chandrayaan-3 mission

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AAB NEWS/
दुनिया चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर उतरने वाला पहला देश बनने के रूस और भारत के प्रयासों को एक चूहा  दौड़ के रूप में देख रही है। लेकिन रूस के लूना-25 अंतरिक्ष यान के दुर्घटनाग्रस्त होने के बाद से सभी की निगाहें भारत पर टिक गयीं हैं उनके बीच यह जाने की बेचैनी बढ़ती जा रही है कि चंद्रमा पर उतरने का भारत का दूसरा प्रयास सफल होगा या नहीं।

क्या है-चंद्रयान-3 ?

 
चंद्रमा की माटी को छूते ही चंद्रयान-3 मिशन भारत को चंद्रमा की सतह पर उतरने वाला चौथा और चन्द्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर उतरने वाला पहला देश बना देगा। अभी तक केवल  तीन देश- संयुक्त राज्य अमेरिका, रूस  और चीन - चंद्रमा की सतह पर सफलतापूर्वक अंतरिक्ष यान उतार चुके हैं।

चंद्रयान-3, यानी  "चंद्रमा वाहन", पिछले महीने आंध्र प्रदेश के सतीश धवन प्रक्षेपण केंद्र से लॉन्च किया गया था। यदि सब कुछ योजना के मुताबिक रहा, तो अंतरिक्ष यान-जिसमें कोई भी अंतरिक्ष यात्री नहीं है-दो सप्ताह के लिए चंद्रमा की सतह पर सक्रिय  रहेगा।  

वहां यह चन्द्रम की सतह की खबर लेने के लिए 60 पाउंड, सौर ऊर्जा से संचालित रोवर को तैनात करेगा। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के अनुसार, मिशन का घोषित मकसद  चंद्रमा पर सुरक्षित रूप से उतरना, रोवर तैनात करना और वैज्ञानिक प्रयोग करना है। 


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क्या भारत पहले भी चांद पर कदम रखा  है?

 
नहीं ! पर  भारत का चंद्रयान-1 मिशन 2008  में शुरू हुआ था। जो चंद्र जल अणुओं की खोज के लिहाज से  अहम् था, लेकिन  यह अभियान एक अंतरिक्ष यान की लैंडिंग के बजाय एक प्रभाव जांच था।

देश ने दूसरी बार वर्ष 2019 में चंद्रमा की सतह पर एक अंतरिक्ष यान उतारने की कोशिश की, लेकिन लैंडिंग से कुछ मिनट पहले लैंडर से संपर्क टूट जाने की वजह से चंद्रयान-2 विफल हो  गया। प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने उस समय कहा,  " "चाँद को छूने का हमारा संकल्प और भी मजबूत हो गया है।"

हर कोई  बार -बार  चाँद पर जाने की कोशिश क्यों कर रहा है?
हालाँकि यह संयुक्त राज्य अमेरिका और सोवियत संघ के बीच शीत युद्ध-युग की होड़  ख़त्म हो चुकी हैं लेकिन कुछ हद तक अब वह  अंतरिक्ष दौड़ के रूप में नजर आ रही है ।

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चंद्रयान-3 के साथ संयुक्त राज्य अमेरिका और भारत सहित कई देशों का लक्ष्य चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर मौजूदगी  स्थापित करना तो हैं ही साथ ही वे यह भी पता लगाना चाह रहे हैं कि क्या चन्द्रमा की सतह पर मौजूद बर्फ के पूल  दीर्घकालिक बस्तियों के लिए पानी प्रदान कर सकते हैं या ईंधन स्टेशन के रूप में कार्य कर सकते हैं? क्या विभिन्न तरह की अंतरिक्ष अन्वेषण के लिए  पानी के घटक भागों, हाइड्रोजन और ऑक्सीजन, का उपयोग रॉकेट ईंधन के रूप में किया जा सकता है?

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