World Heritage :ओरछा - बुन्देलखण्ड का दूसरा विश्व धरोहर स्मारक समूह बनने की राह पर
एएबी समाचार । बुंदेलखंड ऐतिहासिक व सांस्कृतिक महत्त्व के सम्पदा से भरपूर है । खजुराहो की विश्व धरोहर स्थल घोषित होने के बाद अब ओरछा भी इसी राह पर चल रहा है । ओरछा की सांस्कृतिक धरोहर, महल एवं भवनों की स्थापत्य शैली एवं बुन्देली कलम की दृष्टि से इसे यूनेस्को की संभावित सूची में नामित हो चुका है । उम्मीद है कि यह शीघ्र ही विश्व धरोहर स्मारक समूह में अंकित हो जायेगा।
ओरछा राम राजा मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है। यह शहर बेतवा नदी के किनारे पर बसा है। बेतवा नदी के दोनों किनारों के पुरातत्त्वीय सर्वेक्षण से पता चलता है कि यह क्षेत्र प्रागैतिहासिक काल से लगातार पुष्पित एवं पल्ल्वित होता रहा है। ओरछा का क्षेत्र बुन्देलखण्ड में आता है। पूर्व में किए गए सर्वेक्षण से क्षेत्र में कई ताम्राश्म काल के प्राचीन स्थल, तत्कालीन विद्वानों द्वारा खोजे गए।
इस काल के बाद इस क्षेत्र में पूर्व ऐतिहासिक काल के ब्राह्मी लिपि के अभिलेख, मौर्य काल, शुंग कालीन, गुप्त, प्रतिहार, परमार, चन्देल राजाओं का क्रमबद्ध रूप से इतिहास हमें देखने को मिलता है। इन शासकों द्वारा बनाये गए मंदिर, मूर्तियाँ एवं आवासीय अवशेष ओरछा, गढ़कुण्डार और टीकमगढ़ आदि के आसपास के गाँवों में देखने को मिलते हैं। बुन्देलखण्ड में 9 वीं शताब्दी के बाद चन्देल शासकों का शासन था, जिनके अवशेष यहाँ के मंदिर, प्राचीन महत्व एवं बावड़ी आदि के रूप में हमें ओरछा के पास के मोहनगढ़ और गढ़कुण्डार किले के आस-पास देखने को मिलते हैं।
चन्द्रबरदाई, जो पृथ्वीराज रासो के दरबार में कवि थे, ने लिखा है कि 12वीं शताब्दी में ओरछा, चन्देल शासकों के पास था। परमर्दिदेव के बाद गढ़कुण्डार किले पर खंगार वंश के राजाओं का शासन हुआ और खूब सिंह खंगार ने अपने को स्वतंत्र शासक के रूप में घोषित किया। सोहनपाल बुन्देला ने अंतिम गढ़कुण्डार शासक हरमत सिंह को 1257 ई. में परास्त कर अपनी बुन्देला सत्ता स्थापित की। जिन शासक ने इस क्षेत्र में शासन किया उनमें सोहनपाल, सहजेन्द्र, पृथ्वीराज, राम सिंह, रामचन्द्र, मेदिनी पाल, अर्जन देव, मलखन सिंह, रूद्रप्रताप आदि महत्वपूर्ण थे।
रूद्रप्रताप ने बुन्देलों की राजधानी गढ़कुण्डार से ओरछा 1531 ई. में स्थानांतरित की। ओरछा के बुन्देला शासकों के पूर्व भी यहाँ बसाहट के अवशेष थे। बुन्देला शासकों ने मात्र उनका पुनर्निर्माण भी किया। इनमें चार दीवारी और प्रवेश द्वार मुख्य थे। बेतवा नदी के किनारे रूद्रप्रताप एवं भारती चन्द्र ने चार दीवारी के भीतर ओरछा किले का निर्माण कराया। ओरछा के बुन्देला शासकों में प्रमुख रूप से भारतीय चन्द्र, मधुकर शाह, राम शाह, वीर सिंह बुन्देला आदि उल्लेखनीय हैं।
इनमें वीर सिंह बुन्देला द्वारा ओरछा में काफी निर्माण कार्य किया गया। इन्हीं के समय बुन्देली स्थापत्य तथा इण्डो-पर्सियन स्थापत्य कला का प्रचलन प्रारम्भ हुआ। यहाँ के किले, गढ़िया, महल, मंदिर, बावड़ी इत्यादि एवं बुन्देली कलम की भित्ति चित्र, चित्रकला का प्रतिनिधित्व करते हैं। बाद में बुन्देला शासकों ने अपनी राजधानी टीहरी यानी टीकमगढ़ बना ली। आस-पास के क्षेत्र, जिनमें टीकमगढ़, मोहनगढ़, लिघोरा, दिघौरा, आस्टोन, खरगापुर, बलदेवगढ़ आदि शामिल है, में विरासत भवनों का निर्माण किया।