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एएबी सियासत : वर्तमान में आम जनता के दिलो-दिमाग पर भले ही कोविड-19 छाया हुआ है लेकिन सियासतदारों के  दिमाग में तो शह-मात का खेल जोर पकड़ता जा रहा है| जिले में राजनैतिक माहौल विधानसभा के आगामी उपचुनावों को लेकर काफी गरमाता जा रहा है | सत्ता से बेदखल होने के बाद से  कांग्रेस पार्टी की बौखलाहट कम होने की जगह बढती ही नजर आ रही  है| इसी के चलते पार्टी के रहनुमाओं ने भाजपा से दो - दो हाथ कर प्रदेश में सत्ता फिर हथियाने ले लिए अपने मोहरों की जमावट शुरू कर दी है |

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प्रदेश में कांग्रेस की बागडोर कमलनाथ के पास है लेकिन  उसपर दिग्विजय सिंह का भी अच्छा-खासा दखल माना जा रहा है | प्रदेश स्तर पर कांग्रेस पार्टी की दिशा और दशा तय करने वाले कद्दावर नेताओं के करीबियों और भरोसे के नेताओं की पार्टी के पदों पर होने वाली नियुक्तियों से ही यह साफ़ होता जाएगा की में कांग्रेस पार्टी के अन्दर किसका कितना दबदबा चल  रहा है|

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सागर जिले में जिला अध्यक्ष ग्रामीण की लगाम पार्टी की ही पुराने धनिक जैन परिवार के सदस्य नरेश जैन को सौंपा जाना भी प्रदेश स्तर पर कांग्रेस पार्टी के दिग्गजों के बीच बनते - बिगड़ते समीकरणों की ही झलक दिखा रहा है | हालाँकि स्थानीय कांग्रेसी फिलहाल इस विषय पर  ज्यादा  दिमाग नहीं लगा रहे हैं उन्हों तो सबसे ज्यादा ख़ुशी इस बात की  हो रही है की वर्षों से किले में की चहारदीवारियों में कैद पार्टी को बगीचे में ही सही खुली साँस लेने का मौका तो मिला है |पार्टी के अन्दर तो इस नियुक्ति को भी पार्टी में बदलाव की शुरुआत के रूप में देखा जा रहा है|

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लम्बे समय से जिला कांग्रेस ग्रामीण के पद पर काबिज़ रहे हीरा सिंह राजपूत के कार्य काल में उपेक्षित रहे कांग्रेसी कार्यकर्ता इस नई नियुक्ती से बड़ी राहत महसूस कर रहे होंगे| चूँकि राजपूत अब पद ही नहीं पार्टी से ही बाहर हैं इस लिए उनसे नाराज रहे कांग्रेसी  कार्यकर्ताओं को उनके खिलाफ अपनी भड़ास निकालने का  भरपूर मौका भी मिल रहा है| नए अध्यक्ष के समर्थकों का यह मानना है की नेतृत्व परिवर्तन से पार्टी आगामी उपचुनावों में पूरी ताकत से संघर्ष करेगी |
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एएबी-शेखचिल्ली/ मप्र सरकार ने एक फरमान जारी कर सार्वजनिक स्थलों पर थूकने पर पाबंदी लगा दी है। आदेश तो जनता के हित में हैं लेकिन अब सवाल यह है कि इसका पालन होगा की नहीं ? इस आदेश को लेकर लोगों के मन में क्या चल रहा है? वो आदेश की तामीली को लेकर कितने उत्साहित या नाराज हैं ? पान-गुटका,तंबाकू खाने के शौकीन लोगों को तो यह आदेश कालेपानी की सजा से कम नहीं लग रहा है? उन्हें लगता है कि सामाजिक दूरी बनाए रखने की दिशा में सरकार का यह कदम बेहद सख्त है। अब एक नजर उन लोगों पर भी डाली जाए जिन्हें सार्वजनिक स्थलों पर थूकते हुए देखा जाता हैं।  

इनमें एक बिरादरी तो वह है जो सर्दी-खांसी की चपेट मे आने के कारण यहां-वहां थूकते नजर आते है। हालांकि यह लोग मौसमी होते हैं। ये देर-सबेर आदेश का पालन करने लगेंगें और कुछ लोग जुर्माना भरने के बाद सुधर जाएंगें। दूसरी बिरादरी में वो लोग आते हैं जिनके अन्दर कुछ-कुछ देर मे थूकने की एक मानसिक कुप्रवृत्ति ही विकसित हो जाती है इसी बिरादरी मे उन लोगों को भी रखा जा सकता है जिनकी अलहदा सफाई-पसंद सोच मे बार-बार थूकने को शरीर को दुरूस्त रखने का बड़ा कारगर उपाय माना जाता है। इस  बिरादरी के भी  इस आदेश की  गिरफ्त मे आने की संभावना बहुत ज्यादा है।

इन्ही के बराबरी में एक अजब-गजब बिरादरी और होती है जो अपने दुश्मनों को तंगाने के लिए हमेशा कोई ऐसा काम करते है जो सामने वाले को  पसंद नहीं होता है भले ही उस काम को करने से उन्हें खुद ही परेशानी क्यों न उठानी पड़ती होती हो। अब अगर मौजूदा दौर में इस सनकी बिरादरी के महारथियों ने  थूकने की प्रवृत्ति को अपना हथियार बना रखा होगा तो उनकी मुश्किलें भी बढ़ सकतीं हैं। थूकने पर उनके दुश्मन को विचलित हो या न हो पर उन्हें ऐसा करते देख कर जागरूक नागरिक व पुलिस जरूर विचलित हो सकती है और वह इन महारथियों को ऐसे हालातों में पहुंचा सकती है जब इनको पुलिस के डंडों की मालिश या सड़क पर उठ्ठक-बैठक लगाने का अनुभव भी लेना पड़ सकता है।

लेकिन एक और बिरादरी है जो पान-गुटका व तंबाकू के सहारे की बिना  जीवन जीने की कल्पना मात्र से सिहर जाती है। सार्वजनिक स्थल पर थूकने पर पाबंदी के आदेश आने के बाद से वो ऐसी ऐसी भाव-भंगिमा बनाते दिख  रहें हैं जैसे किसी ने इनके मौलिक अधिकार ही छीन लिए हों ।
    सागर शहर के जैसे लगभग सभी शहरों मे, कम या ज्यादा, ऐसे लोगों की बड़ी जमात मौजूद है जिसके पल-पल मे थूकने की अपनी अलग ही वजह हैं। ये किसी दुर्भावना के तहत नहीं थूकते हैं लेकिन थूकते इतना ज्यादा है कि बस इन्हें देखने वालों को ऐसा लगने लगता है कि जैसे ये लोग सिर्फ थूकने के लिए ही पैदा हुए है। किसी भी शहर किसी भी इलाके में चले जाईए वहां इनके द्वारा थूकने की प्रवृत्ति के चलते बदरंग किए हुए कोने में एक से बढ़कर एक आकृतियां व डिजाईनें देखने को मिल जाएंगीं। 

ऐसा नहीं हैं कि ये लोग गुटका-पान तंबाकू खाना छोड़ नहीं सकते है। वे ऐसा कर सकते हैं लेकिन उनका मानना है कि ऐसा करने में उन्हें बहुत कठिनाईंयों का सामना करना पड़ता सकता है। पलटू तिवारी कहते हेैं कि इसको मुंह मे भर कर बोलने से एक अलग ही तरह का आत्मविश्वास पैदा होता है। मंझले कक्का किसी विजेता की भांति अपनी मूंछों पर तव देते हुए कहते हैं कि बीस साल हो गए आज तक बिना तंबाकू खाए दिशा को नहीं जा पाए। बडबोले  उस्ताद कहते हैं कि हम लोग देश की अर्थव्यवस्था की मजबूती के लिए पान-गुटका व तंबाकू का सेवन कठिन से कठिन हालातों में भी नहीं रोकते हैं आज के समय 20 रूपए का गुटका 100 रूपए मे मिल रहा है पर ऐसे कठिन समय में भी देश की अर्थ्वावस्था का ख्याल रखकर हम लोगों ने  इसका सेवन बंद नहीं किया है। 

इस बिरादरी का कहना है कि यह थूकने पर पाबंदी तो हमारे लिए जी का जंजाल बन जाएगी।  पान-गुटके व तंबाकू की पीक अगर हम  थूक नहीं सकेगें तो गुटक भी नहीं सकेंगें। इससे एक और तो सबसे ज्यादा जुर्माना हम लोगों को ही भरना पड़ेंगा और हमारी सेहत पर बुरा असर पड़ेगा सो वो अलग। अगर बाहर सड़क पर थूक नहीं सकते हैं तो हम लोगों को घर से बाहर निकलना ही दूभर हो जाएगा। यह तो हमारे लिए बिना किसी आदेश के लाॅक-डाउन का फरमान हो गया। 

इस बिरादरी के लोग खुद के दिल को समझा नहीं पा रहे हैं कि सार्वजनिक स्थानों पर थूकने पर पाबंदी लगने वाला आदेश अब हकीकत बन गया है। इसका पालन नहीं करने वालों की सार्वजनिक कुटाई, आर्थिक जुर्माना व बदनामी किए जाने की पूरी तैयारी हो चुकी है। सबसे खतरनाक बात यह है कि मोबाईल संस्कृति के बोलबाले के तहत कब कौन किसकी फोटो खींच कर उनको "सार्वजनिक स्थल पर थूकने वाले  घटिया लोग" के शीर्षक के साथ कब कोई वाट्सएप,फेसबुक, ट्विटर पर वायरल कर खलनायक स्टार बना कर दुनिया भर में हल्ला मचा दे पता ही नहीं चलेगा ।

खैर आगे क्या होगा यह तो वक्त ही बताइयेगा फिलहाल हम तो बस इतना बता सकते है की प्रदेश भर की थुकनी-बिरादरी के बीच थूकने पर पाबन्दी के आदेश पर महामंथन  शुरू हो गया है ।


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दो राजाओं की जंग में, 
 पड़ गओ रंग में भंग ।
एक ने मारों डंक 
सो  दूजे ने बदलो संग ।
 थामो दामन कमल को
 सो कमल रह गए दंग ।
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यह सही है कि अगर सबकुछ ठीक रहा तो ”ओरछा“ मप्र का दूसरा विश्वधरोहर स्थल बन जाएगा। अक्सर पिछड़ेपन के नाम पर बुंदेलखंड का जिक्र किया जाता रहा है लेकिन यह भी अजब बात है आर्थिक रूप से पिछड़ा बताए जाने के बावजूद भी है बुंदेलखंड  ऐतिहासिक धरोहर व सांस्कृतिक परंपराओं के लिहाज से संपन्न है और दुनिया भर के लोग इस धरोहर को देखने के लिए यहाँ  भागे चले आ रहे हैं । ऐसा लगता है के पर्यटन उद्योग ही बुंदेलखंड के लिए 'नाम और दाम' दिला सकता है ।  ऐतिहासिक व सांस्कृतिक सम्पन्नता ही  बुंदेलखंड के माथे से आर्थिक पिछड़ेपन का दाग मिटा पायेगी ।

 ऐसा मन जा रहा है कि इसी चलन में छुपी व्यापार की संभावनाओं को पकड़ कर प्रदेश सरकार ने ”नमस्ते ओरछा“ कार्यक्रम के आयोजन का मन बनाया है । बड़े पैमाने पर ओरछा शहर की शक्ल-सूरत बदलने की तैयारी चल रही है । स्थानीय लोग इस कार्यक्रम को लेकर काफी प्रसन्न नजर आ रहे हैं। 

पर्यटकों की आवागमन से रोजी-रोटी कमाने वाले व्यापारियों को लग रहा हैं कि सामान्यतः  गर्मी के मौसम मे पर्यटकों की आवक कम रहती है उसकी भरपाई यह आयोजन करेगा। सालों से भदरंग पड़ीं किले की दीवारों की साफ-सफाई के बाद रंगत बदलने की उम्मीद नजर आने लगी है । हालांकि वे  यह भी मान रहे हैं कि आयोजन की तारीख पास आने तक किले की सूरत पूरी तरह से निखर जाएगी इसकी संभावना कम ही लग रही है। 

ऐतिहासिक धरोहर के संरक्षण के समर्थक यह आशा व्यक्त कर रहे हैं कि प्रदेश सरकार ऐतिहासिक स्थलों के कायाकल्प, उन्नयन व रखरखाव के तूफानी प्रयासों के बीच स्मारकों की मौलिकता को 'बाजारीकरण' की भेंट चढ़ने से बचाने के प्रति भी काफी सजगता बरत रही होगी । बदरंग व सालों से उपेक्षित पड़ीं किले की दीवारों को चमकाने के लिए आनन-फानन में मनमाने रंगों में रंगने की जगह ईमारतों की ऐतिहासिकता के लिहाज से मुफीद माने जाने वाले रंगों का ही प्रयोग करेगी।

 ऐतिहासिक ईमारतों से धन कमाने की मंशा के चलते उनमें ऐसे रेस्टोंरेंट आदि नहीं खोलने देंगें जिनकी साज सज्जा मे प्रयुक्त होने वाली सामग्री इमारतों  की ऐतिहासिकता के लिहाज से प्रसांगिक ही नजर ना आती हो । लेकिन मप्र सरकार धन्यवाद की पात्र है कि उसने ऐतिहासिक व सांस्कृतिक धरोहर से संपन्न बुंदेलखंड अंचल की खूबियों को दुनिया की नजर मे लाने व पर्यटन को बढ़ावा देकर क्षेत्र मे आर्थिक गतिविधियों को तेज करने के लिए एक सकारात्मक पहल की है।
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सागर मे मप्र की प्रदेश स्तरीय महात्वाकांक्षी ई-बस्ता योजना का शुभारंभ हुआ। कार्यक्रम में बताया गया की  शुरूआती तौर पर , प्रशासन के मुताबिक जिले की राहतगढ़ तहसील के 34 पटवारियों को लैपटाप वितरित किए गए । लेकिन राजस्व मंत्री के मुताबिक 32 पटवारियों को लैप टाप दिए गए । कहने को तो मात्र दो अंकों का अंतर है सरकार के नुमांईदें व प्रशासनिक अधिकारी अलग-अलग आंकड़े एक ही मंच से पेश कर आखिर जनता को क्या संदेश देना चाहते हैं ? 
इससे लगता है दोनों के बीच मे तालमेल का अभाव है। दोंनों के अंदर ही अलग- अलग तरह की ठकरास सी भरी है एक बार जो कह दिया सो कह दिया जिसने जो आंकड़ा बोल दिया तो उनके लिए वह ही सही है। प्रशासन कह रहा है कि इस पायलट योजना के सफल हो ने पर प्रदेश भर के कुल 20 हजार पटवारियों को लैप टाप दिए जाएंगें लेकिन राजस्व मंत्री के मुताबिक प्रदेश के कुल 19 हजार पटवारियों को लैपटाप दिए जाएंगें। आखिर यह गणित है क्या? प्रशासन व मंत्री के बीच के आंकड़ों के अंतर के चलते एक हजार पटवारियों का हेरफेर नजर आ रहा है । 
अगर प्रशासन अपने आंकड़ों के मुताबिक 20 हजार लेपटाप खरीदेगा और मंत्री जी अपने आंकड़े के मुताबिक 19 हजार पटवारियों को लैपटाप बांटेगें तो बाकी के एक हजार लैपटाप का क्या होगा? जब मंत्री के मुताबिक पटवारियों की संख्या 19 हजार है तो उनकी सरकार 19 हजार लैपटाप ही खरीदेगी। ऐसे में प्रशासन अपने एक हजार अतिरिक्त पटवारियों के लिए लैपटाप का इंतजाम कहां से करेगा? 
आंकड़ों की जुबानी तो यह लगता है कि प्रशासन व सरकार के नुमाईंदे तू डाल-डाल, मैं पांत-पांत की तर्ज पर चल रहे हैं । आंकड़ों की इस बाजीगिरी से जनता का भला होगा या बंटाधार तो आने वाला वक्त ही बताएगा। तब तक तो जनता अपन सर खुजलाती रही और अटकलें लगाती रहे कि क्या सटीक आंकड़ों के बिना जनकल्याण की सटीक योजनाएं बनाईं जा सकतीं हैं ?