Economy Watch-2023-24 के दौरान भारत की जीडीपी विकास दर 6.0 फीसदी से ऊपर रहेगी

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 AAB NEWS/ 2023-24 के दौरान भारत की जीडीपी विकास दर 6.0 से 6.8 प्रतिशत रहेगी, जो वैश्विक आर्थिक और राजनीतिक घटनाक्रमों पर निर्भर है।

 

विकास अनुमान का आशावादी पक्ष विभिन्न सकारात्मक तथ्यों पर आधारित है, जैसे निजी खपत में मजबूती जिसमें उत्पादन गतिविधियों को बढ़ावा दिया है; पूंजीगत व्यय की उच्च दर (कैपेक्स); सार्वभौमिक टीकरकरण कवरेज, जिसने संपर्क आधारित सेवाओं – रेस्टोरेंट, होटल, शोपिंगमॉल, सिनेमा आदि - के लिए लोगों को सक्षम किया है

शहरों के निर्माण स्थलों पर प्रवासी श्रमिकों के लौटने से भवन निर्माण सामग्री के जमा होने में महत्वपूर्ण कमी दर्ज की गई है, कॉरपोरेट जगत के लेखा विवरण पत्रों में मजबूती; पूंजी युक्त सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक जो ऋण देने में वृद्धि के लिए तैयार हैं तथा सूक्ष्म, लघु और मध्यम उध्यम क्षेत्र के लिए ऋण में बढ़ोत्तरी।

 

 

केन्द्रीय वित्त एवं कॉरपोरेट कार्य मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमण ने आज 31 जनवरी, 2023 को संसद में आर्थिक समीक्षा   2022-23 पेश किया, जिसका अनुमान है कि जीडीपी विकास दर वित्त वर्ष 2024 के लिए वास्तविक आधार पर 6.5 प्रतिशत रहेगी। इस अनुमान की बहुपक्षीय एजेंसियों जैसे विश्व बैंक, आईएमएफ, एडीबी और घरेलू तौर पर आरबीआई द्वारा किए गए अनुमानों से तुलना की जा सकती है।

 

 

सर्वेक्षण कहता है कि वित्त वर्ष 2024 में विकास की गति तेज रहेगी क्योंकि कॉरपोरेट और बैंकिंग क्षेत्र के लेखा विवरण पत्रों के मजबूत होने से ऋण अदायगी और पूंजीगत निवेश के शुरु होने का अनुमान  है। आर्थिक विकास को लोक डिजिटल प्लेटफॉर्म के विस्तार तथा ऐतिहासिक उपायों जैसे पीएम गतिशक्ति, राष्ट्रीय लॉजिस्टिक नीति और उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजनाओं के माध्यम से समर्थन मिलेगा, जो निर्माण उत्पादन को बढ़ावा देंगे।

 

 

सर्वेक्षण कहता है कि वास्तविक स्तर पर मार्च, 2023 को समाप्त होने वाले वर्ष के लिए अर्थव्यवस्था में 7 प्रतिशत की दर से वृद्धि होगी। पिछले वित्तीय वर्ष के दौरान विकास दर 8.7 प्रतिशत रही थी।

कोविड-19 के तीन लहरों तथा रूस-यूक्रेन संघर्ष के बावजूद एवं फेडरल रिजर्व के नेतृत्व में विभिन्न देशों की अर्थव्यवस्थाओं के केन्द्रीय बैंकों द्वारा महंगाई दर में कमी लाने की नीतियों के कारण अमेरिकी डॉलर में मजबूती दर्ज की गई है और आयात करने वाली अर्थव्यवस्थाओं का चालू खाता घाटा (सीएडी) बढ़ा है। दुनियाभर की एजेंसियों ने भारत को सबसे तेजी से बढ़ने वाली बड़ी अर्थव्यवस्था माना है, जिसकी विकास दर वित्त वर्ष 2023 में 6.5 – 7.0 प्रतिशत रहेगी।

 

 

सर्वेक्षण के अनुसार, वित्त वर्ष 2023 के दौरान भारत के आर्थिक विकास का मुख्य आधार निजी खपत और पूंजी निर्माण रहा है, जिसने रोजगार के सृजन में मदद की है। यह शहरी बेरोजगारी दर में कमी तथा कर्मचारी भविष्य निधि के कुल पंजीकरण में तेजी के माध्यम से दिखाई पड़ती है। 

इसके अतिरिक्त, विश्व के दूसरे सबसे बड़े टीकाकरण अभियान, जिसमें 2 बिलियन खुराकें दी गई हैं, ने भी उपभोक्ताओं के मनोभाव को मजबूती दी है, जिससे खपत में वृद्धि होगी। निजी पूंजीगत निवेश को नेतृत्व करने की आवश्यकता है ताकि रोजगार के अवसरों का तेजी से सृजन हो सके।

 

 

भारत के विकास दृष्टिकोण को निम्न से बढ़ावा मिला है – (i) चीन के कोविड-19 संक्रमण के वर्तमान लहर से पूरी दुनिया के प्रभावित होने की तुलना में भारत में स्वास्थ्य और अर्थव्यवस्था पर अपेक्षाकृत कम असर पड़ा है, जिससे आपूर्ति श्रृंखलाएं सामान्य रही हैं। (ii) चीन की अर्थव्यवस्था के फिर से खुलने के कारण मुद्रास्फीति बढ़ने की संभावना न तो महत्वपूर्ण है और न ही निरंतर है। 

(iii) विकसित अर्थव्यवस्थाओं में (एई) मंदी के रुझानों से मौद्रिक मजबूती में कमी आई है; भारत में घरेलू मुद्रास्फीति दर 6 प्रतिशत से कम रही है, जिससे देश में पूंजीगत प्रवाह बढ़ा है तथा (iv) उद्योग जगत का रुझान बेहतर हुआ है, जिससे निजी क्षेत्र निवेश में वृद्धि हुई है।

सर्वेक्षण कहता है कि सूक्ष्म, लघु और मध्यम उध्यम (एमएसएमई) क्षेत्र के लिए ऋण में तेज वृद्धि दर्ज की गई है, जो जनवरी-नवम्बर, 2022 के दौरान औसत आधार पर 30.6 प्रतिशत रही और इसे केन्द्र सरकार की आपात ऋण से जुड़ी गारंटी योजना (ईसीएलजीएस) का समर्थन मिला। 

एमएसएमई क्षेत्र में रिकवरी की गति तेज हुई है, जो उनके द्वारा भुगतान किए जाने वाले वस्तु एवं सेवाकर (जीएसटी) की धनराशि से परिलक्षित होती है। उनकी आपात ऋण से जुड़ी गारंटी योजना (ईसीएलजीएस) ऋण संबंधी चिंताओं को आसान कर रही है।

इसके अलावा बैंक ऋण में हुई वृद्धि, उधार लेने वालों के बदलते रुझानों से भी प्रभावित हुई है, जो जोखिम भरे बॉन्ड मार्किट में निवेश कर रहे हैं, जहां धन अर्जन अधिक होता है। यदि मुद्रास्फीति वित्त वर्ष 2024 में कम होती है और ऋण की वास्तविक लागत नहीं बढ़ती है तो वित्त वर्ष 2024 के लिए ऋण वृद्धि तेज रहेगी।

केंद्र सरकार का पूंजीगत व्यय (कैपेक्स) वित्त वर्ष 2023 के पहले 8 महीनों में 63.4 प्रतिशत तक बढ़ गया, जो चालू वित्त वर्ष में भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास का प्रमुख घटक रहा है। 2022 के जनवरी-मार्च तिमाही से नीजि पूंजीगत व्यय में वृद्धि हुई है। 

वर्तमान रुझानों के अनुसार लगता है कि पूरे वर्ष के लिए पूंजीगत व्यय बजट हासिल कर लिया जाएगा। निजी पूंजीगत निवेश में भी वृद्धि होने का अनुमान है, क्योंकि कॉपोरेट जगत के लेखा विवरण पत्र मजबूत हुए है जिससे ऋण देने में वृद्धि होगी।

सर्वेक्षण ने महामारी के कारण निर्माण गतिविधियों में आई बाधाओं को रेखांकित किया है। सर्वेक्षण कहता है कि टीकाकरण से प्रवासी श्रमिकों को शहरों में वापस आने में सुविधा मिली है। इससे आवास बाजार मजबूत हुआ है। 

यह इस बात से परिलक्षित होता है कि विनिर्माण सामग्री के भंडार में महत्वपूर्ण कमी दर्ज की गई है, जो पिछले साल के 42 महीनों के मुकाबले वित्त वर्ष 2023 की तीसरी तिमाही में 33 महीने रह गया  है।

सर्वेक्षण कहता है कि महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (एमजीएनआरईजीएस) ग्रामीण क्षेत्रों में प्रत्यक्ष तौर पर रोजगार प्रदान कर रही है और अप्रत्यक्ष तौर पर ग्रामीण परिवारों को अपनी आय के स्रोतों में बदलाव लाने में मदद कर रही है। 

पीएम किसान और पीएम गरीब कल्याण योजना जैसी योजनाएं देश में खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित कर रही है और इनके प्रभावों को संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) ने भी अनुशंसा प्रदान की है। 

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) के परिणामों ने भी दिखाया है कि वित्त वर्ष 2016 से वित्त वर्ष 2020 तक ग्रामीण कल्याण संकेतक बेहतर हुए हैं, जिनमें लिंग, प्रजनन दर, परिवार की सुविधाएं और महिला सशक्तिकरण जैसे विषयों को शामिल किया गया है।

सर्वेक्षण उम्मीद करता है कि भारतीय अर्थव्यवस्था महामारी के प्रभावों से मुक्त हो चुकी है और वित्त वर्ष 2022 में दूसरे देशों की अपेक्षा तेजी से पहले की स्थिति में आ चुकी है। भारतीय अर्थव्यवस्था अब वित्त वर्ष 2023 में महामारी-पूर्व के विकास मार्ग पर आगे बढ़ने के लिए तैयार है। 

हालांकि चालू वर्ष में भारत ने यूरोपीय संघर्ष के कारण हुई मुद्रास्फीति में वृद्धि को कम करने की चुनौती का सामना किया है। सरकार और आरबीआई के द्वारा किए गए उपायों और वैश्विक स्तर पर वस्तुओं की कीमतों में आई कमी से नवंबर, 2022 से खुदरा मुद्रास्फीति को आरबीआई की लक्ष्य-सीमा से नीचे लाने में मदद मिली।

 

 

हालांकि, रुपए में मूल्यहास की चुनौती अधिकांश अन्य मुद्राओं की तुलना में हमारी मुद्रा बेहतर निष्पादन कर रही है, यूएस फेड द्वारा नीतिगत दरों में और वृद्धि किए जाने की संभावना बनी हुई  है। सीएडी का बढ़ना भी जारी रह सकता है क्योंकि वैश्विक जिंस की कीमतों में उच्चता बनी हुई है और भारतीय अर्थव्यवस्था  की विकास गति भी मजबूत बनी हुई है। 

निर्यात प्रोत्साहन का नुकसान आगे भी संभव है क्योंकि धीमी पड़ती वैश्विक समृद्धि और व्यापार ने चालू वर्ष की दूसरी छमाही में वैश्विक बाजार के आकार को कम करती है।

इस प्रकार से वर्ष 2023 में वैश्विक संवृद्धि में गिरावट का अनुमान लगाया गया है और इसके बाद के वर्षों में भी आमतौर पर कमजोर रहने की संभावना है। धीमी मांग की वजह से वैश्विक कमोडिटी की कीमतों में कमी आएगी और वित्त वर्ष 24 में भारत के सीएडी में सुधार होगा।

हालाकि चालू खाता शेष के लिए नकारात्मक जोखिम मुख्य रूप से घरेलू मांग और कुछ हद तक निर्यात द्वारा संचालित तेज रिकवरी से उत्पन्न होता है। सीएडी पर बारीकी से नजर रखने की आवश्यकता है क्योंकि चालू वर्ष की विकास गति अगले वर्ष की विकास गति बनाए रखेगी।

समीक्षा में इस महत्वपूर्ण तथ्य की भी जानकारी दी गई है कि सामान्य तौर पर, पिछले समय में वैश्विक आर्थिक झटके काफी गंभीर रहे हैं लेकिन समय के बीतने के साथ इनसे बाहर निकला गया है परन्तु इसने शताब्दी के तीसरे दशक में परिवर्तन किया क्योंकि 2020 के बाद से वैश्विक अर्थव्यवस्था को कम से कम तीन झटके झेलने पड़े हैं।

यह सब महामारी से प्रभावित वैश्विक उत्पादन में आई कमी से प्रारंभ हुआ जिसे रूस-यूक्रेन संघर्ष ने विश्व को मुद्रास्फीति की ओर अग्रसर कर दिया फिर फेडरल रिजर्व के पीछे-पीछे अर्थव्यवस्थाओं के केन्द्रीय बैंकों ने मुद्रास्फीति पर अंकुश लगाने के लिए समकालिक नीतिगत दरों में वृद्धि की।

यूएस फेड द्वारा दरों में की गई वृद्धि ने अमेरिकी बाजारों में पूंजी को आकर्षित किया, जिससे अधिकांश मुद्राओं के मुकाबले अमेरिकी डॉलर का मूल्य बढ़ गया। परिणामस्वरूप चालू घाटा सीएडी बढ़ गया और निबल आयातक अर्थव्यवस्थाओं में मुद्रास्फीति दबाव में वृद्धि आई।

दर में वृद्धि और सतत मुद्रास्फीति ने आईएमएफ द्वारा विश्व आर्थिक आउटलुक के अक्टूबर 2022 के अपडेट में 2022 और 2023 के लिए वैश्विक विकास पूर्वानुमानों को कम कर दिया। चीनी अर्थव्यवस्ता की क्षीणता ने आगे विकास के पूर्वानुमानों को और कमजोर किया। 

मौद्रिक तंगी के अलावा धीमी वैश्विक वृद्धि भी उन्नत अर्थव्यवस्थाओं से उत्पन्न वित्तीय संक्रमण का कारण बन सकती हैं जहां गैर-वित्तीय क्षेत्र का ऋण वैश्विक वित्तीय संकंट के बाद से सबसे अधिक बढ़ गया है। उन्नत अर्थव्यवस्थाओं में मुद्रास्फीति के बने रहने और केन्द्रीय बैंकों द्वारा दरों में अधिक वृद्धि के संकेत से, वैश्विक आर्थिक दृष्टिकोण के लिए नकारात्मक जोखिम बढ़ा हुआ दिखाई देता है।

भारत का आर्थिक लचीलापन और विकास संचालक

भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा मौद्रिक सख्ती, सीएडी का बढ़ना, और निर्यात की स्थिर वृद्धि अनिवार्य रूप से यूरोप में भू-राजनीतिक विवाद का परिणाम है। जैसा कि इन गतिविधियों ने वित्त वर्ष 23 में भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास के लिए नकारात्मक जोखिम पैदा किया है, दुनिया भर में कई एजेंसियां रूक-रूक कर भारतीय अर्थव्यवस्था के अपने विकास पूर्वानुमान को नीचे की ओर संशोधित कर रही हैं। एनएसओ द्वारा जारी किए गए अग्रिम अनुमानों सहित ये पूर्वानुमान अब मोटे तौर पर 6.5-7.0 प्रतिशत की सीमा में हैं।

 

 

 

नीचे की ओर संशोधन के बावजूद, वित्त वर्ष 23 के लिए विकास का अनुमान लगभग सभी प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में अधिक बना हुआ है और यहां तक की महामारी से पहले के दशक में भारतीय अर्थव्यवस्था की औसत वृद्धि से थोड़ा अधिक है।

आईएमएफ का अनुमान है कि भारत 2022 में तेजी से बढ़ती शीर्ष दो महत्वपूर्ण अर्थव्यवस्थाओं में से एक होगा। मजबूत वैश्विक विपरीत परिस्थितियों और कड़ी घरेलू मौद्रिक नीति के बावजूद, यदि भारत अभी भी 6.5 और 7.0 प्रतिशत के बीच बढ़ने की उम्मीद करता है और वह भी आधार प्रभाव के लाभ के बिना, तो यह भारत के अंतर्निहित आर्थिक लचीलेपन का प्रतिबिंब है, और अर्थव्यवस्था के विकास चालकों को पुनः प्राप्त करने, नवीनीकृत करने और फिर से सक्रिय करने की इसकी क्षमता है। भारत के आर्थिक लचीलेपन को विकास के लिए घरेलू प्रोत्साहन में देखा जा सकता है जो बाहरी प्रोत्साहनों की जगह ले सकता है। 

निर्यात में वृद्धि वित्त वर्ष 2023 की दूसरी छमाही में कम हो सकती है। हालाकि, वित्त वर्ष 2022 में उनके उछाल और वित्त वर्ष 2023 की पहली छमाही ने उत्पादन प्रक्रियाओं के गियर में हल्की तेजी से क्रूज मोड में बदलाव के लिए प्रेरित किया है।

खपत में फिर से वृद्धि को पेंट-अप मांग के बाहर निकलने के भी समर्थन मिला है, एक ऐसी घटना जो फिर से भारत के लिए अद्वितीय नहीं है, लेकिन फिर भी डिस्पोजेबल आय में खपत के हिस्से में वृद्दि से प्रभावित एक स्थानीय घटना का प्रदर्श से भारत के लिए अद्वितीय नहीं है, लेकिन फिर भी डिस  करती है। 

चूंकि भारत में प्रयोज्य आय में खपत का हिस्सा अधिक है इसलिए महामारी के कारण खपत को कम करने से बहुत अधिक परावर्तक की शक्ति का निर्माण हुआ। इसलिए खपत पुनर्वद्धि स्थायी शक्ति हो सकती है।

 

भारतीय अर्थव्यवस्था में मैक्रोइकॉनॉमिक और विकास संबंधी चुनौतियां

भारत पर महामारी के प्रभाव के कारण वित्त वर्ष 21 में एक महत्वूपर्ण जीडीपी संकुचन देखा गया था। अगले वर्ष, वित्तीय वर्ष 22. में भारतीय अर्थव्यवस्था जनवरी 2022 की ओमिक्रॉन लहर के बावजूद पटरी पर आने लगी थी। 

इस तीसरी लहर ने भारत में आर्थिक गतिविधियों को उतना प्रभावित नहीं किया, जितना महामारी की पिछली लहरों ने जनवरी 2020 में इसका प्रकोश शुरू होने पर प्रभावित किया था। स्थानीकृत लॉकडाउन, तेजी से टीकाकरण कवरेज, हल्के लक्षण और वायरस से जल्दी ठीक होने के कारण 2022 की जनवरी-मार्च तिमाही में आर्थिक उत्पादन के नुकसान को कम करने में मदद मिली। 

परिणास्वरूप, वित्तीय वर्ष 2022 का आउटपुट, कई देशों से पहले भारतीय अर्थव्यवस्था के पूरी तरह से पटरी पर आ जाने के कारण, वित्तीय वर्ष 20 के महामारी पूर् स्तर पर जा पहुंचा। ओमिक्रॉन वैरिएंट के साथ अनुभव ने एक सतर्क आशावाद को जन्म दिया कि महामारी के बावजूद शारिरिक रूस से गति शील रहना और आर्थिक गतिविधियों में संलग्न रहना संभव था। 

इस प्रकार, वित्त वर्ष 23 एक दृढ़ विश्वास के साथ शुरू हुआ कि महामारी तेजी से कम हो रही थी और भारत तेज गति से बढ़ने के लिए तैयार था और जल्दी ही महामारी पूर्व विकास पथ अग्रसर होने वाला था।

 

 

यूरोपीय सांर्ष ने वित्त वर्ष 23 में आर्थिक संवृद्धि और मुद्रास्फीति की प्रत्याशा में एक संशोधन आवश्यक कर दिया। जनवरी 2022 में देश की खुदरा मद्रास्फीति आरबीआई की स्वीकार्य सीमा से ऊपर चली गई थी। यह नवंबर से 6 प्रतिशत के लक्ष्य सीमा के ऊपरी छोर से नीचे लौटने से पहले दस महीनों के लिए लक्ष्य सीमा से ऊपर रही। 

उन दस महीनों के दौरान, अत्यधिक गर्मी और बेमौसम बारिश जैसे स्थीनय मौसम के चरम पर होने के बावजूद भी बढ़ती अंतराष्ट्रीय वस्तुओं की कीमतों ने भारत की खुदरा मद्रास्फीति में योगदान दिया, जिससे खाद्य कीमतों में वृद्धि हुई। 

सरकार ने उत्पाद और सीमा शुल्क में कटौती की और मुद्रास्फीती को नियंत्रित करने के लिए निर्यात को प्रतिबंधित किया, जबकि अन्य केंद्रीय बैंकों की तरह आरबीआई ने खेपो दरों में वृद्धि की और अतिरिक्त नकदी को वापस ले लिया।

 

 

अनुमान-2023-24

2023-24 के लिए अनुमान के विवरण में समीक्षा में बताया गया है कि महामारी से भारत की भरपाई अपेक्षाकृत तीव्र थी और ठोस घरेलू मांग के समर्थन और पूंजीगत निवेश में वृद्धि से आगामी वर्षों में प्रगति होगी। इसमें बताया गया है कि सशक्त वित्तीय घटकों के बल पर निजी क्षेत्र में पूंजी निर्माण प्रक्रिया का अंतर्निहित लक्षण परिलक्षित है और पूंजीगत व्यय में निजी क्षेत्र की सावधानी के लिए भरपाई करना और सरकार द्वारा पर्याप्त पूंजीगत व्यय जुटाना इससे भी अधिक महत्वपूर्ण बात है।

 

समीक्षा के अनुसार, वित्त वर्ष 16 से वित्त वर्ष 23 तक पिछले 7 वर्षों में बजटीय पूंजीगत व्यय में 2.7 गुणा वृद्धि हुई, जिससे पूंजीगत व्यय को मजबूती मिली। वस्तु एवं सेवाकर की शुरुआत और दिवाला एवं दीवालियापन संहिता जैसे रचनात्मक सुधारों से अर्थव्यवस्था की क्षमता और पारदर्शिता बढ़ी और वित्तीय अनुशासन एवं बेहतर अनुपालन सुनिश्चित हुआ।

 

अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष के वर्ल्ड इकनॉमिक आउटलुक, अक्टूबर 2022 के अनुसार, वैश्विक विकास का वर्ष  2023 में 3.2 प्रतिशत से धीमा होकर वर्ष 2023 में 2.7 प्रतिशत होने का अनुमान है। आर्थिक उत्पादन में धीमी वृद्धि के साथ बढ़ती अनिश्चितता व्यापार वृद्धि को कम कर देगी। वैश्विक व्यापार में वृद्धि के संबंध में विश्व व्यापार संगठन द्वारा वर्ष 2022 में 3.5 प्रतिशत से 2023 में 1.0 प्रतिशत गिरावट का पूर्वानुमान किया गया है।

 

बाह्य दृष्टि से, चालू  लेखा शेष के जोखिम अनेक स्रोतों से उत्पन्न होते हैं, जबकि वस्तुओं की कीमतें  रिकॉर्ड ऊंचाई से कम हो गई हैं, वे अभी भी संघर्ष-पूर्व  के स्तर से ऊपर हैं। वस्तुओं की उच्च कीमतों के बीच मजबूत घरेलू मांग से भारत के कुल आयात बिल में वृद्धि होगी और चालू खाता शेष में अलाभकारी विकास को बढ़ावा मिलेगा। वैश्विक मांग में कमी के कारण निर्यात वृद्धि को स्थिर करके इन्हें और बढ़ाया जा सकता है। यदि चालू लेखा घाटे में और वृद्धि होती है तो मुद्रा पर मूल्यह्रास का दबाव बढ़ेगा।

 

 

बढ़ी हुई मुद्रास्फीति सख्ती की प्रक्रिया को लंबा कर सकती है और इसलिए, उधार लेने की लागत लंबे समय तक अधिक रह सकती है। ऐसे परिदृश्य में, वैश्विक अर्थव्यवस्था में वित्तीय वर्ष 2024 में कम वृद्धि हो सकती है। तथापि धीमे वैश्विक विकास के परिदृश्य से दो उम्मीदें पैदा होती हैं- तेल की कीमतें कम रहेंगी, और भारत का सीएडी वर्तमान के स्तर से बेहतर होगा। कुल मिलाकर बाह्य स्थिति नियंत्रण में रहेगी।

 

 

भारत का समावेशी विकास

समीक्षा में इस बात पर जोर दिया गया है कि विकास तब समावेशी होता है, जब यह रोजगार सृजित करता है। आधिकारिक और गैर-आधिकारिक दोनों स्रोत इस बात की पुष्टि करते हैं कि चालू  वित्त वर्ष में रोजगार के स्तर में वृद्धि हुई है।  

आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (पीएलएफएस) से पता चलता है कि 15 वर्ष और उससे अधिक आयु के लोगों के लिए शहरी बेरोजगारी दर सितंबर 2021 को समाप्त तिमाही में 9.8 प्रतिशत से घटकर एक वर्ष बाद (सितंबर 2022 को समाप्त तिमाही में) 7.2 प्रतिशत हो गई। इसके साथ-साथ श्रम बल भागीदारी दर (एलएफपीआर) में भी सुधार हुआ है। यह वित्त वर्ष 2023 की शुरुआत में अर्थव्यवस्था के महामारी से प्रेरित मंदी से उभरने की पुष्टि करता है।

 

वित्तीय वर्ष 21 में, सरकार ने आपातकालीन क्रेडिट लाइन गारंटी योजना की घोषणा की। यह योजना सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों को वित्तीय संकट से बचाने में सफल रही। सिबिल की एक हालिया रिपोर्ट (ईसीएलजीएस अंतर्दृष्टि, अगस्त 2022 ने दिखाया कि इस योजना ने एमएसएमई को कोविड झटके का सामना करने में  मदद की है, जिसमें 83 प्रतिशत उधारकर्ताओं ने ईसीएलजीएस का सूक्ष्म-उद्यमों के रूप में लाभ उठाया है। इन सूक्ष्म इकाइयों में, आधे से अधिक का समग्र जोखिम 10 लाख रुपए से कम था।

 

इसके अलावा सिबिल डेटा से भी यह पता चलता है कि ईसीएलजीएस उधारकर्ताओं की अनुपयोज्य संपत्ति दरें उन उद्यमों की तुलना में कम थीं जो ईसीएलजीएस के लिए पात्र थे, लेकिन इसका लाभ नहीं उठाया। 

इसके अलावा, वित्त वर्ष 21 में गिरावट के बाद एमएसएमई द्वारा भुगतान किया गया जीएसटी तब से बढ़ रहा है और अब वित्तीय वर्ष 20 के पूर्व-महामारी स्तर को पार कर गया है, जो छोटे व्यवसायियों की वित्तीय लचीलापन और एमएसएमई के लिए लक्षित सरकार के हस्तक्षेप की प्रभावशीलता को दर्शाता है।

 

महात्मा  गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) के तहत सरकार द्वारा लागू की गई योजना किसी भी अन्य श्रेणी की तुलना में व्यक्तिगत भूमि पर काम के संबंध में तेजी से अधिक संपत्ति का सृजन कर रही है। इसके अतिरिक्त, ग्रामीण आबादी के आधे हिस्से को कवर करने वाले परिवारों के लिए लाभकारी पीएम-किसान जैसी योजनाएं और पीएम गरीब कल्याण अन्न योजना ने देश में गरीबी को कम करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।

 

जुलाई 2022 की यूएनडीपी रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में हाल ही में मुद्रास्फीति के प्रकरण में

अच्छे लक्षित समर्थन के कारण गरीबी पर कम प्रभाव पड़ेगा। इसके अलावा, भारत में राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) वित्तीय वर्ष 2016 की तुलना में वित्तीय वर्ष 2020 में ग्रामीण कल्याण संकेतकों में सुधार को दर्शाता है, जिसमें लिंग, प्रजनन दर, घरेलू सुविधाओं और महिला सशक्तिकरण जैसे पहलुओं को कवर किया गया है।

 

 

अब तक भारत के लिए आर्थिक लचीलापन के प्रति देश के विश्वास को मजबूत किया  है। अर्थव्यवस्था ने इस प्रक्रिया में विकास की गति को खोए बिना रूस-यूक्रेन संघर्ष के कारण हुए बाहरी असंतुलन को कम करने की चुनौती का सामना किया है। विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों द्वारा की गई निकासी से प्रभावित हुए बगैर चालू वर्ष 2022 में भारत के शेयर बाजारों में सकारात्मक वापसी हुई। कई उन्नत देशों और क्षेत्रों की तुलना में भारत की मुद्रास्फीति दर अपनी लक्षित सीमा से बहुत अधिक नहीं बढ़ी।

 

क्रय शक्ति समता (पीपीपी) के अनुसार भारत दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और बाजार विनिमय दरों में पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। इतने बड़े एक राष्ट्र की अपेक्षा के अनुसार वित्तीय वर्ष 2023 में भारतीय अर्थ व्यवस्था ने उसे ‘पुनः प्राप्त’ किया है, जो खो गया था, उसे ‘नवीनीकृत’ किया है, जो रुका हुआ था और उसे  ‘पुनः सक्रिय’ किया है, जो वैश्विक महामारी के दौरान और यूरोप में संघर्ष के बाद से धीमा हो गया था।

 

वैश्विक अर्थव्यवस्था विशिष्ट चुनौतियों का सामना कर रही है

 

समीक्षा में बताया गया है कि वैश्विक अर्थव्यवस्था लगभग 6 चुनौतियों का सामना कर रही है। कोविड-19 से संबंधित चुनौतियों के कारण रुकावट आई, रूस-यूक्रेन संघर्ष और इसके प्रतिकूल प्रभाव के साथ-साथ आपूर्ति श्रृंखला, मुख्य रूप से खाद्य, ईंधन तथा उर्वरक की आपूर्ति में बाधा उत्पन्न हुई और महंगाई को रोकने के लिए फेडरल रिजर्व की दरों में वृद्धि के कारण विभिन्न देशों के केंद्रीय बैंकों के सामने समस्याएं उत्पन्न हुईं। 

इसके परिणामस्वरूप अमरीकी डॉलर में उछाल आया और सकल आयात अर्थव्यवस्थाओं में चालू खाता घाटा बढ़ा। वैश्विक गतिरोध की संभावनाओं का सामना करते हुए, राष्ट्रों ने अपने संबंधित आर्थिक स्थिति की रक्षा करने के लिए मजबूरी महसूस की, सीमापार व्यापार धीमा कर दिया, जिसने विकास के लिए चौथी चुनौती पेश की। 

शुरुआत से पांचवीं चुनौती बढ़ रही थी, क्योंकि चीन ने अपनी नीतियों से प्रेरित काफी मंदी का अनुभव किया। विकास के लिए छठी मध्यम अवधि की चुनौती को शिक्षा और आय अर्जन के अवसरों के नुकसान से उत्पन्न महामारी से डरा हुआ देखा गया।

 

समीक्षा में बताया गया  है कि दुनिया के  बाकी हिस्सों की तरह, भारत ने भी इन असाधारण चुनौतियों का सामना किया, लेकिन अधिकांश अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में इसने उनका बेहतर तरीके से सामना किया।

 

पिछले ग्यारह महीनों में, विश्व अर्थव्यवस्था ने लगभग उतने ही व्यवधानों का सामना किया है, जितना दो वर्षों में महामारी के कारण हुआ है। संघर्ष के कारण कच्चे तेल, प्राकृतिक गैस, उर्वरक और गेहूं जैसी महत्वपूर्ण वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि हुई। 

इसने मुद्रास्फीति के दबावों को बढ़ाया, जिससे वैश्विक आर्थिक सुधार शुरू हो गया था, जो 2020 में उत्पादन संकुचन को सीमित करने के लिए बड़े पैमाने पर राजकोषीय प्रोत्साहन और अति-समायोजन कार्य मौद्रिक नीतियों से समर्थित था। 

उन्नत अर्थव्यवस्थाओं (एई) में मुद्रास्फीति, जो अधिकांश वैश्विक राजकोषीय विस्तार और मौद्रिक सहजता के लिए जिम्मेदार है, ने ऐतिहासिक ऊंचाइयों को पार कर लिया है। बढ़ती कमोडिटी की कीमतों ने उभरती बाजार अर्थव्यवस्थाओं (ईएमई) में भी उच्च मुद्रास्फीति को जन्म दिया, जो अन्यथा 2020 में आउटपुट संकुचन को संबोधित करने के लिए अपनी सरकारों द्वारा अंशाकित राजकोषीय प्रोत्साहन के आधार पर निम्न मुद्रास्फीति क्षेत्र में थे।

समीक्षा में बताया गया है कि मुद्रास्फीति और मौद्रिक तंगी ने सभी अर्थव्यवस्थाओं में बॉन्ड प्रतिफल को सख्त कर दिया और इसके परिणामस्वरूप दुनियाभर की अधिकांश अर्थव्यवस्थाओं से इक्विटी पूंजी का बहिर्वाह अमरीका के पारंपरिक रूप से सुरक्षित आश्रय बाजार में हो गया। 

पूंजी उड़ान ने बाद में अन्य मुद्राओं के प्रति अमरीकी डॉलर को मजबूत किया- जनवरी और सितंबर 2022 के बीच अमरीकी डॉलर सूचकांक 16.1 प्रतिशत मजबूत हुआ। अन्य मुद्राओं को परिणामी मूल्यह्रास सीएडी को बढ़ा रहा है और शुद्ध आयातक अर्थव्यवस्थाओं में मुद्रास्फीति के दबावों को बढ़ा रहा है।

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