Articles by "#WHO"
#WHO लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

Nutrition For Growth Summit-दुनिया  भर में  40% से अधिक लोग अधिक वजन  या मोटापे का शिकार हैं

एएबी समाचार
। दिसम्बर 2021
जिनेवा,स्विट्ज़रलैंड  COVID-19 और जलवायु परिवर्तन ने कुपोषण को उसके सभी रूपों में बढ़ा दिया है और दुनिया भर में खाद्य प्रणालियों की स्थिरता और लचीलेपन को खतरा है। 7 - 8 दिसंबर 2021 को टोक्यो में न्यूट्रिशन फॉर ग्रोथ समिट में, विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 2025 पोषण लक्ष्यों पर प्रगति में तेजी लाने के लिए छह नई प्रतिबद्धताओं की घोषणा की है, जिन्हें महामारी के दौरान और भी आगे बढ़ा दिया गया है। इसमे शामिल है:

  •  अधिक वजन और मोटापे को रोकने और प्रबंधित करने के लिए पहल का विस्तार करें; 
  • सुरक्षित और स्वस्थ आहार को बढ़ावा देने वाले खाद्य वातावरण बनाने के लिए गतिविधियों को आगे बढ़ाएं; 
  • तीव्र कुपोषण को दूर करने में देशों का समर्थन करना; एनीमिया में कमी पर कार्रवाई में तेजी लाने; 
  • गुणवत्तापूर्ण स्तनपान प्रोत्साहन और समर्थन बढ़ाना; तथा पोषण डेटा सिस्टम, डेटा उपयोग और क्षमता को मजबूत करना।  

आज, दुनिया भर में सभी लोगों में से एक तिहाई लोग कम से कम एक प्रकार के कुपोषण से प्रभावित हैं। सभी पुरुषों और महिलाओं में से 40% से अधिक (2.2 बिलियन लोग) अब अधिक वजन वाले या मोटे हैं। जबकि अस्वास्थ्यकर आहार प्रति वर्ष कम से कम 8 मिलियन मौतों से जुड़ा हुआ है।

डब्ल्यूएचओ के महानिदेशक डॉ टेड्रोस एडनॉम घेब्रेयसस ने कहा, "अपने सभी रूपों में कुपोषण दुनिया में मौत और बीमारी के प्रमुख कारणों में से एक है।" "डब्ल्यूएचओ सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज की दिशा में अपनी यात्रा के हिस्से के रूप में आवश्यक पोषण सेवाओं तक पहुंच का उत्तरोत्तर विस्तार करने के लिए और सभी लोगों के लिए स्वस्थ आहार का समर्थन करने के लिए स्थायी खाद्य प्रणालियों को मजबूत करने के लिए सभी देशों का समर्थन करने के लिए प्रतिबद्ध है।

पिछले एक दशक में कुपोषण के सभी रूपों में वृद्धिशील सुधारों के बावजूद, यह प्रगति असमानता, जलवायु संकट, संघर्ष और वैश्विक स्वास्थ्य असुरक्षा की बढ़ती दरों के साथ पीछे हट गई है। कुपोषण के कई बोझ, जैसे स्टंटिंग, वेस्टिंग, सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी, मोटापा और आहार संबंधी गैर-संचारी रोग, एक ही समुदाय, घर और यहां तक कि एक ही व्यक्ति के भीतर तेजी से सह-अस्तित्व में हैं। वर्तमान रुझानों के अनुसार 2025 तक दो में से एक व्यक्ति कुपोषित हो जाएगा और अगले दशक में अनुमानित 40 मिलियन बच्चे मोटापे या अधिक वजन से पीड़ित होंगे।
 
हाशिए के समुदायों में, बाल कुपोषण और खाद्य असुरक्षा बढ़ रही है। पिछले साल, 149 मिलियन बच्चों ने खराब आहार, स्वच्छ पानी और स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच की कमी और अन्य पहुंच संबंधी मुद्दों के कारण विकास को रोक दिया था। मरने वाले 5 वर्ष से कम उम्र के पैंतालीस प्रतिशत बच्चों में मृत्यु का मूल कारण अल्पपोषण था।  

जबकि प्रगति के सकारात्मक संकेत हैं, जैसे कि दुनिया 2025 तक विशेष रूप से स्तनपान बढ़ाने के वैश्विक लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए ट्रैक पर है, COVID-19 महामारी ने पोषण संकट को हवा दी। इसने विशेष रूप से महिलाओं और बच्चों को प्रभावित किया है, और स्वास्थ्य, भोजन, सामाजिक सुरक्षा और मानवीय सहायता बुनियादी ढांचे सहित पोषण के लिए वैश्विक प्रणालियों से अभूतपूर्व चुनौतियों और संसाधनों का विचलन लाया है। 
 
डब्ल्यूएचओ के पोषण और खाद्य सुरक्षा विभाग के निदेशक डॉ फ्रांसेस्को ब्रांका ने कहा, "आज, वैश्विक विकास सहायता का 1% से भी कम पोषण पर केंद्रित है।" "अस्वस्थ आहार और कुपोषण को समाप्त करने के लिए त्वरित कार्रवाई की आवश्यकता है, और डब्ल्यूएचओ की न्यूट्रीशन फॉर ग्रोथ समिट के लिए नई प्रतिबद्धताएं इसे दर्शाती हैं। पोषण पर कार्रवाई के 2016-2025 दशक के दौरान विकास के लिए पोषण शिखर सम्मेलन कार्रवाई में तेजी लाने का एक जबरदस्त अवसर है।  
 
डब्ल्यूएचओ तीन महत्वपूर्ण पोषण के लिए विकास फोकस क्षेत्रों (स्वास्थ्य, भोजन और लचीलापन) के भीतर काम करना जारी रखता है, उनके उपयोग में नियामक मार्गदर्शन और सहायक देशों को मजबूत करके; पोषण डेटा की निगरानी और पहुंच सुनिश्चित करके; राष्ट्रीय सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज योजनाओं, बहुक्षेत्रीय प्रणालियों और राजकोषीय नीतियों में पोषण और खाद्य प्रणालियों के हस्तक्षेप को एकीकृत करने के लिए सरकारों और निर्णय निर्माताओं को सहायता प्रदान करके; और आपात स्थितियों में चल रहे कार्य द्वारा।  

COVID-19-Vaccine-Trial-क्या-भारत-सचमुच-बन-रहा-है-आत्मनिर्भर

 Guest Column : By Chaitan Koushakiya

 

पिछले कुछ दिनों से आत्मनिभर भारत की बात चल रही है। निश्चित ही ये सराहनीय व अनुकरणीय पहल है.. यदि परिपूर्णता से पालन हो। पर विचारणीय यह है कि हम जब आत्मनिर्भरता की बात करते हैं तो क्या हम वास्तविकता में सही अर्थों में आत्मनिर्भर होने की ओर अग्रसर हैं या हो पाएंगे ??

हमारे राष्ट्राध्यक्ष ने जब भी कोई निर्णय लिया या किसी मुद्दे पर जनसमर्थन का आह्वान किया तो लगभग सारे देश ने एक स्वर में उनका साथ दिया। जब मैं कहता हूं लगभग तो इसका अर्थ है कि कभी भी किसी निर्णय में सारे देश की आबादी का समर्थन मिलना लोकतंत्र में प्रायः असम्भव होता है। कई राजनीतिक दल विभिन्न विचारधाराएं आदि कभी भी सम्पूर्ण समर्थन नहीं बनने देतीं। परंतु फिर भी देश की अधिकतर आबादी ने उनके हर निर्णय को उचित सम्मान दिया और भविष्य में भी देशहित में लिए गए उनके हर निर्णय का समुचित सम्मान होगा ये निश्चित है।

 यह भी पढ़ें : पुलिस-राजनीति-जुर्म के नापाक रिश्तों को बेनकाब करती है यह फिल्म

Atmanirbhar Bharat :  असमंजस में है केंद्र सरकार

परंतु जब आत्मनिर्भरता की बात होती है तो ऐसा प्रतीत होता है की आमजन से तो आत्मनिर्भरता की पूरी उम्मीद की जा रही है पर केंद्र स्वयं इस विषय में असमंजस में है। उदाहरण के तौर पर कोरोना महामारी की वैक्सीन के मामले में रूस व चीन ने अपने नागरिकों को स्वनिर्मित वैक्सीन देना शुरू भी की कर दिया है। ब्रिटेन से  भी कारगर वैक्सीन के शीघ्र इस्तेमाल करने की आवाज उठ रही है। अब तो अमेरिका भी नवम्बर माह से वेक्सीन वितरण की योजना बना रहा है।

 

 

Atmanirbhar Bharat :  WHO के प्रोटोकाल्स से धीमी हो रही है वैक्सीन के बनने गति

 जबकि इन सारे मुद्दों पर WHO अपने प्रोटोकाल्स की दुहाई दे रहा है पर अब इनमें से कोई भी देश इस गैरज़िम्मेदार संस्थान की बातों को गंभीरता से लेने पक्ष में नही दिखता। जबकि ये वो देश हैं जहां महामारी या तो अपने चरम पर पहुंच चुकी है व उतार पर है अथवा लगभग नियंत्रित हो चुकी है। इसके विपरीत हमारे देश मे कोरोना उफान पर है। फिर भी हम पुरजोर आत्मनिर्भरता की बात करने के बावजूद वैक्सीन के लिए WHO के ऊपर निर्भर हैं, वो भी तब जब हमारा देश सारे विश्व में होनेवाले वैक्सीन निर्माण में लगभग 60 प्रतिशत हिस्सेदारी रखता है। 

 

यह भी पढ़ें : सैमसंग ने भारतीय बाज़ार में उतारा हाई-फाई फीचर वाला नया मोबाइल

 

Atmanirbhar Bharat :  क्या कोविड-19 वैक्सीन बनाने में पिछड़ रहा है देश ..?

 

हमारे देश मे विकसित कोवाक्सिन ह्यूमन ट्रायल के दूसरे दौर में होने के बाद भी दौड़  में पिछड़ती दिखाई देती है। क्यों..?? क्या इसलिए कि WHO जैसे लापरवाह व लालची संस्थान नहीं चाहते कि वैक्सीनेशन की प्रक्रिया में भारत भी आगे हो और हम इस विषय मे लगभग परनिर्भर हैं इसलिए हां में हां मिलाने या मौन धारण करने के अलावा कुछ विशेष नहीं कर पा रहे। ये कैसी आत्मनिर्भरता है जो आम जनमानस पर तो सूक्ष्मतम स्तर पर लागू होती है पर वृहद स्तर पर उसके समीकरण ही बदल जाते हैं

 यह भी पढ़ें : Govt Banned 118 Apps including PUBG- देश की सुरक्षा में लगा रहे थे सेंध

 🤔🤔..

देश के नीति नियंताओं से बेहतर कौन समझेगा की नेतृत्व सर्वाधिक प्रभावशाली तभी होता है जब नेता स्वयं उदाहरण प्रस्तुत कर करे या स्वयं उदाहरण बने। कोई भी सैद्धान्तिक निर्णय तभी सर्वाधिक सफल होता है जब प्रयोगिकता स्वयं प्रमाणित की जाए। विचार या सिद्धान्त तो कई आये पर स्थिरता के साथ टिके वही जो प्रायोगिक तौर पर स्वप्रमाणित हुए या किये गए। क्या देश  उम्मीद रखें कि निकट भविष्य में कोरोना वैक्सीन के मामले देशवासियों को  एक प्रमाणित सक्षम नेतृत्व का सजीव उदाहरण देखने को मिलेगा ?

Chance-to-win-iPhone 11Procontains affiliate link(s). An affiliate links means I may earn advertising/referral fees if you make a purchase through my link, without any extra cost to you. It helps to keep this website afloat.Thanks for your support.