Is Media defying limits for gaining TRP-ऊंची टीआरपी की चाहत से कमजोर हो सकती है चौथे स्तम्भ की नींव
Guest Column : Chaitanya Koushakiya
पिछले कुछ दिनों या कहें महीनों में मीडिया ने जो रूप दिखाया है उसे देखकर यही कहा जा सकता है कि TRP के लिए ये किसी भी हद तक जा सकते हैं या संभवतः कोई हद ही नहीं बची। लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ की नैतिक नींव इतनी कमज़ोर भी हो सकती है ये देखकर आश्चर्य से अधिक दुख होता है ।
जब पत्रकारिता अपने वास्तविक लक्ष्य से भटकती हुई लगती है तो एक सामान्य नागरिक अपनी सविश्वास चुनी हुई सरकार व नेताओँ की तरफ देखता है कि ये कुछ लगाम लगाएंगे पर जब प्रमुख राजनैतिक पार्टी व अन्य राजनैतिक पार्टियों के नुमाइंदे एक फ़िल्म कलाकार की मृत्यु पर बहस में लगभग एक दूसरे के चारित्रिक चीरहरण करते नज़र आते हैं तब प्रजातन्त्र के नाम पर ठगे जाने के एहसास के अलावा कोई भावना शेष नहीं बचती।
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असमय, अकाल मृत्यु किसी की भी हो दुखदायी होती है पर जब मृत्यु पर संवेदनाओं से ज्यादा सनसनी पैदा करने की कोशिश हो, मूल मुद्दों को ढांकने का प्रयास हो, तो मौत भी तमाशे की शक्ल ले लेती है । अगर कोई दोषी है तो सज़ा भी मिलनी चाहिए पर इस दौरान सिर्फ एक मौत नहीं हुई बल्कि महामारी की चपेट में आकर हज़ारों जीवन असमय काल का ग्रास बन गए हैं ..कोई सुधि उनकी ...? लाखों लोग बेरोजगार होकर भविष्यहीन जीवन जीने को मजबूर हैं ..कभी विचार आया उनका..? मंहगाई, डॉलर, भुखमरी, पेट्रोल, लगातार बिगड़ती अर्थव्यवस्था... क्या सारे मुद्दे खत्म हो गए.. सुलझ गए ??
रिया चक्रवर्ती का इंटरव्यू प्राइम टाइम पर आता है वो भी तब जब ED और CBI उसे एक संभावित हत्या का प्राइम सस्पेक्ट मान कर पूछताछ कर रही है..!! क्या वो कोई महान प्रतिभा है ?? किसी महान कार्य के लिए पुरुस्कृत हुई है ?? क्या सामाजिक योगदान है उसका ?? सामाजिक छोड़िए, कोई भी किसी भी क्षेत्र में योगदान है उसका ?? कोई स्तर बचा है या..?
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ऐसी खबरें हैं कि चीन. रूस जैसे देशों ने स्वनिर्मित वैक्सीन बनाकर अपने नागरिकों को देना शुरू कर दिया है । WHO प्रोटोकॉल्स का रोना रो रहा है। ब्रिटेन भी सम्भवतः सर्वाधिक असरकारक वैक्सीन के इस्तेमाल को हरी झंडी देने वाला है बजाय WHO जैसे भृष्ट संस्थान की दासता करने के । वैसे भी WHO 2009-10 (h1n1) के बाद अपनी विश्वसनीयता लगभग खो चुका है । ये सभी देश अब किसी भी कीमत पर अपने जनजीवन को पटरी पर लाना चाहते हैं बजाय किसी भृष्ट संस्थान की जी-हुजूरी करने के।
बिलगेट्स महादानी हो सकते हैं और उनकी इस मानवीयता के लिए उन्हें साधुवाद, पर एक IT या सॉफ्टवेयर एक्सपर्ट महामारी की वैक्सीन से सम्बंधित सलाह दे और हम भी उसे ब्रह्मवाक्य मान लें...!!! हमारे यहां तो वैक्सीन की संभावित कीमत और उपलब्धता से संबंधित अधिकतर बयान भी प्राइवेट वैक्सीन बनाने वाली फार्मा कंपनी के एक मामूली CEO की तरफ से आते हैं जबकि इतने महत्वपूर्ण विषय से सम्बंधित कोई भी सूचना अधिक विश्वसनीय लगेगी अगर सरकार की ओर से स्वास्थ्यमंत्री की ओर से या इसी स्तर के पदाधिकारी की ओर से आये ।
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एक गांव में एक व्यक्ति की समोसे भजिये वगैरह की एक दुकान थी । व्यक्ति पढ़ा लिखा नहीं था पर दुकान अच्छी चलती थी इसलिए काम के लिए 2-3 नौकर भी लगा रखे थे। एक बार उसका लड़का ऊंची पढ़ाई करके शहर से गांव आया और उसने अपने पिता को विश्व मे आने वाली आर्थिक मंदी के बारे में बताया और कहा कि हमे सतर्कता से धंधे में पैसा लगाना चाहिए नहीं तो नुकसान भी हो सकता है ।
पिता को लगा कि बेटा सही कह रहा है ऊंची पढ़ाई भी की है। अतः उसने समोसे वगैरह कम बनाने शुरू कर दिए जिससे दुकान की बिक्री भी घटने लगी, ग्राहक कम हो गए, दुकान के कामगार भी निकाल दिए गए। अब दुकान में केवल नाम मात्र की बिक्री होती थी । पिता खुश था कि उसके समझदार बेटे ने आनेवाली मंदी के बारे में पहले ही आगाह कर दिया था नहीं तो पता नहीं क्या होता। हमे भी WHO ने बता रखा है कि विश्व एक महामारी की चपेट में है। अच्छा है हम पहले ही सावधान हो चुके हैं..!
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