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AAB NEWS/
केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह ने विज्ञान भवन, नई दिल्ली में एक समारोह में तूर के किसानों के पंजीकरण, खरीद, भुगतान के लिए ई-समृद्धि व एक अन्य पोर्टल लोकार्पित किया। भारतीय राष्ट्रीय कृषि सहकारी विपणन महासंघ (NAFED) तथा भारतीय राष्ट्रीय उपभोक्ता सहकारिता संघ (NCCF) द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम के अवसर पर दलहन में आत्मनिर्भरता पर राष्ट्रीय संगोष्ठी भी आयोजित हुई। 
 
यहां केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण व जनजातीय कार्य मंत्री अर्जुन मुंडा, केंद्रीय उपभोक्ता मामले, खाद्य व सार्वजनिक वितरण राज्य मंत्री श्री अश्विनी कुमार चौबे, सहकारिता राज्यमंत्री  बी.एल, वर्मा विशेष अतिथि थे। इसमें किसान एवं पैक्स, एफपीओ, सहकारी समितियों के प्रतिनिधि बड़ी संख्या में मौजूद थे।

मुख्य अतिथि केंद्रीय मंत्री अमित शाह ने कहा कि ये पोर्टल के जरिए ऐसी शुरूआत की है, जिससे नेफेड व एनसीसीएफ के माध्यम से किसानों को एडवांस में रजिस्ट्रेशन कर तूर दाल की बिक्री में सुविधा होगी, उन्हें एमएसपी या फिर इससे अधिक बाजार मूल्य का डीबीटी से भुगतान हो सकेगा। 
 
इस शुरूआत से आने वाले दिनों में किसानों की समृद्धि, दलहन उत्पादन में देश की आत्मनिर्भरता और पोषण अभियान को भी मजबूती मिलती दिखेगी। साथ ही क्रॉप पैटर्न चेंजिंग के अभियान में गति आएगी और भूमि सुधार एवं जल संरक्षण के क्षेत्रों में भी बदलाव आएगा। आज की शुरूआत आने वाले दिनों में कृषि क्षेत्र में प्रचंड परिवर्तन लाने वाली है। 
 
श्री शाह ने कहा कि दलहन के क्षेत्र में देश आज आत्मनिर्भर नहीं है, लेकिन हमने मूंग व चने में आत्मनिर्भरता प्राप्त की है। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने दलहन उत्पादक किसानों पर बड़ी जिम्मेदारी डाली है कि वर्ष 2027 तक दलहन के क्षेत्र में भारत आत्मनिर्भर हों। 
 
उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि किसानों के सहयोग से दिसंबर 2027 से पहले दलहन उत्पादन के क्षेत्र में भारत आत्मनिर्भर बन जाएगा और देश को एक किलो दाल भी आयात नहीं करना पड़ेगी। दलहन में देश को आत्मनिर्भर बनाने के लिए सहकारिता मंत्रालय और कृषि मंत्रालय सहित अन्य पक्षों की कई बैठकें हुई हैं, जिनमें लक्ष्य प्राप्ति की राह में आने वाली बाधाओं पर चर्चा की गई  है।

उन्होंने कहा कि कई बार दलहन उत्पादक किसानों को सटोरियों या किसी अन्य स्थिति के कारण उचित दाम नहीं मिलते थे, जिससे उन्हें बड़ा नुकसान होता था। इसके कारण वे किसान दलहन की खेती करना पसंद नहीं करते थे। 
 
ये तय किया गया है कि जो किसान उत्पादन करने से पूर्व ही पोर्टल पर रजिस्ट्रेशन कराएगा, उसकी दलहन को एमएसपी पर शत-प्रतिशत खरीद कर लिया जाएगा। इस पोर्टल पर रजिस्टर करने के बाद किसानों के दोनों हाथों में लड्डू होंगे। 
 
फसल आने पर अगर दाम न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP-Minimum Support Price) से ज्यादा होगा तो उसका औसत  निकाल कर भी किसान से ज्यादा मूल्य पर दलहन खरीदने का एक वैज्ञानिक फार्मूला बनाया गया है और इससे किसानों के साथ कभी अन्याय नहीं होगा। श्री शाह ने किसानों से अपील की कि वे पंजीयन करें, प्रधानमंत्री श्री मोदी की गारंटी है कि सरकार उनकी दलहन खरीदेगी, उन्हें बेचने के लिए भटकना नहीं पड़ेगा।

उन्होंने विश्वास जताया कि देश को आत्मनिर्भर बनाने में किसान कोई कसर नहीं छोड़ेगा। देश का बहुत बड़ा हिस्सा आज भी शाकाहारी है, जिनके लिए प्रोटीन का बहुत महत्व है, जिसका दलहन प्रमुख स्रोत है। कुपोषण के खिलाफ देश की लड़ाई में भी दलहन उत्पादन का बहुत महत्व है। 
 
भूमि सुधार हेतु भी दलहन महत्वपूर्ण फसल है, क्योंकि इसकी खेती से भूमि की गुणवत्ता बढ़ती है। भूजल स्तर को बनाए रखना और बढ़ाना है तो ऐसी फसलों का चयन करना होगा, जिनके उत्पादन में पानी कम इस्तेमाल हो, दलहन इनमें है। दलहन एक प्रकार से फर्टिलाइजर का एक लघु कारखाना आपके खेत में ही लगा देती है। 
 
उन्होंने कहा कि भंडारण अभिकरण  (Ware Housing Agencies) के साथ इस ऐप का रियल टाइम बेसिस पर एकीकरण करने का प्रयास किया जा रहा है। आने वाले दिनों में वेयरहाउसिंग का बहुत बड़ा हिस्सा प्रधानमंत्री श्री मोदी की सरकार के कारण कोऑपरेटिव सेक्टर में आने वाला है। 
 
हर पैक्स एक बड़ा वेयरहाउस बनाने की दिशा में आगे बढ़ रहा है, इससे फसलों को दूर भेजने की समस्या का समाधान हो जाएगा। उन्होंने किसानों से दलहन अपनाने व देश को 1 जनवरी 2028 से पहले दलहन में आत्मनिर्भर बनाने की अपील की, ताकि देश को 1 किलो दलहन भी इंपोर्ट नहीं करना पड़े।

उन्होंने कहा कि बीते 9 साल में प्रधानमंत्री श्री मोदी के कार्यकाल में खाद्यान्न उत्पादन में बहुत बड़ा बदलाव आया है। वर्ष 2013—14 में खाद्यान्न उत्पादन कुल 265 मिलियन टन था और 2022—23 में यह बढ़कर 330 मिलियन टन तक पहुंच चुका है। 
 
आजादी के बाद के 75 साल में किसी एक दशक का विश्लेषण करें तो सबसे बड़ी बढ़ोत्तरी मोदीजी के नेतृत्व में देश के किसानों ने की है। उन्होंने कहा कि इस दौरान दलहन के उत्पादन में भी बहुत बड़ी बढ़ोतरी हुई है मगर तीन दलहनों में हम आत्मनिर्भर नहीं है और उसमें हमें आत्मनिर्भर होना है।
 
 श्री शाह ने कहा कि प्रोडक्विटी बढ़ाने के लिए अच्छे बीज उत्पादन के लिए एक कॉपरेटिव बनाई गई है, कुछ ही दिनों में हम दलहन और तिलहन के बीजों की उत्पादकता बढ़ाने के लिए अपना प्रोजेक्ट सामने रखेंगे। हम परंपरागत बीजों का संरक्षण और सवंर्धन भी करेंगे। उत्पादकता बढ़ाने हमने कॉपरेटिव आधार पर बहु-राज्यीय बीज संशोधन समिति बनाई है। उन्होंने अपील की है कि सभी पैक्स समिति में रजिस्टर करें।

श्री शाह ने कहा कि इसके साथ ही इथेनॉल उत्पादन भी हमें बढ़ाना है। प्रधानमंत्री श्री मोदी ने पेट्रोल के साथ 20 प्रतिशत इथेनॉल मिलाने का लक्ष्य रखा है, 20 प्रतिशत इथेनॉल मिलाना है तो हमें इसके लिए लाखों टन इथेनॉल का उत्पादन करना है। 
 
नेफेड व एनसीसीएफ इसी पैटर्न पर आगामी दिनों में मक्के का रजिस्ट्रेशन चालू करने वाले हैं, जो किसान मक्का बोएगा, उसके लिए सीधा इथेनॉल बनाने वाली फैक्ट्री के साथ एमएसपी पर मक्का बेचने की व्यवस्था कर देंगे, जिससे उनका शोषण नहीं होगा और पैसा सीधा बैंक खाते में जाएगा। 
 
उन्होंने कहा कि इससे आपका खेत मक्का उगाने वाला नहीं, बल्कि पेट्रोल बनाने वाला कुंआ बन जाएगा। देश के पेट्रोल के लिए इम्पोर्ट की फॉरेन करेंसी को बचाने का काम किसानों को करना चाहिए। उन्होंने देशभर के किसानों से अपील की है कि हम दलहन के क्षेत्र आत्मनिर्भर बनें और पोषण अभियान को भी आगे बढ़ाएं।

केंद्रीय मंत्री श्री अर्जुन मुंडा ने कहा कि प्रधानमंत्री श्री मोदी के नेतृत्व में, किसान हित में अनेक ठोस कदम उठाते हुए हम आगे बढ़ रहे हैं। केंद्र सरकार विभिन्न योजनाओं व कार्यक्रमों द्वारा कृषि क्षेत्र को सतत् बढ़ावा दे रही है, जिनमें दलहन में देश के आत्मनिर्भर होने का लक्ष्य अहम है, जिस पर कृषि मंत्रालय भी तेजी से काम कर रहा है। 
 
उन्होंने कहा कि दलहन की क्षमता खाद्य एवं पोषण सुरक्षा तथा पर्यावरणीय स्थिरता का समाधान करने में मदद करती है, जिसे संयुक्त राष्ट्र द्वारा 2016 को अंतरराष्ट्रीय दलहन वर्ष की घोषणा के माध्यम से भी स्वीकार किया गया है। दलहन स्मार्ट खाद्य हैं, क्योंकि ये भारत में फूड बास्केट व प्रोटीन का महत्वपूर्ण स्रोत हैं। 
 
दालें पोषण संबंधी आवश्यकताओं को पूरा करने में मदद करती हैं। दलहन कम जल ग्रहण करने वाली होती हैं और सूखे या वर्षा सिंचित वाले क्षेत्रों में उगाई जा सकती हैं, मृदा नाइट्रोजन को ठीक करके उर्वरता सुधारने में मदद करती हैं। 
 
म.प्र., महाराष्ट्र, राजस्थान, उ.प्र., आंध्र, कर्नाटक, गुजरात, झारखंड, बिहार, छत्तीसगढ़, तेलंगाना, तमिलनाडु व ओडिशा दलहन उत्पादक हैं, जो देश में 96% क्षेत्रफल में दलहन का उत्पादन करते हैं। 
 
गर्व की बात है कि भारत, विश्व में दलहन का सबसे बड़ा उत्पादक है, प्रधानमंत्री इसे प्रोत्साहित करते हैं। वर्ष 2014 के बाद से दलहन उत्पादन में वृद्धि हो रही है, वहीं इसका आयात पहले की तुलना में घटा है।

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श्री मुंडा ने कहा कि प्रधानमंत्री श्री मोदी के नेतृत्व में भारत सरकार ने दलहन उत्पादन बढ़ाने के लिए कई पहल की हैं। राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन (एनएफएसएम)-दलहन को 28 राज्यों एवं जम्मू व कश्मीर तथा लद्दाख यूटी में कार्यान्‍वित किया जा रहा है। 
 
उन्होंने प्रसन्नता जताई कि दो शीर्ष सहकारी संस्थाओं द्वारा ऐसा पोर्टल बनाया गया है, जहां किसान पंजीयन पश्चात् स्टॉक एंट्री कर पाएंगे, स्टॉक के वेयरहाउस पहुंचते ई-रसीद जारी होने पर किसानों को सीधा पेमेंट पोर्टल से बैंक खाते में होगा। पोर्टल को वेयरहाउसिंग एजेंसियों के साथ एकीकृत किया है, जो वास्तविक समय आधार पर स्टॉक जमा निगरानी करने में सहायक होगा, जिससे समय पर पेमेंट होगा। 
 
इस प्रकार खरीदे स्टॉक का उपयोग उपभोक्ताओं को भविष्य में अचानक मूल्य वृद्धि से राहत प्रदान करने के लिए किया जाएगा। स्टॉक राज्य सरकारों को उनकी पोषण व कल्याणकारी योजनाओं के तहत उपयोग के लिए भी उपलब्ध होगा। 
 
श्री मुंडा ने कहा कि हम सबके सामूहिक प्रयास हमें ऐसे भविष्य की ओर ले जा रहे हैं, जहां भारत दाल उत्पादन में आत्मनिर्भर होगा। हम किसानों का समर्थन जारी रखें व कृषि आधार को मजबूत करते हुए अधिक समृद्ध-आत्मनिर्भर राष्ट्र की दिशा में काम करें। 
 
श्री मुंडा ने कहा कि प्रधानमंत्री ने खूंटी, झारखंड से जो विकसित भारत संकल्प यात्रा प्रारंभ की है, उसके मूल में किसान भाई-बहन ही है।

नेफेड अध्यक्ष बिजेंद्र सिंह, एनसीसीएफ अध्यक्ष विशाल सिंह, केंद्रीय सहकारिता सचिव ज्ञानेश कुमार, उपभोक्ता मामलों के सचिव श्री रोहित कुमार सिंह व कृषि सचिव मनोज अहूजा भी मौजूद थे। नेफेड एमडी  रितेश चौहान स्वागत भाषण दिया। एनसीसीएफ एमडी ए. चंद्रा ने आभार माना।

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 कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण ने समुद्र के रास्ते नीदरलैंड को केले की पहली परीक्षण खेप के निर्यात की सुविधा प्रदान की

  • अनुमान के मुताबिक, भारत अगले 5 वर्षों में 1 बिलियन अमेरिकी डॉलर मूल्य के केले का निर्यात करने में सक्षम हो सकता है और इससे 25,000 से अधिक किसानों की आय में वृद्धि हो सकती है

AAB NEWS/ 


वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के अंतर्गत कार्यरत कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीईडीए) ने ताजे फलों के निर्यात की संभावनाओं को महत्वपूर्ण प्रोत्साहन प्रदान करने के लिए, नीदरलैंड को आईएनआई फार्म्स द्वारा समुद्री मार्ग से ताज़े केलों की पहली परीक्षण खेप के निर्यात की सुविधा प्रदान की है।

नीदरलैंड के लिए केले के एक कंटेनर की पहली निर्यात खेप को कल (9 नवंबर, 2023) कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीईडीए) के अध्यक्ष श्री अभिषेक देव ने महाराष्ट्र के बारामती से झंडी दिखाकर रवाना किया।

कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीईडीए) ने केले की परीक्षण खेप के लिए तकनीकी सहायता के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के केंद्रीय उपोष्णकटिबंधीय बागवानी संस्थान (सीआईएसएच), लखनऊ का सहयोग लिया है, जबकि आईएनआई फार्म्स ने यूरोप में विपणन और वितरण के लिए डेल मोंटे और लॉजिस्टिक्स के लिए मेर्स्क के साथ साझेदारी की है।

यूरोप में केले की परीक्षण खेप कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण-पंजीकृत 'आईएनआई फार्म्स' द्वारा किया गया था, जो भारत से फलों और सब्जियों का एक शीर्ष निर्यातक है और उनकी उपज दुनिया भर के 35 से अधिक देशों में निर्यात की जा रही है। 

पिछले दो वर्षों में, फर्म ने यूरोपीय बाजार के कड़े मानकों को पूरा करने के लिए केले की गुणवत्ता और शेल्फ लाइफ को बढ़ाने के लिए व्यापक प्रयास किए हैं। आईएनआई फार्म्स ने एग्रोस्टार समूह के हिस्से के रूप में किसानों के साथ सीधे काम करके केले के लिए एक मूल्य श्रृंखला भी स्थापित की है।

कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष ने कार्यक्रम के दौरान उल्लेख किया कि नीदरलैंड को केले का निर्यात शुरू होने से केलों के मूल्य में वृद्धि होगी और किसानों की आय में बढ़ोतरी होगी। उन्होंने इस बात पर भी प्रकाश डाला कि यह परीक्षण खेप भारतीय केले के लिए यूरोपीय बाजार की महत्वपूर्ण निर्यात क्षमता में वृद्धि करेगा।

वाणिज्यिक परिचालन शुरू करने में लंबी दूरी का बाजार और ऊंची लागत की बाधाएं सामने आई थीं। केले की पहली परीक्षण खेप के निर्यात से गुणवत्ता वाले फलों के निर्यात को सुनिश्चित करके भारतीय निर्यातकों और यूरोपीय संघ (ईयू) के आयातकों के बीच क्षमता निर्माण में मदद मिलेगी।

विश्व का सबसे बड़ा केला उत्पादक देश होने के बावजूद, वैश्विक बाजार में भारत का केले के निर्यात का हिस्सा वर्तमान में केवल एक प्रतिशत ही है, भले ही विश्व के 35.36 मिलियन मीट्रिक टन केले उत्पादन में देश की हिस्सेदारी 26.45 प्रतिशत है। भारत ने वित्तीय वर्ष 2022-23 में, 176 मिलियन अमरीकी डालर के केले का निर्यात किया, जिसकी मात्रा 0.36 मिलियन मीट्रिक टन के बराबर है।

यूरोपीय बाजार में पहली परीक्षण खेप के साथ, यह अनुमान लगाया गया है कि भारत अगले पांच वर्षों में एक अरब अमेरिकी डॉलर से अधिक मूल्य के केले का निर्यात करने में सक्षम हो सकता है। 

इससे 25,000 से अधिक किसानों की आय में वृद्धि हो सकती है और आपूर्ति श्रृंखला में 10,000 से अधिक लोगों के लिए प्रत्यक्ष रूप से ग्रामीण आजीविका का सृजन हो सकता है और अप्रत्यक्ष रूप से खेतों में 50,000 से अधिक लोगों को रोजगार मिल सकता है।

भारतीय केले के प्रमुख निर्यात स्थलों में ईरान, इराक, संयुक्त अरब अमीरात, ओमान, उज्बेकिस्तान, सऊदी अरब, नेपाल, कतर, कुवैत, बहरीन, अफगानिस्तान और मालदीव शामिल हैं। इसके अतिरिक्त, संयुक्त राज्य अमेरिका, रूस, जापान, जर्मनी, चीन, नीदरलैंड, ब्रिटेन और फ्रांस जैसे देशों में निर्यात के प्रचुर अवसर हैं।

चूंकि भारत पिछले 15 वर्षों से मध्य पूर्व के साथ केले के व्यापार में बड़ी भूमिका निभा रहा है, इसलिए अनुमान है कि वित्तीय वर्ष 2024 में केले का निर्यात 303 मिलियन अमरीकी डालर से अधिक हो जाएगा।

केला आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, केरल, महाराष्ट्र, गुजरात, तेलंगाना और उत्तर प्रदेश राज्यों में उगाई जाने वाली एक प्रमुख बागवानी फसल है। आंध्र प्रदेश सबसे बड़ा केला उत्पादक राज्य है, इसके बाद महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु और उत्तर प्रदेश हैं। ये पांच राज्य वित्तीय वर्ष 2022-23 में भारत के केला उत्पादन में सामूहिक रूप से लगभग 67 प्रतिशत का योगदान देते हैं।

अन्य राज्य जो केले का उत्पादन करते हैं उनमें गुजरात, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, असम, छत्तीसगढ़, ओडिशा, मिजोरम और त्रिपुरा शामिल हैं।

कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पादों के निर्यात में वृद्धि कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीडा) द्वारा कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात को प्रोत्साहन प्रदान करने के लिए की गई विभिन्न पहलों, जैसे विभिन्न देशों में बी-2-बी प्रदर्शनियों का आयोजन करना और उत्पाद-विशिष्ट और सामान्य विपणन अभियानों के माध्यम से नए संभावित बाजारों की खोज करना, प्राकृतिक, जैविक और भौगोलिक संकेत (जीआई) टैग वाले कृषि उत्पादों पर विशेष ध्यान देने के साथ भारतीय दूतावासों की सक्रिय भागीदारी के साथ का परिणाम है।

कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीडा) ताजे फलों और सब्जियों के निर्यात को प्रोत्साहन देने के लिए निरंतर प्रयास कर रहा है और उसने महत्वपूर्ण निर्यात क्षमता वाले अन्य फलों के लिए समुद्री प्रोटोकॉल विकसित करने की पहल की है।

Export Going UP-भारत से अमरूद के निर्यात में हई 260% की वृद्धि

एएबी समाचार
/ भारत से अमरूद के निर्यात में वर्ष 2013 से लेकर अब तक 260% की वृद्धि दर्ज की गई है। अमरूद का निर्यात अप्रैल-जनवरी 2013-14 के 0.58 मिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर अप्रैल- जनवरी 2021-22 में 2.09 मिलियन अमेरिकी डॉलर के स्‍तर पर पहुंच गया।

भारत से ताजे फलों के निर्यात में भी उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की गई है। समस्‍त ताजे खाद्य पदार्थों की श्रेणी में सर्वाधिक निर्यात ताजे अंगूर का होता है। वर्ष 2020-21 के दौरान ताजे अंगूर का निर्यात कुल मिलाकर 314 मिलियन अमेरिकी डॉलर का हुआ। 

अन्य ताजे फलों का निर्यात 302 मिलियन अमेरिकी डॉलर, ताजे आम का निर्यात 36 मिलियन अमेरिकी डॉलर और अन्य (पान के पत्ते और मेवा) का निर्यात 19 मिलियन अमेरिकी डॉलर का हुआ। वर्ष 2020-21 के दौरान भारत से ताजे फलों के कुल निर्यात में ताजे अंगूर और अन्य ताजे फलों की हिस्सेदारी 92 प्रतिशत थी।

वर्ष 2020-21 के दौरान भारत से ताजे फलों का निर्यात प्रमुख रूप से 

बांग्लादेश (126.6 मिलियन अमेरिकी डॉलर), 

नीदरलैंड (117.56 मिलियन अमेरिकी डॉलर), 

संयुक्त अरब अमीरात (100.68 मिलियन अमेरिकी डॉलर), 

ब्रिटेन (44.37 मिलियन अमेरिकी डॉलर), 

नेपाल (33.15 मिलियन अमेरिकी डॉलर), 

ईरान (32.54 मिलियन अमेरिकी डॉलर), 

रूस (32.32 मिलियन अमेरिकी डॉलर), 

सऊदी अरब (24.79 मिलियन अमेरिकी डॉलर), 

ओमान (22.31 मिलियन अमेरिकी डॉलर) और 

कतर (16.58 मिलियन अमेरिकी डॉलर) को किया गया। वर्ष 2020-21 में भारत से ताजे फलों के निर्यात में शीर्ष दस देशों की हिस्सेदारी 82 प्रतिशत रही है। 

 

दही और पनीर के निर्यात में भी हुई वृद्धि

दही और पनीर के निर्यात में भी हुई वृद्धि
 

दही और पनीर (भारतीय कॉटेज चीज) के निर्यात में भी 200% की जोरदार वृद्धि दर्ज की गई है जो अप्रैल-जनवरी 2013-14 के 10 मिलियन अमेरिकी डॉलर से काफी बढ़कर अप्रैल-जनवरी 2021-22 में 30 मिलियन अमेरिकी डॉलर के स्‍तर पर पहुंच गया है।

उल्‍लेखनीय है कि पिछले पांच वर्षों से डेयरी निर्यात 10.5 प्रतिशत की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर से बढ़ रहा है। वर्ष 2021-22 (अप्रैल-नवंबर) में भारत से 181.75 मिलियन अमेरिकी डॉलर मूल्य के डेयरी उत्पादों का निर्यात किया गया और चालू वित्त वर्ष में यह पिछले वर्ष के कुल निर्यात मूल्य को पार कर जाने की प्रबल संभावना है।

वर्ष 2020-21 में भारत से डेयरी उत्पादों का निर्यात प्रमुख रूप से 

यूएई (39.34 मिलियन अमेरिकी डॉलर), 

बांग्लादेश (24.13 मिलियन अमेरिकी डॉलर), 

अमेरिका (22.8 मिलियन अमेरिकी डॉलर), 

भूटान (22.52 मिलियन अमेरिकी डॉलर), 

सिंगापुर (15.27 मिलियन अमेरिकी डॉलर), 

सऊदी अरब (11.47 मिलियन अमेरिकी डॉलर), 

मलेशिया (8.67 मिलियन अमेरिकी डॉलर), 

(8.49 मिलियन अमेरिकी डॉलर), ओमान (7.46 मिलियन अमेरिकी डॉलर) और 

इंडोनेशिया (1.06 मिलियन अमेरिकी डॉलर) का किया गया। 2020-21 में भारत से डेयरी निर्यात में शीर्ष दस देशों की हिस्सेदारी 61 प्रतिशत से भी अधिक रही है।

Agriculture Alerts- उच्च तापमान और सूखी मिटटी चने के फसल के लिए खतरा

एएबी समाचार/ 
भारतीय वैज्ञानिकों ने इस बात का पता लगाया है कि शुष्क जड़ सड़न (DRR) रोग के लिए उच्च तापमान वाले सूखे की स्थिति और मिट्टी में नमी की कमी अनुकूल परिस्थितियां  हैं। यह रोग चने की जड़ और धड़ को नुकसान पहुंचाता है। यह कार्य रोग का प्रतिरोध करने के क्षेत्र में विकास और बेहतर प्रबंधन रणनीतियों के लिए उपयोगी होगा।

शुष्क जड़ सड़न रोग के कारण पौधे की ताकत कम हो जाती है, पत्तों का हरा रंग फीका पड़ जाता है, वृद्धि धीमी कम हो जाती है और तना मर जाता है। अगर बड़े पैमाने पर जड़ को नुकसान होता है, तो पौधे की पत्तियां अचानक मुरझाने के बाद सूख जाती हैं। 

 वैश्विक औसत तापमान में बढ़ोतरी के कारण पौधे में रोग पैदा करने वाले नए रोगाणुओं के बारे में अब तक अधिक जानकारी नहीं है। इनमें एक मैक्रोफोमिना फेजोलिना भी शामिल है। यह एक एक मिट्टी जनित नेक्रोट्रोफिक (परपोषी) है, जो चने में जड़ सड़न रोग का कारण बनता है। 

वर्तमान में भारत के मध्य और दक्षिण के राज्यों की पहचान डीआरआर रोग से सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्र के रूप में की गई है। इन राज्यों में चने की फसल का कुल 5 से 35 फीसदी हिस्सा संक्रमित होता है।

इस रोगजनक की विनाशकारी क्षमता और निकट भविष्य में एक महामारी की संभावित स्थिति को ध्यान में रखते हुए आईसीआरआईएसएटी (इंटरनेशनल क्रॉप्स रिसर्च इंस्टीट्यूट फॉर सेमी-एरिड ट्रॉपिक्स) की डॉ. ममता शर्मा के नेतृत्व में एक टीम ने चने में डीआरआर के पीछे के विज्ञान को जानने की पहल शुरू की है।

Agriculture Alerts- उच्च तापमान और सूखी मिटटी चने के फसल के लिए खतरा

इस रोग की बारीकी से निगरानी करने वाली टीम ने इस बात का पता लगाया है कि कि 30 से 35 डिग्री सेल्सियस के बीच उच्च तापमान, सूखे की स्थिति और मिट्टी में 60 फीसदी से कम नमी शुष्क जड़ सड़न (डीआरआर) के लिए अनुकूल परिस्थितियां हैं।

आईसीआरआईएसएटी के जलवायु परिवर्तन से संबंधित उत्कृष्टता केंद्र में संचालित यह कार्य भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग की ओर से समर्थित और वित्त पोषित है। इसने जलवायु कारकों के साथ इस रोग के नजदीकी संबंध को प्रमाणित किया है। इसके परिणाम 'फ्रंटियर्स इन प्लांट साइंस' में प्रकाशित किए गए हैं।

इन वैज्ञानिकों ने इस बात की व्याख्या की है कि मैक्रोफोमिना पर्यावरण की परिस्थितियों की एक विस्तृत श्रृंखला में जीवित रहता है। यहां तक कि तापमान, मिट्टी के पीएच (पोटेंशियल ऑफ हाइड्रोजन मान) और नमी की चरम स्थिति में भी। 

उच्च तापमान और सूखे की स्थिति में चने की फसल में फूल और फली आने के चरणों के दौरान डीआरआर रोग बहुत अधिक होता है। वैज्ञानिक अब रोग का प्रतिरोध करने के क्षेत्र में विकास और बेहतर प्रबंधन रणनीतियों के लिए इस अध्ययन का उपयोग करने के तरीके की तलाश कर रहे हैं।

इसके अलावा यह टीम आणविक दृष्टिकोण से पहचाने गए रोग अनुकूल परिस्थितियों को दूर करने की भी कोशिश कर रही है। जीन एक्प्रेशन अध्ययनों के एक हालिया सफलता में वैज्ञानिकों ने कुछ चने की आशाजनक जीनों की पहचान की है, जो कि काइटिनेस और एंडोकाइटिनेस जैसे एंजाइमों के लिए एन्कोडिंग हैं। यह डीआरआर संक्रमण के खिलाफ कुछ सीमा तक सुरक्षा प्रदान कर सकता है।

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के सहयोग से आईसीआरआईएसएटी की टीम ने पौधों से संबंधित इस तरह के घातक रोगों से लड़ने के लिए निरंतर निगरानी, बेहतर पहचान तकनीक, पूर्वानुमान मॉडल का विकास और परीक्षण आदि सहित कई बहु-आयामी दृष्टिकोण भी अपनाए हैं।

Bundelkhand ken-betwa River Project-बुंदेलखंड के पिछड़े इलाके में लाएगी समृद्धि

एएबी  समाचार
।08 दिसम्बर 2021
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने आज केन-बेतवा नदी को आपस में जोड़ने की परियोजना के लिये वित्तपोषण तथा क्रियान्वयन को मंजूरी दे दी है।

केन-बेतवा लिंक परियोजना की कुल लागत 44,605 करोड़ रुपये का अनुमान किया गया है, जो 2020-21 की कीमतों के आधार पर है। केंद्रीय मंत्रिमंडल ने परियोजना के लिये केंद्रीय समर्थन के रूप में 39,317 करोड़ रुपये, सहायक अनुदान के रूप में 36,290 करोड़ रुपये और ऋण के रूप में 3,027 करोड़ रुपये की धनराशि को मंजूर किया है।

यह परियोजना भारत में नदियों को आपस में जोड़ने की अन्य परियोजनाओं का भी मार्ग प्रशस्त करेगी तथा विश्व के सामने हमारी बुद्धिमत्ता और दृष्टिकोण का भी परिचय देगी।

इस परियोजना के तहत केन का पानी बेतवा नदी में भेजा जायेगा। यह दाऊधाम बांध के निर्माण तथा दोनों नदियों से नहर को जोड़ने, लोअर उर परियोजना, कोठा बैराज और बीना कॉम्प्लेक्स परियोजना के जरिये पूरा किया जायेगा। 

परियोजना से 10.62 लाख हेक्टेयर रकबे की वार्षिक सिंचाई हो सकेगी, लगभग 62 लाख की आबादी को पीने का पानी मिलेगा तथा 103 मेगावॉट पन बिजली और 27 मेगावॉट सौर ऊर्जा पैदा होगी। परियोजना को उत्कृष्ट प्रौद्योगिकी के साथ आठ वर्षों में क्रियान्वित कर लेने का प्रस्ताव है।

यह परियोजना पानी की कमी से जूझते बुंदेलखंड इलाके के लिये बहुत फायदेमंद है। यह पूरा इलाका मध्यप्रदेश और उत्तरप्रदेश राज्यों में फैला है। इस परियोजना से मध्यप्रदेश के पन्ना, टीकमगढ़, सागर, दमोह, दतिया, विदिशा, शिवपुरी और रायसेन तथा उत्तरप्रदेश के बांदा, महोबा, झांसी और ललितपुर को बहुत लाभ होगा।

इस परियोजना से कृषि गतिविधियों के बढ़ने और रोजगार सृजन से बुंदेलखंड के पिछड़े इलाके में सामाजिक-आर्थिक समृद्धि में तेजी आने की संभावना है। इससे क्षेत्र में संकट की वजह से होने वाले विस्थापन को भी रोकने में मदद मिलेगी।

इस परियोजना से पर्यावरण प्रबंधन और सुरक्षा समग्र रूप से संभव होगी। इस उद्देश्य के लिये एक समग्र परिदृश्य प्रबंधन योजना को भारतीय वन्यजीव संस्थान अंतिम रूप दे रहा है।

पृष्ठभूमिः

22 मार्च, 2021 को देश में नदियों को आपस में जोड़ने की पहली प्रमुख केंद्रीय परियोजना को क्रियान्वित करने के लिये केंद्रीय जल शक्ति मंत्री तथा मध्यप्रदेश और उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्रियों के बीच एक ऐतिहासिक समझौते पर हस्ताक्षर हुए थे। 

यह समझौता  अटल बिहारी वाजपेयी के उस विजन को क्रियान्वित करने के अंतर-राज्यीय सहयोग का सूत्रपात है, जिस विजन के तहत नदियों को आपस में जोड़कर पानी को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाने का विचार है, जहां प्रायः सूखा पड़ता है और जिन इलाकों में पानी की भारी कमी है।

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एएबी समाचार वर्तमान खरीफ 2020-21 सत्र में 05 सितम्बर 2021 तक 889.62 लाख मीट्रिक टन से अधिक धान का क्रय किया जा चुका है (इसमें खरीफ फसल का 718.09 लाख मीट्रिक टन और रबी फसल का 171.53 लाख मीट्रिक टन शामिल है), जबकि पिछले वर्ष की इसी समान अवधि में 764.39 लाख मीट्रिक टन धान खरीदा गया था।

मौजूदा खरीफ विपणन सत्र में लगभग 130.47 लाख किसान एमएसपी मूल्यों पर हुए खरीद कार्यों से लाभान्वित हो चुके हैं और उन्हें 1,67,960.77 करोड़ रुपये का भुगतान किया जा चुका है। धान की खरीद खरीफ विपणन सत्र 2019-20 में पिछले उच्च स्तर 773.45 लाख मीट्रिक टन को पार करते हुए अब तक के उच्चतम स्तर पर पहुंच चुकी है।

गेहूं की खरीद का कार्य वर्तमान रबी विपणन सत्र 2021-22 के लिए इसकी खरीद वाले राज्यों में पूरा हो चुका है। 18.अगस्त.2021 तक 433.44 लाख मीट्रिक टन गेहूं की खरीद की गई थी (जो कि अब तक की खरीद का सबसे उच्चतम स्तर है, क्योंकि इसने आरएमएस 2020-21 के पिछले उच्च स्तर 389.93 लाख मीट्रिक टन गेहूं की खरीद के आंकड़े को पार कर लिया है), जबकि बीते साल की इसी समान अवधि में 389.93 लाख मीट्रिक टन गेहूं खरीदा गया था। 
 
लगभग 49.20 लाख किसानों को मौजूदा रबी विपणन सत्र में एमएसपी मूल्यों पर हुए खरीद कार्यों का लाभ मिला है और उन्हें 85603.57 करोड़ रुपये का भुगतान किया जा चुका है।




फसल वर्ष 2020-21 के लिए जिसमें खरीफ 2020-21 और रबी 2021 तथा ग्रीष्म सत्र 2021 शामिल हैं, दिनांक 05 सितम्बर 2021 तक सरकार द्वारा अपनी नोडल एजेंसियों के माध्यम से 11,99,713.15 मीट्रिक टन दलहन और तिलहन की खरीद एमएसपी मूल्यों पर की गई है। इस खरीद से तमिलनाडु, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात, उत्तर प्रदेश, तेलंगाना, हरियाणा, ओडिशा और राजस्थान के 7,02,368 किसानों को 6,742.51 करोड़ रुपये की आय हुई है।

खरीफ विपणन सत्र (केएमएस) 2021-22 की फसल की आवक जल्द ही होने की उम्मीद है। कर्नाटक राज्य से प्राप्त प्रस्ताव के आधार पर केएमएस 2021-22 के दौरान मूल्य समर्थन योजना (पीएसएस) के तहत 40,000 मीट्रिक टन दालों की खरीद के लिए मंजूरी प्रदान की गई थी। 
 
 
यदि अधिसूचित फ़सल अवधि के दौरान संबंधित राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में बाजार की दरें एमएसपी से नीचे चली जाती हैं, तो राज्य की नामित ख़रीद एजेंसियों के माध्यम से केंद्रीय नोडल एजेंसियों द्वारा इन राज्यों तथा केंद्र शासित प्रदेशों को मूल्य समर्थन योजना (पीएसएस) के अंतर्गत दलहन,तिलहन और खोपरा फसल की खरीद के प्रस्तावों की प्राप्ति पर भी मंजूरी दी जाएगी, ताकि पंजीकृत किसानों से वर्ष 2021-22 के लिए अधिसूचित किये गए न्यूनतम समर्थन मूल्य पर सीधे इन फसलों के एफएक्यू ग्रेड की खरीद की जा सके।
 
 
विपणन सत्र 2021-22 के लिए तमिलनाडु से 51000 मीट्रिक टन खोपरा खरीदने की मंजूरी दी जा चुकी है और 05.09.2021 तक तमिलनाडु में 36 किसानों को लाभान्वित करते हुए 0.09 करोड़ रुपये के एमएसपी मूल्य वाले 8.30 मीट्रिक टन खोपरा की खरीद की गई है।

दलहन और तिलहन फसलों की केएमएस 2021-22 की आवक के आधार पर संबंधित राज्यों द्वारा तय की गई तारीख से खरीद शुरू करने के लिए संबंधित राज्य/केंद्र शासित प्रदेशों की सरकारें आवश्यक व्यवस्था कर रही हैं।