग महोत्सव (बीआरएम) के 22वें संस्करण का आयोजन करेगा। यह प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय रंगमंच महोत्सव दिल्ली, जयपुर, राजमुंदरी, रांची, गुवाहाटी, जम्मू, श्रीनगर, भोपाल, नासिक और केवड़िया में आयोजित किया जाएगा। इसका समापन समारोह 26 फरवरी को केवड़िया में आयोजित होगा।


इस 22वें भारत रंग महोत्सव में नाटक व सांस्कृतिक प्रस्तुतियों का शानदार प्रदर्शन किया जाएगा और वैश्विक परिप्रेक्ष्य में रंगमंच के वैश्विक व रणनीतिक महत्व के कई विषयगत पैनल चर्चाएं आयोजित होंगी। 
 
रंगमंच मानवीय भावनाओं को एक तरह से संप्रेषित करने के लिए कला परंपराओं का सबसे पुराना और सबसे प्रभावी रूप है, जिसका दायरा अतीत से लेकर वर्तमान युग तक है।

एनएसडी के निदेशक प्रोफेसर (डॉ.) रमेश चंद्र गौड़ ने दिल्ली स्थित एनएसडी परिसर में आज मीडिया को बीआरएम के मौजूदा संस्करण के बारे में जानकारी दी। उन्होंने कहा, "हमने अंतरराष्ट्रीय प्रविष्टियों सहित 960 आवेदनों में से चयनित शीर्ष-स्तर के नाटकों की एक सूची की स्क्रूटिनी की है। 
 
इस महोत्सव के तहत दिल्ली 10 पारंपरिक प्रदर्शनों की मेजबानी कर रही है। यह संस्थान 22वें बीआरएम के मंच के जरिए नई लोक प्रतिभाओं के विकास को आगे बढ़ाना चाहती है। इसे देखते हुए हमने अधिक से अधिक युवा रंगमंच प्रशंसकों को जोड़ने का प्रयास किया है।

इसके अलावा डॉ. रमेश ने यह भी बताया कि विभिन्न राज्यों के संस्थानों, जहां नाटकों का आयोजन किया जाना है, के साथ सहयोग किया गया है। यह सुनिश्चित करेगा कि इस महोत्सवव में स्थानीय कलाकार शामिल हों और इनके नाटक स्थानीय लोगों को आकर्षित करें।

निदेशक ने आगे बताया कि नाटकों के साथ-साथ अन्य संबद्ध गतिविधियां भी आयोजित की जाएंगी। इनमें पुस्तकों का विमोचन, निर्देशकों की बैठक, राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी और रंगमंच समुदाय के दिग्गजों की मास्टर क्लास शामिल हैं। 
 
हर साल 100 से अधिक रंगमंच कंपनियों के इस महोत्सव में हिस्सा लेने से भारत रंग महोत्सव ने अपने लिए एक अलग जगह बनाई है। इसके अलावा उन्होंने कहा कि यह अपनी तरह का अनोखा रंगमंच मेला है, जिसमें लाइव थिएटर के साथ-साथ प्रदर्शनियां, निर्देशक-दर्शकों की बातचीत, संगोष्ठी और रंगमंच से संबंधित विभिन्न विषयों पर सेमिनार शामिल हैं।

भारत रंग महोत्सव का उद्देश्य अन्य देशों के साथ अंतरराष्ट्रीय संबंध और सांस्कृतिक आदान-प्रदान कार्यक्रमों को मजबूत करना है। यह पूरे देश में रंगमंच परंपराओं के बारे में और अधिक जानने के लिए एक मंच तैयार करता है। इस भव्य समारोह में केवल कलाकार ही नहीं, बल्कि जाने-माने निर्देशक भी शामिल होंगे।
 
इससे पहले राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय ने जुलाई, 2022 में आजादी का अमृत महोत्सव के "आजादी खंड" के तहत भारत रंग महोत्सव का आयोजन किया था, जिससे हमारी मातृभूमि के शहीदों को याद किया जा सके और उन्हें श्रद्धांजलि दी जा सके। 
 
कारगिल विजय दिवस की पूर्व संध्या पर एनएसडी रिपर्टरी कंपनी ने 25 जुलाई, 2022 को राष्ट्रीय युद्ध स्मारक में 'कारगिल एक शौर्य गाथा' नामक एक अद्वितीय नाटक को प्रस्तुत किया था।
  •  वाइब्रेंट गुजरात की विरासत को दर्शाने के लिए इस रेल यात्रा को भारत सरकार की “एक भारत श्रेष्ठ भारत” योजना की भावना के अनुरूप डिजाइन किया गया है।  

  • अत्याधुनिक भारत गौरव डीलक्स एसी टूरिस्ट ट्रेन फर्स्ट एसी और सेकेंड एसी क्लास के साथ आठ दिनों तक की समग्र यात्रा के लिए चलाई जाएगी।

  • इस पर्यटक ट्रेन में 4 फर्स्ट एसी कोच, 2 सेकंड एसी कोच, एक अच्छी तरह से सुसज्जित पेंट्री कार और दो रेल रेस्तरां हैं। इसमें 156 पर्यटक सवार हो सकते हैं।

  • गुजरात के प्रमुख तीर्थस्थलों और विरासत स्थलों यानी स्टैच्यू ऑफ यूनिटी, चंपानेर, सोमनाथ, द्वारका, नागेश्वर, बेट द्वारका, अहमदाबाद, मोढेरा और पाटन की यात्रा इस यात्रा कार्यक्रम के प्रमुख आकर्षण होंगे।

  • पर्यटक इस पर्यटक ट्रेन से गुरुग्राम, रेवाड़ी, रींगस, फुलेरा और अजमेर रेलवे स्टेशनों पर चढ़/उतर सकते हैं।

  • आईआरसीटीसी ने ग्राहकों को ईएमआई भुगतान का विकल्प उपलब्ध कराने के लिए पेमेंट गेटवे के साथ समझौता भी किया है।

 

AAB NEWS/ भारतीय रेलवे अपनी भारत गौरव डीलक्स एसी टूरिस्ट ट्रेन चलाकर वाइब्रेंट गुजरात राज्य की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विरासत को प्रदर्शित करने के लिए एक बहुत ही खास यात्रा ‘गर्वी गुजरात’ की शुरुआत कर रहा है। आईआरसीटीसी द्वारा संचालित यह विशेष पर्यटक ट्रेन 28 फरवरी को दिल्ली के सफदरजंग रेलवे स्टेशन से आठ दिनों की यात्रा पर रवाना होगी. पर्यटकों की सुविधा के लिए गुरुग्राम, रेवाड़ी, रींगस, फुलेरा और अजमेर रेलवे स्टेशनों पर चढ़ने और उतरने की सुविधा प्रदान की गई है।

रेल यात्रा के इस पैकेज को महान स्वतंत्रता सेनानी सरदार वल्लभ भाई पटेल के जीवन पर आधारित “एक भारत श्रेष्ठ भारत” की भारत सरकार की योजना की भावना के अनुरूप डिजाइन किया गया है। रेल यात्रा के इस पैकेज का पहला ठहराव केवडिया में रखा गया है, जहां स्टैच्यू ऑफ यूनिटी आकर्षण का केन्द्र होगी। पूरी ट्रेन आठ दिनों की यात्रा के दौरान लगभग 3500 किलोमीटर की दूरी तय करेगी।





विश्व की सबसे ऊंची प्रतिमा - स्टैच्यू ऑफ यूनिटी, चंपानेर पुरातात्विक पार्क जो यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल है, अधलेज की बावड़ी, अहमदाबाद के अक्षरधाम मंदिर, साबरमती आश्रम, मोढेरा सूर्य मंदिर और एक अन्य यूनेस्को स्थल पाटन स्थित रानी की वाओ की यात्रा इस यात्रा कार्यक्रम में शामिल विरासत के प्रमुख खजाने हैं। इसके अलावा, सोमनाथ ज्योतिर्लिंग, नागेश्वर ज्योतिर्लिंग, द्वारकाधीश मंदिर और बेट द्वारका की यात्रा आठ दिनों की इस यात्रा में शामिल रहने वाले धार्मिक स्थल हैं। होटलों में दो रात्रि प्रवास होंगे, क्रमशः केवडिया और अहमदाबाद में एक-एक, जबकि सोमनाथ और द्वारका के स्थानों की यात्रा गंतव्य पर दिन के पड़ाव में शामिल होगी।




इस अत्याधुनिक डीलक्स एसी टूरिस्ट ट्रेन में खानपान के दो बेहतरीन रेस्तरां, एक आधुनिक किचन, कोचों में शॉवर क्यूबिकल्स, वॉशरूम में सेंसर आधारित कार्यप्रणाली, फुट मसाजर सहित कई अदभुत विशेषताएं हैं। पूरी तरह से वातानुकूलित यह ट्रेन दो प्रकार की आवासन सुविधा प्रदान करती है। फर्स्ट एसी और सेकेंड एसी। इस ट्रेन में प्रत्येक कोच के लिए सीसीटीवी कैमरे और सुरक्षा प्रहरी के साथ सुरक्षा सुविधाओं को बढ़ाया गया है और पूरी ट्रेन में इंफोटेनमेंट सिस्टम भी लगाया गया है।

भारत गौरव टूरिस्ट ट्रेन की शुरुआत घरेलू पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए भारत सरकार की पहल “देखो अपना देश” के अनुरूप है। इसकी कीमत की विभिन्न श्रेणियां एसी 2 टियर के लिए प्रति व्यक्ति 52250 रुपये से शुरू होकर एसी 1 (केबिन) के लिए प्रति व्यक्ति 67140 रुपये और एसी 1 (कूपे) के लिए प्रति व्यक्ति 77400 रुपये तक उपलब्ध हैं। आईआरसीटीसी टूरिस्ट ट्रेन आठ दिनों का संपूर्ण यात्रा पैकेज होगा और मूल्य संबंधित श्रेणी में ट्रेन की यात्रा, एसी होटलों में रात्रि विश्राम, सभी भोजन (केवल शाकाहारी), सभी स्थानांतरण और बसों में दर्शनीय स्थलों की यात्रा, यात्रा बीमा और गाइड की सेवाएं आदि शामिल होंगी। स्वास्थ्य संबंधी सभी आवश्यक एहतियाती उपायों का ध्यान रखा जाएगा और आईआरसीटीसी मेहमानों को एक सुरक्षित एवं यादगार अनुभव प्रदान करने का प्रयास करेगी।

 

व्यापक आबादी के लिए इस पैकेज को अधिक आकर्षक और किफायती बनाने के उद्देश्य से आईआरसीटीसी ने पेमेंट गेटवे के साथ करार किया है ताकि कुल भुगतान को छोटी राशि की ईएमआई में बांटकर ईएमआई भुगतान का विकल्प उपलब्ध कराया जा सके।

अधिक जानकारी के लिए आप आईआरसीटीसी की वेबसाइट: https://www.irctctourism.com पर जा सकते हैं और वेब पोर्टल पर बुकिंग ‘पहले आओ पहले पाओ’ के आधार पर ऑनलाइन उपलब्ध है।

Saree Festival-भारत की हाथ से बुनी 75 साड़ियों का उत्सव "विरासत"

एएबी समाचार/
"विरासत" - भारत की हाथ से बुनी 75 साड़ियों का उत्सव -साड़ी महोत्सव का दूसरा चरण 3 से 17 जनवरी, 2023 तक हथकरघा हाट, जनपथ, नई दिल्ली में आयोजित किया जाएगा।

इस उत्सव का आयोजन कपड़ा मंत्रालय कर रहा है। इसका समय पूर्वाह्न 11 बजे से रात 8 बजे तक है।

इस उत्‍सव के दूसरे चरण में देश के विभिन्न हिस्सों से भाग ले रहे 90 प्रतिभागी टाई एंड डाई, चिकन कढ़ाई वाली साड़ियों, हैंड ब्लॉक साड़ियों, कलमकारी प्रिंटेड साड़ियों, अजरख, कांथा और फुलकारी जैसी प्रसिद्ध दस्तकारी की किस्मों इस आयोजन का आकर्षण बढ़ा रहे हैं।

 ये जामदानी, इकत, पोचमपल्ली, बनारस ब्रोकेड, टसर सिल्क (चंपा), बलूचरी, भागलपुरी सिल्‍क, तंगैल, चंदेरी, ललितपुरी, पटोला, पैठनी आदि की विशेष हथकरघा साड़ियों के अलावा होंगी। , तनचोई, जंगला, कोटा डोरिया, कटवर्क, माहेश्वरी, भुजोड़ी, शांतिपुरी, बोमकाई और गरद कोरियल, खंडुआ और अरनी सिल्क साड़ियां जैसी कई अन्य किस्म की हथकरघा साड़ियां भी उपलब्ध होंगी।

"विरासत" - भारत की हाथ से बुनी 75 साड़ियों का उत्सव का पहला चरण 16 दिसंबर 2022 से शुरू होकर 30 दिसंबर 2022 को संपन्न हुआ। इस कार्यक्रम का उद्घाटन माननीय वित्त मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमण ने 16 दिसंबर 2022 को किया था। इस अवसर पर माननीय राज्य मंत्री श्रीमती दर्शना जरदोश और अन्य महिला सांसद भी उपस्थित थीं।

16 से 30 दिसंबर, 2022 तक आयोजित पहले चरण में, 70 प्रतिभागियों ने "विरासत" कार्यक्रम में भाग लिया। समाचार पत्रों के माध्यम से प्रिंट मीडिया, पोस्टरों, निमंत्रण कार्डों, सोशल मीडिया, सांस्कृतिक कार्यक्रम और डिजाइनरों की कार्यशाला आदि द्वारा इस कार्यक्रम को विज्ञापित करने के लिए व्यापक प्रचार कार्यक्रम चलाया गया। 

यह आयोजन बहुत सफल रहा और सभी आयु-वर्गों के लोगों की इसमें प्रभावशाली उपस्थिति से इस क्षेत्र और बुनकरों की ओर ध्‍यान आकृष्‍ट हुआ और हथकरघा वस्तुओं की बिक्री हुई।

हमारे हथकरघा बुनकरों की सहायता करने के लिए एक कॉमन हैशटैग #MySariMyPride के तहत एक सोशल मीडिया अभियान शुरू किया गया है। आजादी के 75 वर्ष "आजादी का अमृत महोत्सव" के कारण 75 हथकरघा बुनकरों द्वारा हथकरघा साड़ियों की प्रदर्शनी-सह-बिक्री का आयोजन किया जाएगा। इसमें आने वाले लोगों के लिए निम्‍नलिखित गतिविधियों की श्रृंखला की योजना बनाई गई है:

• विरासत-विरासत का उत्सव: हथकरघा साड़ियों का क्यूरेटेड प्रदर्शन।

• विरासत-एक धरोहर: बुनकरों द्वारा साड़ियों की सीधी खुदरा बिक्री

• विरासत के धागे: करघे का सीधा प्रदर्शन

• विरासत-कल से कल तक: साड़ी और टिकाऊपन पर कार्यशाला और चर्चा

• विरासत-नृत्य संस्कृति: भारतीय संस्कृति के प्रसिद्ध लोक नृत्य

प्रदर्शनी आम लोगों के लिए पूर्वाह्न 11 बजे से रात 8 बजे तक खुली रहेगी। प्रदर्शनी में भारत के कुछ आकर्षक स्थानों की हाथ से बुनी साड़ियां प्रदर्शन और बिक्री के लिए उपलब्‍ध हैं। इनकी संक्षिप्त सूची निम्‍नलिखित है:-

 

राज्‍य

साड़ी की प्रमुख किस्‍में

आंध्र प्रदेश

उप्पदा जामदानी साड़ी, वेंकटगिरी जामदानी कॉटन साड़ी, कुप्पदम साड़ी, चिराला सिल्क कॉटन साड़ी, माधवरम साड़ी और पोलावरम साड़ी

केरल

बलरामपुरम साड़ी और कसावू साड़ी

तेलंगाना

पोचमपल्ली साड़ी, सिद्दीपेट गोलबम्मा साड़ी और नारायणपेट साड़ी

तमिलनाडु

कांचीपुरम सिल्क साड़ी, अरनी सिल्क साड़ी, थिरुबुवनम सिल्क साड़ी, विलांदई कॉटन साड़ी, मदुरै साड़ी, परमाकुडी कॉटन साड़ी, अरुप्पुकोट्टई कॉटन साड़ी, डिंडीगुल कॉटन साड़ी, कोयम्बटूर कॉटन साड़ी, सलेम सिल्क साड़ी और कोयंबटूर (सॉफ्ट) सिल्क साड़ी और कोवई कोरा कॉटन साड़ी

महाराष्ट्र

पैठनी साड़ी, करवत काठी साड़ी और नागपुर कॉटन साड़ी

छत्तीसगढ

चंपा की टसर सिल्क साड़ी

मध्य प्रदेश

महेश्वरी साड़ी और चंदेरी साड़ी

गुजरात

पटोला साड़ी, तंगलिया साड़ी, अश्वली साड़ी और कुच्ची साड़ी/भूजोड़ी साड़ी

राजस्थान

कोटा डोरिया साड़ी

उत्तर प्रदेश

ललितपुरी साड़ी, बनारस ब्रोकेड, जंगला, तनचोई, कटवर्क और जामदानी

जम्मू और कश्मीर

पश्मीना साड़ी

बिहार

भागलपुरी सिल्क साड़ी और बावन बूटी साड़ी

ओडिशा

कोटपाड साड़ी और गोपालपुर टसर साड़ी

पश्चिम बंगाल

जामदानी, शांतिपुरी और तंगैल

झारखंड

टसर और गिछा सिल्क साड़ी

कर्नाटक

इल्कल साड़ी

असम

मुगा सिल्क साड़ी, मेखला चादर (साड़ी)

पंजाब

फुलकारी

 

इस आयोजन से सदियों पुरानी साड़ी बुनने की परंपरा की ओर नए सिरे से ध्यान आकृष्‍ट होने की संभावना है और इस तरह हथकरघा समुदाय की कमाई में सुधार होगा।

हथकरघा क्षेत्र बड़ी संख्या में लोगों, विशेषकर महिलाओं को रोजगार प्रदान करने वाले प्रमुख क्षेत्रों में से एक होने के साथ-साथ हमारे देश की समृद्ध और विविध सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक है। यह आयोजन हथकरघा क्षेत्र की परंपरा और सामर्थ्‍य दोनों का ही बढ़चढ़ कर जश्न मनाता है।

https://static.pib.gov.in/WriteReadData/userfiles/image/image001816N.jpg 

एएबी समाचार/   एक महत्वपूर्ण घोषणा में, अमूर्त सांस्कृतिक विरासत की सुरक्षा पर यूनेस्को के 2003 के कन्वेंशन की अंतर सरकारी समिति ने फ्रांस के पेरिस में 13 से 18 दिसंबर तक आयोजित हो रहे 16 वें सत्र में 'कोलकाता में दुर्गा पूजा' को अपनी 'मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत' की प्रतिनिधि सूची में शामिल किया है।  समिति ने दुर्गा पूजा की उस पहल की प्रशंसा की है, जिसके जरिए हाशिए पर रहने वाले समूहों, व्यक्तियों के साथ-साथ महिलाओं को भागीदारी और सुरक्षा मिलती है।

 UNESCO On Durga Pooja

केंद्रीय संस्कृति, पर्यटन और उत्तर पूर्वी क्षेत्र विकास मंत्रालय मंत्री श्री जी किशन रेड्डी ने एक ट्वीट में कहा कि यह हमारी समृद्ध विरासत, संस्कृति, रीति-रिवाजों और प्रथाओं के संगम की मान्यता है। इसके साथ ही स्त्री देवत्व और नारीत्व की भावना का उत्सव भी है।

 

दुर्गा पूजा न केवल स्त्री देवत्व का उत्सव है, बल्कि नृत्य, संगीत, शिल्प, अनुष्ठानों, प्रथाओं, पाक परंपराओं और सांस्कृतिक पहलुओं की एक उत्कृष्ट अभिव्यक्ति है। यह त्योहार जाति, पंथ और आर्थिक वर्गों की सीमाओं से परे होकर लोगों को एक साथ जोड़ता है।

कोलकाता की दुर्गा पूजा को शामिल होने के बाद, भारत की अब 14 अमूर्त सांस्कृतिक विरासत मानवता के आईसीएच की प्रतिष्ठित यूनेस्को प्रतिनिधि सूची में शामिल हो गए हैं। हाल के वर्षों में, जिन आईसीएच को शामिल किया गया है, उनमें कुंभ मेला (2017 में ), योग ( 2016 में ) शामिल हैं। भारत 2003 के यूनेस्को कन्वेंशन का एक हस्ताक्षरकर्ता है, जिसका उद्देश्य परंपराओं और सजीव अभिव्यक्ति के साथ-साथ अमूर्त विरासत की रक्षा करना है।

अमूर्त सांस्कृतिक विरासत का अर्थ है प्रथाओं, प्रतिनिधित्व, अभिव्यक्ति, ज्ञान, कौशल - साथ ही उपकरण , वस्तुओं, कलाकृतियों और उनसे जुड़े सांस्कृतिक स्थल, जिन्हें समुदाय, समूह और कुछ मामलों में व्यक्ति अपनी सांस्कृतिक विरासत के एक हिस्से के रूप में पहचाने जाते हैं। इसके अलावा, इसका महत्व केवल सांस्कृतिक अभिव्यक्ति में ही नहीं है, बल्कि ज्ञान और कौशल की समृद्धि है जो एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को हस्तांतरित होती है।

51st-International-Film-Festival-1970-के-दशक-में-फिल्मों-में-नई-तकनीक-का-आगाज-हुआ-था-राहुल-रवैल

एएबी समाचार ।
फिल्म निर्माता राहुल रवैल ने भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव-आईएफएफआई के 51वें संस्करण में आज वर्चुअल वार्तालाप के दौरान बताया कि हिंदी सिनेमा के इतिहास में 1970 के दशक में नए विचारों, नए प्रयोगों और एक्शन फिल्मों की एक नई शैली का प्रवाह देखा गया। यह समय ऐसा था जिसे गैर-पारंपरिक फिल्मों के लिए स्वर्णिम वर्ष कहा जाता है, क्यूंकि इसी दौरान भारतीय सिनेमा में नई तकनीक का आगाज भी हुआ था। उन्होंने आईएफएफआई में आज 50, 60 और 70 के दशक में बनने वाली फिल्मों के निर्माण पर चर्चा की, राहुल रवैल ने बीते दौर में हिंदी फिल्म उद्योग के विकास की अद्भुत यात्रा के बारे में वर्चुअल रूप से भाग लेने वाले प्रतिनिधियों से चर्चा की। 

अपने सिनेमाई सफर को याद करते हुए फिल्म-निर्माता राहुल रवैल ने कहा कि, “उन्होंने 60 के दशक के अंत से फिल्म जगत में काम करना शुरू कर दिया था और दिग्गज राज कपूर के सहायक के रूप में अपना करियर प्रारंभ किया। उन्होंने बताया कि, के. आसिफ और महमूद जैसे कलाकारों ने 60 के दशक में शानदार सेटों के साथ फिल्में बनाईं, इसके बाद 70 के दशक में बाबूराम ईशारा की फिल्म 'चेतना' की लोकेशन पर हुई शूटिंग 25 से 30 दिनों में ही पूरी कर ली गई, जिससे हिंदी सिनेमा में एक क्रांति की शुरुआत हुई और उन दिनों ये बात बेहद असाधारण थी”।
 
राहुल रवैल ने कहा कि, विजय आनंद की 'जॉनी मेरा नाम' का जिक्र किया जिसमें देव-आनंद मुख्य अभिनेता थे। उस फिल्म ने भी 70 के दौर में एक्शन-ओरिएंटेड, बड़े प्लॉट वाली फिल्मों के एक नए रूप को जन्म दिया। जिस समय हिंदी फिल्म-उद्योग में कारोबार तेजी से बढ़ रहा था तब 70 के दशक में फिल्म जंजीर में अमिताभ बच्चन द्वारा निभाए गए किरदार के रूप में एक 'अपरंपरागत नायक' देखा गया था। इसने 'एंग्री यंग मैन’ की छवि को दर्शकों के सामने रखा और फिर एक नया ब्रांड स्थापित हुआ। 
 
 
राहुल रवैल ने बताया कि, 1973 में नासिर हुसैन की फिल्म ‘यादों की बारात’ आई, जिससे एक बेहतरीन स्क्रिप्ट के साथ सलीम-जावेद की जोड़ी का आगमन हुआ। राज कपूर ने 'बॉबी’ के ज़रिये ऋषि कपूर और डिंपल कपाड़िया को पेश किया, इस फिल्म ने भी एक नया चलन शुरू किया। उन्होंने कहा कि, "ये फिल्में एक बदलाव ला रही थीं और फिल्म बनाने के पूरे तालमेल में इजाफा कर रही थीं।"
 
 ऋषि कपूर को याद करते हुए श्री रवैल कहते हैं, उन दिनों वह कम उम्र के अभिनेता थे। फिल्म स्टार जीतेन्द्र भी हिंदी सिनेमा की दुनिया में एक नई अपील और नई शैली के साथ बड़े पर्दे पर सामने आए। वर्चुअल वार्तालाप के इस मौके पर राहुल रवैल ने फिल्म दीवार को भी याद किया - यह शानदार ढंग से बनाई गई एक फिल्म थी जो यश चोपड़ा को उस दौर में महान ऊंचाइयों पर ले गई। यश चोपड़ा त्रिशूल जैसी और भी यादगार फिल्मों के साथ आगे बढ़े। 
 

श्री रवैल ने याद करते हुए बताया कि, “उन दिनों फिल्मी सितारों के बीच एक स्वस्थ प्रतिस्पर्धा हुआ करती थी। हर अभिनेता एक-दूसरे से बढ़-चढ़ कर काम कर रहा था, लेकिन कोई प्रतिद्वंद्विता नहीं होती थी।" एक मज़ेदार घटना को याद करते हुए उन्होंने बताया कि, एक बार तीन धुरंधर अभिनेता राज कपूर, देव आनंद और दिलीप कुमार किसी रेस्तरां में मिले, वे एक-दूसरे के पास आए और गुज़रे दिनों तथा एक-दूसरे की फिल्मों के बारे में अंतरंग दोस्तों की तरह बातें करने लगे।

श्री रवैल ने एक और दिलचस्प किस्सा सुनाया कि, किस प्रकार से महान सचिन देव बर्मन ने बड़ी विनम्रता से कहा था कि, 'लैला मजनू' के लिए संगीत देना उनके लिए सही नहीं है और इस काम के लिए उन्होंने मदन मोहन की सिफारिश की। एक शानदार फिल्म बनाने के लिए संगीत निर्देशक, महान गायक और गीतकार निर्देशक के साथ बैठकर कहानी को जानेंगे और अभिनेता भी इसमें सहयोग करेंगे, जिन्हें लिप-सिंक करना है। 

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फिल्म-निर्माता राहुल रवैल ने एक और महान फिल्म, एल. वी. प्रसाद की 'एक दूजे के लिए’ का भी ज़िक्र किया, जिसमें एक ऐसी प्रेम कहानी सामने लाई गई थी, “जहां नायक हिंदी नहीं बोल पाता था और केवल तमिल बोलता था जबकि नायिका केवल हिंदी में बात कर सकती थी, उसे तमिल नहीं आती थी”। उन्होंने कहा कि, "लोग आविष्कार कर रहे थे और विभिन्न प्रकार के नये-नये काम कर रहे थे"। दर्शकों को अलग - अलग प्रकार की नई फिल्मों का भी अनुभव हो रहा था। यह 80 के दशक में किया गया जब ज़्यादातर नए लोग सिनेमा में आए, हालांकि पुराने धुरंधर अभी भी वहां थे। 
 
80 के दशक में सुभाष घई और शत्रुघ्न सिन्हा जैसे दिग्गजों का आना देखा गया। जब उस वक़्त रवैल ने फिल्म अर्जुन को बनाया, तो एक नया चलन शुरू किया गया, जहां पर किसी कहानी को नहीं, बल्कि चरित्र को तवज्जो दी गई। राहुल रवैल ने उस याद को साझा करते हुआ बताया कि, जावेद अख्तर ने 8 घंटे में ही 'अर्जुन' की पटकथा लिखी थी। रवैल ने खलनायक की भूमिका के लिए लोकप्रिय अमजद खान को भी एक हास्य भूमिका में प्रस्तुत करने का। हालांकि कई लोग उनके इस फैसले के बारे में उलझन में थे, लेकिन राहुल रवैल ने अपने गुरु राज कपूर की सलाह को याद रखा कि 'एक महान स्क्रिप्ट हमेशा काम करेगी' और इसके साथ चलते चलो। 

अंत में, राहुल रवैल ने कहा कि, 70 और 80 का दशक वह दौर था जब भारतीय फिल्म उद्योग बहुत आगे बढ़ गया था और यह अभी भी बढ़ रहा है।