• Class of 83 saga of thrill and suspense- पुलिस-राजनीति-जुर्म के नापाक रिश्तों को बेनकाब करती है यह फिल्म

    Class-of-83-saga-of-thrill-and-suspense-पुलिस-राजनीति-जुर्म-के-नापाक-रिश्तों-को-बेनकाब-करती-है-यह-फिल्म

    एएबी समाचार। 
    हिंदी फ़िल्मी दुनिया में वैसे तो पुलिस, राजनेताओं व  अपराधियों के भयावह गठजोड़ को उजागर करने वाली सैकड़ों फ़िल्में बनी हैं लेकिंन फिल्म क्लास ऑफ 83 की बात कुछ और ही है । इस  फिल्म का कथानक बीती शताब्दी के 80 दशक के वर्ष 1980 से 1983 के दौरान का है । जिसमे में यह बेहद प्रभाव पूर्ण तरीके से दिखाया गया है कि पुलिस की प्रशिक्षण अकादमियां जो बहुत हद तक अफसरों की बिरादरी में सजा के तौर पर दी जाने वाली पदस्थापना के केंद्र होतीं हैं । जिसके चलते नए भर्ती हुए अफसरों व कर्मियों को इन अफसरों की हताशा से भरे रवैयों के बीच विभागीय तौर-तरीके सीखने पड़ते हैं ।
     

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    फिल्म निर्माता अतुल सब्बरवाल ने हुसैन ज़ैदी के लिखे उपन्यास  के आधार पर   पुलिस , अपराध और राजनीति के उन काली करतूतों को उजागर किया है जो देश के पुलिस तंत्र पर नाकारा बनाने में अहम् भूमिका अदा करती है । विजय सिंह ( बॉबी देओल ) को एक राजनेता की नाराजगी के चलते ही  नासिक की ऐसी ही पुलिस अकादमी का डीन पदस्थ कर दिया जाता है । विजय सिंह प्रशिक्षण अकादमी की प्रशिक्षुओं के बीच के बीच हमेशा चर्चाओं में रहते थे लेकिन कभी नजर नहीं आते थे ।
     

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    प्रशिक्षण अकादमियों में  नये भर्ती हुए सब इंसपेक्टर्स को  ट्रेनिंग में सबसे पी टी मास्टर से ज्यादा निष्ठुर शख्स और कोई नजर नहीं आता है । फिल्म में नासिक की प्रशिक्षण अकादमी में ऐसा ही पी टी मास्टर है मंगेश ( विश्वजीत प्रधान ) जिसके खूंखार रवैये से परेशान होकर तीन प्रशिक्षु अफसर जाधव , सुर्वे और शुक्ला ( निनाद , प्रार्थविक और भूपेन्द्र ) मंगेश को सबक शिखने की लिए रात में चुपके से उसके कमरे में घुसते हैं पर वहाँ पहले से मौजूद डीन इन सबको तो तबियत से धुन देता है |
     

    तीनों प्रशिक्षुओं  का झूठ  दूसरे दिन की क्लास में बेनकाब हो जाता है जब डीन विजय सिंह खुद क्लास लेता है | लेकिन कुछ समय बाद प्रशिक्षक मंगेश डीन को बताता है कि ये तीनों शरारती प्रशिक्षु परम्परागत ट्रेनिंग में सबसे पीछे चल रहे हैं ।
     

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     तब ही विजय सिंह  दिमाग में एक विचार आता है कि परंपरागत प्रशिक्षण में फिसड्डी साबित हो रहे पाँचों में कुछ अलग गुण हैं । यह पांचो दोस्ती निभाने में एक नम्बर हैं और इनमे सच कहने  का दम है और  बहादुर भी हैं और ये बातें पढ़ाकू और  बनावटी अफ़सरों में नहीं होती । डीन अपने विचार को अमली जमा पहनने के लिए इन्हें उस अंदाज में प्रशिक्षित करने की योजना बनता है जिससे इनको राजनीति और अपराध के गंठजोड़ से बम्बई को मुक्त कराने में लगाया जा सके ।
     

    डीन के मित्र राघव ( ज़ोय सेनगुप्त ) जो उस समय  राज्य का पुलिस प्रमुख था को उसका यह आईडिया पसंद नहीं आता है वह  विजय को उलाहना देता है कि तुम अपने बेटे को तो पुलिस अफ़सर बना नहीं पाये ,पत्नी को भी खो चुके हो अब इन फिसड्डियों को किस आशा से मौक़ा दे रहे हो ?  विजय कहता है को वो उन्हें नहीं खुद को एक और मौक़ा दे रहा है | इसके बाद इन  प्रशिक्षियू को नए तरह की पाठ्यक्रम के मुताबिक प्रशिक्षण दिया जाने लगता है  और ये मुम्बई की पुलिस फ़ोर्स में सम्मिलित हो जाते हैं ।
     

    अस्सी के दशक में मुम्बई में मज़दूरों की हड़ताल , बंद होती मिलें और तस्करी के माफिया का राजनीति से सम्बंध का दौर दिखाया गया है जिसमें ये अफ़सर खास तरह  प्रशिक्षण  के कारण जल्द ही एक अलग पहचान बना लेते हैं पर जिसकी आशा थी उससे विपरीत इन माफिया के इशारों पर एनकाउंटर का खेल रचने लगते हैं |
     

    इसी दौरान  विजय सिंह को एक बार फिर  मुम्बई की कमान सौंपी जाती है और वह दुबारा  अपने  बरसों पुराने अधूरे छूट गए मकसद को पाने में लग जाता है । क्या वो इसमें सफल हो पाता है और क्या राह से भटके उसके ट्रेनी अफ़सर उसका साथ दे पाते हैं इन सब को जानने में लिए आपको ये फ़िल्म देखनी होगी जो , ज़ाहिर है , ओटीटी प्लेटफ़ार्म पर ही उपलब्ध है , क्योंकि कोरोना से थिएटर तो बंद हैं
     

    कोरोना महामारी के दौर में सभी का थिएटर के बजाए घर में फ़िल्म देखने का नया तजुर्बा मिल रहा है । सामान्यतः घर पर फिल्म देखते वक़्त लोग थिएटर में फिल्म देखने की तुलना में एक से ज्यादा इंटरवल कर लेते हैं लेकिन इस फिल्म की यह खासियत है की  इसको एक बार देखना शुरू करने के बाद हो सकता है की आपको परंपरागत एक मध्यांतर करने का भी ख्याल न आये   फ़िल्म की कहानी बड़ी दिलचस्प है और  देखने योग्य है |

    दर्शकों को बंधकर रखने की फिल्म की खूबी के पीछे पार्श्व संगीत की भी अहम् रहा । संगीत का उतार चढाव दर्शको को भावनाओं के हिंडोले में खूब रोमांचा का अहसास करता है । सहयोगी कलाकारों के अभिनय दमदार है  लेकिन मुख्य किरदार के भी भावप्रवण अभिनय ने भी नई ऊंचाइयों को छुआ है ।

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