2022

Achivement-भारत का सिरेमिक एवं ग्लासवेयर उत्पादों का निर्यात दस वर्ष  में 168 प्रतिशत बढ़ा

एएबी समाचार /
भारत का सिरेमिक एवं ग्लासवेयर उत्पादों का निर्यात वर्ष 2021-22 में रिकॉर्ड 346.4 करोड़ डॉलर तक पहुंच गया। वित्‍त वर्ष 2013-14 के दौरान भारत ने 129.2 करोड़ डॉलर मूल्‍य के सिरेमिक एवं ग्लासवेयर उत्पादों का निर्यात किया था।

केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग, उपभोक्ता कार्य, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण और कपड़ा मंत्री श्री पीयूष गोयल ने एक ट्वीट के जरिये इस उपलब्धि के संबंध में बताया।

सिरेमिक टाइल्‍स और सेनेटरीवेयर उत्पादों के शिपमेंट में बढ़ोतरी होने से सिरेमिक टाइल्‍स के निर्यात में तेजी आई है। भारतीय टाइल उद्योग आज एक वैश्विक खिलाड़ी बन गया है और 'मेक इन इंडिया' दृष्टिकोण के साथ देश के लिए विदेशी मुद्रा अर्जित कर रहा है। भारत आज विश्‍व का दूसरा सबसे बड़ा टाइल विनिर्माता देश है।

वस्‍तुओं की ग्‍लास पैकिंग सामग्रियों, ग्‍लास फाइबर बनाने की सामग्रियों, पोर्सलीन के सैनेटटरी फिक्‍स्‍चर, ग्‍लास मिरर, टिंटेड नॉन-वायर्ड ग्‍लास, ग्‍लास बीड एवं ग्‍लास वूल के शिपमेंट में बढ़ोतरी होने के कारण ग्लासवेयर उत्पादों के निर्यात में यह वृद्धि हासिल की गई है।

भारत 125 से अधिक देशों को निर्यात करता है और शीर्ष गंतव्यों में सऊदी अरब, अमेरिका, मैक्सिको, कुवैत, संयुक्त अरब अमीरात, इराक, ओमान, इंडोनेशिया, ब्रिटेन और पोलैंड शामिल हैं। अब रूस और लैटिन अमेरिकी देश जैसे नए बाजारों को भी इसमें शामिल किया गया है।

वाणिज्य विभाग के निरंतर प्रयासों के कारण सिरेमिक एवं ग्लासवेयर उत्पादों के निर्यात में उछाल आई है। इसके अलावा, कैपेक्सिल ने मार्केट ऐक्सेस इनिशिएटिव स्कीम के तहत अनुदान का उपयोग करके कई पहल की है, जैसे विभिन्न देशों में बी2बी प्रदर्शनियों का आयोजन, भारतीय दूतावासों की सक्रिय भागीदारी के साथ खास उत्पाद के लिए और विपणन अभियानों के जरिये संभावित नए बाजारों की तलाश आदि।

माल भारे भाड़े, कंटेनरों की कमी आदि लॉजिस्टिक संबंधी अभूतपूर्व चुनौतियों के बावजूद निर्यात में यह वृद्धि हासिल की गई है। सिरेमिक एवं ग्लासवेयर उत्पादों के निर्यात में वृद्धि से गुजरात, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश के छोटे एवं मझोले निर्यातक लाभान्वित हुए हैं।

पिछले कई वर्षों से यह उद्योग नवाचार, उत्पाद प्रोफाइल, गुणवत्ता एवं नए डिजाइन के साथ आधुनिकीकरण कर रहा है ताकि वैश्विक प्रतिस्पर्धा का सामना करने के लिए एक आधुनिक विश्वस्तरीय उद्योग के रूप में खुद को स्‍थापित कर सके। नए डिजाइन, डिजिटल तरीके से मुद्रित टाइल्‍स और विभिन्न रंगों वाली बड़े आकार की टाइल के मामले में हमारे नवाचारों को भी विदेशी बाजारों में स्वीकृति मिली है।

MEDIAWATCH-समाचारों को विचारों के साथ नहीं मिलाया जाना चाहिए-उपराष्ट्रपति

एएबी  समाचार /
उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू ने मीडिया में मूल्यों के पतन को लेकर सावधान करते हुए कहा कि एक स्वतंत्र, बंधनमुक्त व निडर प्रेस के बिना कोई मजबूत और जीवंत लोकतंत्र बचा हुआ नहीं रह सकता है। 

उन्होंने सुझाव दिया कि भारत के लिए अपने लोकतंत्र की जड़ों को मजबूत करने को लेकर एक मजबूत, स्वतंत्र और जीवंत मीडिया की जरूरत है। इसके अलावा श्री नायडू ने  भी किया। उन्होंने निष्पक्ष और वस्तुनिष्ठ रिपोर्टिंग का आह्वान किया। श्री नायडू ने आगे इस बात पर जोर दिया कि समाचारों को विचारों के साथ नहीं मिलाया जाना चाहिए।

उपराष्ट्रपति ने बेंगलुरू प्रेस क्लब की 50वीं वर्षगांठ के अवसर पर एक सभा को संबोधित किया। अपने संबोधन में उन्होंने कहा कि जब कानून के संवैधानिक शासन को मजबूत करने की बात आती है तो एक स्वतंत्र व निष्पक्ष प्रेस, एक स्वतंत्र न्यायपालिका का पूरक होता है।

उन्होंने आगे इसका उल्लेख किया कि अतीत में पत्रकारिता को एक मिशन माना जाता था, जिसमें समाचार पवित्र होते थे। श्री नायडू ने आगे इस तथ्य को रेखांकित किया कि घटनाओं की निष्पक्ष और सच्ची कवरेज व लोगों तक उनके विश्वसनीय प्रसारण पर अच्छी पत्रकारिता आधारित होती है।

उपराष्ट्रपति ने खासा सुब्बा राऊ, फ्रैंक मोरिस और निखिल चक्रवर्ती जैसे पहले के कई प्रसिद्ध समाचार संपादकों का उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि इन संपादकों ने कभी भी समाचारों पर अपने विचार को हावी होने नहीं दिया और हमेशा समाचार व विचार के बीच एक लक्ष्मण रेखा का सम्मान किया। 

उपराष्ट्रपति ने सुझाव दिया कि आज के पत्रकारों को पत्रकारिता के उन दिग्गजों से प्रेरणा लेनी चाहिए, जिन्होंने स्वतंत्रता संग्राम और आपातकाल के दौरान बहुत योगदान दिया। श्री नायडू ने इस बात पर जोर दिया कि समाचारों को विचारों से प्रभावित नहीं किया जाना चाहिए। उन्होंने आगे मीडियाकर्मियों को सलाह दी कि वे तथ्यों से कभी समझौता न करें और उन्हें हमेशा बिना किसी डर या पक्षपात के प्रस्तुत करें।

उपराष्ट्रपति ने पिछले कुछ वर्षों में पत्रकारिता मानकों में भारी गिरावट पर चिंता व्यक्त की। श्री नायडू ने कहा कि सोशल मीडिया के हालिया उदय ने इसमें और अधिक गिरावट लाने का काम किया है। उन्होंने आगे कहा, "आज हम लगातार विचार के साथ जुड़े हुए समाचार को पाते हैं। 

यह इतना अधिक हो गया है कि कभी-कभी किसी व्यक्ति को यह लगने लगता है कि न तो समाचार पत्र और न ही टेलीविजन चैनल कुछ घटनाओं की सही तस्वीर दिखाते हैं।” उन्होंने सुझाव दिया कि संसद और सरकार सोशल मीडिया पर फर्जी खबरों के मामले को देखें और इनसे निपटने के लिए एक प्रभावी व विश्वसनीय तरीका अपनाएं।

श्री नायडू ने पक्षपातपूर्ण समाचार प्रस्तुतीकरण और कार्यक्रमों के एजेंडा संचालित कवरेज पर लोगों का ध्यान आकर्षित किया। उपराष्ट्रपति ने कहा कि ऐसी पत्रकारिता करने वाले इस पेशे का गंभीर नुकसान कर रहे हैं, क्योंकि प्रामाणिकता और विश्वसनीयता पत्रकारिता की नींव हैं।

उपराष्ट्रपति ने आगे सार्वजनिक बहसों के गिरते मानकों पर चिंता व्यक्त की। श्री नायडू ने कहा कि उनकी इच्छा है कि राजनीतिक दल विधायिकाओं और सार्वजनिक जीवन में अपने सदस्यों के लिए आचार संहिता अपनाकर खुद को विनियमित करें। 

उन्होंने जनप्रतिनिधियों को सलाह दी कि वे अपने राजनीतिक विरोधियों पर व्यक्तिगत हमले करने से बचें। उपराष्ट्रपति ने दल-बदल विरोधी कानून की किसी तरह की कमियों को दूर करने के लिए इस पर फिर से विचार करने का भी आह्वान किया।

श्री नायडू ने इस बात पर जोर दिया कि सदस्यों को विधायिकाओं में सार्थक तरीके से बहस व चर्चा करनी चाहिए और निर्णय लेना चाहिए। उपराष्ट्रपति ने आगे कहा कि मीडिया को संसद और विधायिकाओं में व्यवधान की जगह रचनात्मक भाषणों को लोगों के सामने लाना चाहिए। उन्होंने सनसनीखेज खबरों और संसद व विधानसभाओं में व्यवधान डालने वालों पर अधिक ध्यान देने को लेकर सावधान किया।

इस कार्यक्रम में सांसद  पी.सी. मोहन, बेंगलुरू प्रेस क्लब-के अध्यक्ष के. सदाशिव शिनॉय, बेंगलुरू प्रेस क्लब के महासचिव एच. वी. किरण, बेंगलुरू प्रेस क्लब के उपाध्यक्ष  श्यामा प्रसाद एस, मीडियाकर्मी और अन्य गणमान्य लोग उपस्थित थे।

Export Going UP-भारत से अमरूद के निर्यात में हई 260% की वृद्धि

एएबी समाचार
/ भारत से अमरूद के निर्यात में वर्ष 2013 से लेकर अब तक 260% की वृद्धि दर्ज की गई है। अमरूद का निर्यात अप्रैल-जनवरी 2013-14 के 0.58 मिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर अप्रैल- जनवरी 2021-22 में 2.09 मिलियन अमेरिकी डॉलर के स्‍तर पर पहुंच गया।

भारत से ताजे फलों के निर्यात में भी उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की गई है। समस्‍त ताजे खाद्य पदार्थों की श्रेणी में सर्वाधिक निर्यात ताजे अंगूर का होता है। वर्ष 2020-21 के दौरान ताजे अंगूर का निर्यात कुल मिलाकर 314 मिलियन अमेरिकी डॉलर का हुआ। 

अन्य ताजे फलों का निर्यात 302 मिलियन अमेरिकी डॉलर, ताजे आम का निर्यात 36 मिलियन अमेरिकी डॉलर और अन्य (पान के पत्ते और मेवा) का निर्यात 19 मिलियन अमेरिकी डॉलर का हुआ। वर्ष 2020-21 के दौरान भारत से ताजे फलों के कुल निर्यात में ताजे अंगूर और अन्य ताजे फलों की हिस्सेदारी 92 प्रतिशत थी।

वर्ष 2020-21 के दौरान भारत से ताजे फलों का निर्यात प्रमुख रूप से 

बांग्लादेश (126.6 मिलियन अमेरिकी डॉलर), 

नीदरलैंड (117.56 मिलियन अमेरिकी डॉलर), 

संयुक्त अरब अमीरात (100.68 मिलियन अमेरिकी डॉलर), 

ब्रिटेन (44.37 मिलियन अमेरिकी डॉलर), 

नेपाल (33.15 मिलियन अमेरिकी डॉलर), 

ईरान (32.54 मिलियन अमेरिकी डॉलर), 

रूस (32.32 मिलियन अमेरिकी डॉलर), 

सऊदी अरब (24.79 मिलियन अमेरिकी डॉलर), 

ओमान (22.31 मिलियन अमेरिकी डॉलर) और 

कतर (16.58 मिलियन अमेरिकी डॉलर) को किया गया। वर्ष 2020-21 में भारत से ताजे फलों के निर्यात में शीर्ष दस देशों की हिस्सेदारी 82 प्रतिशत रही है। 

 

दही और पनीर के निर्यात में भी हुई वृद्धि

दही और पनीर के निर्यात में भी हुई वृद्धि
 

दही और पनीर (भारतीय कॉटेज चीज) के निर्यात में भी 200% की जोरदार वृद्धि दर्ज की गई है जो अप्रैल-जनवरी 2013-14 के 10 मिलियन अमेरिकी डॉलर से काफी बढ़कर अप्रैल-जनवरी 2021-22 में 30 मिलियन अमेरिकी डॉलर के स्‍तर पर पहुंच गया है।

उल्‍लेखनीय है कि पिछले पांच वर्षों से डेयरी निर्यात 10.5 प्रतिशत की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर से बढ़ रहा है। वर्ष 2021-22 (अप्रैल-नवंबर) में भारत से 181.75 मिलियन अमेरिकी डॉलर मूल्य के डेयरी उत्पादों का निर्यात किया गया और चालू वित्त वर्ष में यह पिछले वर्ष के कुल निर्यात मूल्य को पार कर जाने की प्रबल संभावना है।

वर्ष 2020-21 में भारत से डेयरी उत्पादों का निर्यात प्रमुख रूप से 

यूएई (39.34 मिलियन अमेरिकी डॉलर), 

बांग्लादेश (24.13 मिलियन अमेरिकी डॉलर), 

अमेरिका (22.8 मिलियन अमेरिकी डॉलर), 

भूटान (22.52 मिलियन अमेरिकी डॉलर), 

सिंगापुर (15.27 मिलियन अमेरिकी डॉलर), 

सऊदी अरब (11.47 मिलियन अमेरिकी डॉलर), 

मलेशिया (8.67 मिलियन अमेरिकी डॉलर), 

(8.49 मिलियन अमेरिकी डॉलर), ओमान (7.46 मिलियन अमेरिकी डॉलर) और 

इंडोनेशिया (1.06 मिलियन अमेरिकी डॉलर) का किया गया। 2020-21 में भारत से डेयरी निर्यात में शीर्ष दस देशों की हिस्सेदारी 61 प्रतिशत से भी अधिक रही है।

Agriculture Alerts- उच्च तापमान और सूखी मिटटी चने के फसल के लिए खतरा

एएबी समाचार/ 
भारतीय वैज्ञानिकों ने इस बात का पता लगाया है कि शुष्क जड़ सड़न (DRR) रोग के लिए उच्च तापमान वाले सूखे की स्थिति और मिट्टी में नमी की कमी अनुकूल परिस्थितियां  हैं। यह रोग चने की जड़ और धड़ को नुकसान पहुंचाता है। यह कार्य रोग का प्रतिरोध करने के क्षेत्र में विकास और बेहतर प्रबंधन रणनीतियों के लिए उपयोगी होगा।

शुष्क जड़ सड़न रोग के कारण पौधे की ताकत कम हो जाती है, पत्तों का हरा रंग फीका पड़ जाता है, वृद्धि धीमी कम हो जाती है और तना मर जाता है। अगर बड़े पैमाने पर जड़ को नुकसान होता है, तो पौधे की पत्तियां अचानक मुरझाने के बाद सूख जाती हैं। 

 वैश्विक औसत तापमान में बढ़ोतरी के कारण पौधे में रोग पैदा करने वाले नए रोगाणुओं के बारे में अब तक अधिक जानकारी नहीं है। इनमें एक मैक्रोफोमिना फेजोलिना भी शामिल है। यह एक एक मिट्टी जनित नेक्रोट्रोफिक (परपोषी) है, जो चने में जड़ सड़न रोग का कारण बनता है। 

वर्तमान में भारत के मध्य और दक्षिण के राज्यों की पहचान डीआरआर रोग से सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्र के रूप में की गई है। इन राज्यों में चने की फसल का कुल 5 से 35 फीसदी हिस्सा संक्रमित होता है।

इस रोगजनक की विनाशकारी क्षमता और निकट भविष्य में एक महामारी की संभावित स्थिति को ध्यान में रखते हुए आईसीआरआईएसएटी (इंटरनेशनल क्रॉप्स रिसर्च इंस्टीट्यूट फॉर सेमी-एरिड ट्रॉपिक्स) की डॉ. ममता शर्मा के नेतृत्व में एक टीम ने चने में डीआरआर के पीछे के विज्ञान को जानने की पहल शुरू की है।

Agriculture Alerts- उच्च तापमान और सूखी मिटटी चने के फसल के लिए खतरा

इस रोग की बारीकी से निगरानी करने वाली टीम ने इस बात का पता लगाया है कि कि 30 से 35 डिग्री सेल्सियस के बीच उच्च तापमान, सूखे की स्थिति और मिट्टी में 60 फीसदी से कम नमी शुष्क जड़ सड़न (डीआरआर) के लिए अनुकूल परिस्थितियां हैं।

आईसीआरआईएसएटी के जलवायु परिवर्तन से संबंधित उत्कृष्टता केंद्र में संचालित यह कार्य भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग की ओर से समर्थित और वित्त पोषित है। इसने जलवायु कारकों के साथ इस रोग के नजदीकी संबंध को प्रमाणित किया है। इसके परिणाम 'फ्रंटियर्स इन प्लांट साइंस' में प्रकाशित किए गए हैं।

इन वैज्ञानिकों ने इस बात की व्याख्या की है कि मैक्रोफोमिना पर्यावरण की परिस्थितियों की एक विस्तृत श्रृंखला में जीवित रहता है। यहां तक कि तापमान, मिट्टी के पीएच (पोटेंशियल ऑफ हाइड्रोजन मान) और नमी की चरम स्थिति में भी। 

उच्च तापमान और सूखे की स्थिति में चने की फसल में फूल और फली आने के चरणों के दौरान डीआरआर रोग बहुत अधिक होता है। वैज्ञानिक अब रोग का प्रतिरोध करने के क्षेत्र में विकास और बेहतर प्रबंधन रणनीतियों के लिए इस अध्ययन का उपयोग करने के तरीके की तलाश कर रहे हैं।

इसके अलावा यह टीम आणविक दृष्टिकोण से पहचाने गए रोग अनुकूल परिस्थितियों को दूर करने की भी कोशिश कर रही है। जीन एक्प्रेशन अध्ययनों के एक हालिया सफलता में वैज्ञानिकों ने कुछ चने की आशाजनक जीनों की पहचान की है, जो कि काइटिनेस और एंडोकाइटिनेस जैसे एंजाइमों के लिए एन्कोडिंग हैं। यह डीआरआर संक्रमण के खिलाफ कुछ सीमा तक सुरक्षा प्रदान कर सकता है।

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के सहयोग से आईसीआरआईएसएटी की टीम ने पौधों से संबंधित इस तरह के घातक रोगों से लड़ने के लिए निरंतर निगरानी, बेहतर पहचान तकनीक, पूर्वानुमान मॉडल का विकास और परीक्षण आदि सहित कई बहु-आयामी दृष्टिकोण भी अपनाए हैं।

Indian Post Bankikng-डाकघरों के खाते आएंगे  मूलभूत बैंकिंग प्रणाली के दायरे में

एए बी समाचार / लीविंग नो सिटीजन बिहाइंड पर बजट-उपरान्त वेबिनार का कल आयोजन किया गया। बजट में घोषणा की गई थी कि शत-प्रतिशत डाकघरों और डाकघरों के बीच संचालित होने वाले खातों को मूलभूत बैंकिंग प्रणाली के दायरे में लाया जायेगा। ग्रामीण निर्धनों, खासतौर से महिलाओं के जीवन पर इस कदम से क्या प्रभाव पड़ेगा, इस पर भी चर्चा की गई।

 

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने वेबिनार के उद्घाटन सत्र को सम्बोधित किया। “Assuring All Rural Poor Specially Women Access To Livlihood Options And Access To Financial Services (समस्त ग्रामीण निर्धनों, विशेषकर महिलाओं के लिये आजीविका विकल्पों और वित्तीय सेवाओं को सुगम बनाने की सुनिश्चितता) के तहत Any Time Anywhere Banking Services And Inter-Operable Services Through India Post (इंडिया पोस्ट के माध्यम से कभी भी, कहीं भी बैंकिंग सेवाओं और अंतर-परिचालन योग्य सेवायें) विषयक सत्र की अध्यक्षता ग्रामीण विकास और पंचायती राज मंत्री गिरिराज सिंह ने की। 

इसमें नीति आयोग और अन्य एजेंसियों के विशेषज्ञों तथा देश के विभिन्न भागों के डाकघरों की योजनाओं से जुड़े तमाम लोगों तथा हितधारकों ने हिस्सा लिया। शत-प्रतिशत मूलभूत बैंकिंग प्रणाली के साथ-साथ डाकघरों के खातों के बीच आपस में चलने वाली सेवाओं पर चर्चा की गई। 

कार्यक्रम में हिस्सा लेने वालों ने ग्रामीण विकास मंत्रालय के तत्वावधान में वित्तीय और बैंकिंग सेवायें प्रदान करने के लिये डाक नेटवर्क के उपयोग की संभावनाओं पर भी चर्चा की। नीति आयोग के विशिष्ट विशेषज्ञ श्री अजित पई ने इस बात पर जोर दिया कि डाकघर ऋण, वित्तीय साक्षरता और वित्तीय समावेश की आमूल उपलब्धि के लिये महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।

वेबिनार में हुई चर्चा से उत्पन्न नतीजों को समय पर लागू करने के लिये विभाग एक विस्तृत रोडमैप तैयार करेगा।

Cucumber Export-भारत दुनिया में खीरे का सबसे बड़ा निर्यातक बनकर उभरा

एएबी समाचार/ 23 जनवरी 2022/
भारत दुनिया में खीरे का सबसे बड़ा निर्यातक बनकर उभरा है। भारत ने अप्रैल-अक्टूबर (2020-21) के दौरान 114 मिलियन अमरीकी डालर के मूल्य के साथ 1,23,846 मीट्रिक टन ककड़ी और खीरे का निर्यात किया है।


भारत ने पिछले वित्तीय वर्ष में कृषि प्रसंस्कृत उत्पाद के निर्यात का 200 मिलियन अमरीकी डालर का आंकड़ा पार कर लिया है, इसे खीरे के अचार बनाने के तौर पर वैश्विक स्तर पर गेरकिंस या कॉर्निचन्स के रूप में जाना जाता है। 2020-21 में, भारत ने 223 मिलियन अमरीकी डालर के मूल्य के साथ 2,23,515 मीट्रिक टन ककड़ी और खीरे का निर्यात किया था।

वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के अंतर्गत वाणिज्य विभाग के निर्देशों का पालन करते हुए, कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीईडीए) ने बुनियादी ढांचे के विकास, वैश्विक बाजार में उत्पाद को बढ़ावा देने और प्रसंस्करण इकाइयोँ में खाद्य सुरक्षा प्रबंधन प्रणाली के पालन में कई पहल की हैं।

खीरे को दो श्रेणियों ककड़ी और खीरे के तहत निर्यात किया जाता है जिन्हें सिरका या एसिटिक एसिड के माध्यम से तैयार और संरक्षित किया जाता है, ककड़ी और खीरे को अनंतिम रूप से संरक्षित किया जाता है।

खीरे की खेती, प्रसंस्करण और निर्यात की शुरूआत भारत में 1990 के दशक में कर्नाटक में एक छोटे से स्तर के साथ हुई थी और बाद में इसका शुभारंभ पड़ोसी राज्यों तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में भी हुआ। विश्व की खीरा आवश्यकता का लगभग 15% उत्पादन भारत में होता है।

खीरे को वर्तमान में 20 से अधिक देशों को निर्यात किया जाता है, जिसमें प्रमुख गंतव्य उत्तरी अमेरिका, यूरोपीय देश और महासागरीय देश जैसे संयुक्त राज्य अमेरिका, फ्रांस, जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया, स्पेन, दक्षिण कोरिया, कनाडा, जापान, बेल्जियम, रूस, चीन, श्रीलंका और इजराइल हैं।

अपनी निर्यात क्षमता के अलावा, खीरा उद्योग ग्रामीण रोजगार के सृजन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। भारत में, अनुबंध खेती के तहत लगभग 90,000 छोटे और सीमांत किसानों द्वारा 65,000 एकड़ के वार्षिक उत्पादन क्षेत्र के साथ खीरे की खेती की जाती है।

प्रसंस्कृत खीरे को औद्योगिक कच्चे माल के रूप में और खाने के लिए तैयार करके जारों में थोक में निर्यात किया जाता है। थोक उत्पादन के मामले में एक उच्च प्रतिशत का अभी भी खीरा बाजार पर कब्जा है। भारत में ड्रम और रेडी-टू-ईट उपभोक्ता पैक में खीरा का उत्पादन और निर्यात करने वाली लगभग 51 प्रमुख कंपनियां हैं।

एपीडा ने प्रसंस्कृत सब्जियों के निर्यात को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है और यह बुनियादी ढांचे के विकास और संसाधित खीरे की गुणवत्ता बढ़ाने, अंतरराष्ट्रीय बाजार में उत्पादों को बढ़ावा देने और प्रसंस्करण इकाइयों में खाद्य सुरक्षा प्रबंधन प्रणालियों के कार्यान्वयन के लिए वित्तीय सहायता प्रदान कर रहा है।

औसतन, एक खीरा किसान प्रति फसल 4 मीट्रिक टन प्रति एकड़ का उत्पादन करता है और 40,000 रुपये की शुद्ध आय के साथ लगभग 80,000 रुपये कमाता है। खीरे में 90 दिन की फसल होती है और किसान वार्षिक रूप से दो फसल लेते हैं। विदेशी खरीदारों की आवश्यकता को पूरा करने के लिए अंतरराष्ट्रीय मानकों के प्रसंस्करण संयंत्र स्थापित किए गए हैं।

सभी खीरा उत्पादन और निर्यात कंपनियां या तो आईएसओ, बीआरसी, आईएफएस, एफएसएससी 22000 प्रमाणित और एचएसीसीपी प्रमाणित हैं या सभी प्रमाणपत्र रखती हैं। कई कंपनियों ने सोशल ऑडिट को अपनाया है। यह सुनिश्चित करता है कि कर्मचारियों को सभी वैधानिक लाभ दिए जाएं।










India Post Payment Bank-महज तीन साल में  ग्राहक आधार  पांच करोड़ के पार

एएबी समाचार/
इंडिया पोस्ट पेमेंट्स बैंक (आईपीपीबी) डिजिटल बैंकिंग के माध्यम से अपने वित्तीय समावेशन लक्ष्यों को हासिल करने की दिशा में प्रमुख उपलब्धि की घोषणा की है। बैंक ने तीन वर्ष के संचालन में पांच करोड़ ग्राहक आधार के स्‍तर को पार कर लिया है और वह देश में तेजी से बढ़ते हुए डिजिटल भुगतान बैंकों में शामिल हो गया है।

गौरतलब है कि प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी ने इंडिया पोस्ट पेमेंट्स बैंक (आईपीपीबी) को इसके शुभारंभ के समय देश में वित्तीय समावेशन की सबसे बड़ी पहल कहा था। यह एक ‘डिजिटल-फर्स्ट बैंक’ है, जिसे भारत सरकार के दूरसंचार मंत्रालय के तहत भारतीय डाक के व्यापक भौतिक वितरण नेटवर्क की पटरियों पर स्‍थापित किया गया है। इसने अपनी स्थापना से ही

आईपीपीबी के मुताबिक उसने लगभग 1.47 लाख डोरस्टेप बैंकिंग सेवा प्रदाताओं की मदद से 1.36 लाख डाकघरों में (इनमें से 1.20 लाख ग्रामीण डाकघरों में) डिजिटल और पेपरलेस मोड में ये पांच करोड़ खाते खोले हैं। 

इससे आईपीपीबी ने 2,80,000 डाकघर कर्मचारियों की ताकत का लाभ उठाते हुए वित्तीय रूप से जागरूक और सशक्त ग्राहक आधार बनाकर दुनिया का सबसे बड़ा डिजिटल वित्तीय साक्षरता कार्यक्रम अर्जित किया है। 

आईपीपीबी ने यह भी कहा कि उसने एनपीसीआई, आरबीआई और यूआईडीएआई की इंटरऑपरेबल पेमेंट्स एंड सेटलमेंट सिस्टम्स के माध्यम से जमीनी स्‍तर पर डि‍जिटल बैंकिंग को अपनाया है और यह 13 से अधिक भाषाओं में डिजिटल बैंकिंग सेवाएं उपलब्‍ध करा रहा है।

दिलचस्प बात यह है कि कुल खाताधारकों में से लगभग 48 प्रतिशत महिलाएं खाताधारक हैं; जबकि 52 प्रतिशत पुरुष हैं जो यह दर्शाता है कि यह बैंक महिला ग्राहकों को बैंकिंग नेटवर्क के तहत लाने पर ध्‍यान केन्द्रित कर रहा है। 

लगभग 98 प्रतिशत महिलाओं के खाते उनके घर जाकर खोले गए और 68 प्रतिशत से अधिक महिलाएं डीबीटी का लाभ उठा रही हैं। एक अन्‍य उपलब्धि यह है कि आईपीपीबी ने युवाओं को डिजिटल बैंकिंग सेवाओं का लाभ उठाने के लिए आकर्षित किया है। 41 प्रतिशत से अधिक खाताधारक 18 से 35 वर्ष के आयु वर्ग के हैं।

इस महत्‍वपूर्ण अवसर पर डाक विभाग के सचिव, श्री विनीत पांडे ने कहा कि भारतीय डाक में, हम शहरी और ग्रामीण भारत को शामिल करते हुए एक सबसे बड़े वित्तीय समावेशन नेटवर्क बनाने के लिए प्रतिबद्ध हैं। 

लागत प्रभावी, सरल, आसान और सुरक्षित डिजिटल इकोसिस्‍टम उपलब्‍ध कराने वाला और तीन वर्ष की छोटी-सी अवधि में ही पांच करोड़ ग्राहकों तक पहुंच स्‍थापि‍त करने वाला यह मॉडल इसकी सफलता का बयान करता है। हमें खुशी है कि हमने ग्रामीण महिलाओं को उनके घर पर ही बैंकिंग सेवाओं का लाभ उठाने के लिए सशक्त बनाया है।

इंडिया पोस्ट पेमेंट्स बैंक के अध्‍यक्ष एवं प्रबंध निदेशक और सीईओ श्री जे. वेंकटरामु ने कहा कि यह बैंक के लिए गर्व का पल है, क्योंकि हम कोविड-19 महामारी के दौरान भी बाधारहित बैंकिंग और जी2सी सेवाएं उपलब्‍ध कराते हुए इस उपभोक्‍ता आधार का निर्माण करते हुए मजबूती से आगे बढ़ने के लिए प्रतिबद्ध हैं। 

बैंक लोगों को उनके घर पर ही पूरी तरह डिजिटल और पेपरलेस बैंकिंग प्‍लेटफॉर्म पर सेवा प्रदान करने के लिए अपने उपभोक्‍ता अधिग्रहण को बढ़ाने में सक्षम रहा है। उत्पादों और सेवाओं के सहयोग और सह-सृजन के माध्यम से यह बैंक ग्रामीण, कम-बैंकिंग वाले और गैर-बैंकिंग नागरिकों की सेवा करने के लिए प्रतिबद्ध है।

इस दृष्टिकोण के साथ, आईपीपीबी अपने मूल विभाग, डाक विभाग की ताकत का लाभ उठाने में सक्षम रहा है और इसने पूरे देश में वित्तीय समावेशन परिदृश्य को लगातार बदला है और नया आकार प्रदान कर रहा है। 

निकट भविष्य में, हमारा प्रयास जेएएम, सहमति जैसे इंडिया स्टैक का लाभ उठाकर घर द्वार पर क्रेडिट सहित विभिन्न नागरिक-केन्द्रित वित्तीय सेवाएं प्रस्‍तुत करने वाला एकीकृत सेवा मंच बनाने का है।

इंडिया पोस्ट पेमेंट्स बैंक के बारे में कुछ जानकारी:

इंडिया पोस्ट पेमेंट्स बैंक (आईपीपीबी) की स्थापना डाक विभाग, संचार मंत्रालय के तहत की गई है। इसकी 100 प्रतिशत इक्विटी भारत सरकार के स्‍वामित्‍व में है। प्रधानमंत्री श्री नरेन्‍द्र मोदी ने 1 सितम्‍बर, 2018 को आईपीपीबी का शुभारंभ किया था। देश में आम आदमी को सबसे सुलभ, किफायती और विश्‍वसनीय बैंक बनाने के दृष्टिकोण से इस बैंक की स्‍थापना की गई थी। 

आईपीपीबी का मूल उद्देश्य गैर-बैंकिंग और कम-बैंकिंग वाले लोगों के लिए बाधाओं को दूर करना और पोस्‍टल नेटवर्क का लाभ अंतिम छोर तक पहुंचाना है। आईपीपीबी की पहुंच और इसके परिचालन मॉडल को इंडिया स्टैक- ग्राहकों के घर पर पेपरलेस, कैशलेस और उपस्थिति रहित बैंकिंग को सरल और सुरक्षित तरीके से सक्षम बनाने के दृष्टिकोण पर स्‍थापित किया गया है। 

इसके लिए एक सीबीएस-एकीकृत स्मार्टफोन और बायोमेट्रिक उपकरण का उपयोग किया जाता है। मितव्‍ययी नवाचारों का लाभ उठाते हुए और लोगों के लिए बैंकिंग को सरल बनाने पर ध्‍यान देते हुए आईपीपीबी 13 भाषाओं में उपलब्ध सहज ज्ञान युक्त इंटरफेस के माध्यम से सरल और सुविधाजनक बैंकिंग समाधान प्रदान करता है। 

आईपीपीबी कम नकदी वाली अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने और डिजिटल इंडिया के विजन में योगदान करने के लिए प्रतिबद्ध है। भारत तब ही समृद्ध होगा जब इसके प्रत्येक नागरिक को वित्तीय रूप से सुरक्षित और सशक्त बनने का समान अवसर उपलब्‍ध होगा। हमारा आदर्श वाक्य ‘प्रत्येक ग्राहक महत्वपूर्ण है; प्रत्येक लेन-देन महत्वपूर्ण है और प्रत्येक जमाराशि मूल्यवान है’ - सत्‍य है।

Forest Survey Report 2021-देश के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 24.62 प्रतिशत है जंगल
 

एएबी समाचार/ पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री श्री भूपेंद्र यादव ने भारतीय वन सर्वेक्षण (एफएसआई) द्वारा तैयार 'इंडिया स्टेट ऑफ फॉरेस्ट रिपोर्ट 2021' जारी की। एफएसआई को देश के वन और वृक्ष संसाधनों का आकलन करने का काम सौंपा गया था।

वन सर्वेक्षण के निष्कर्षों को साझा करते हुए केंद्रीय मंत्री ने बताया कि देश का कुल वन और वृक्षों से भरा क्षेत्र 80.9 मिलियन हेक्टेयर है जो
देश के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 
24.62 प्रतिशत है। वर्ष 2019 के आकलन की तुलना में देश के कुल वन और वृक्षों से भरे क्षेत्र में 2,261 वर्ग किमी की बढ़ोतरी दर्ज की गई है।

 

श्री भूपेंद्र यादव ने इस तथ्य पर प्रसन्नता व्यक्त की कि वर्ष 2021 के मौजूदा मूल्यांकन से पता चलता है कि 17 राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों का 33 प्रतिशत से अधिक भौगोलिक क्षेत्र वनों से पटा हुआ है। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में सरकार का ध्यान वनों को न केवल मात्रात्मक रूप से संरक्षित करने पर है बल्कि गुणात्मक रूप से इसे समृद्ध करने पर भी है।

वन सर्वेक्षण रिपोर्ट यानि आईएसएफआर-2021 भारत के जंगलों में वन आवरण, वृक्ष आवरण, मैंग्रोव क्षेत्र, जानवरों की बढ़ती संख्या, भारत के वनों में कार्बन स्टॉक, जंगलों में लगने वाली आग की निगरानी व्यवस्था, ​​बाघ आरक्षित क्षेत्रों में जंगल का फैलाव, एसएआर डेटा का उपयोग करके जमीन से ऊपर बायोमास के अनुमानों और जलवायु परिवर्तन के संवेदनशील जगहों (हॉटस्पॉट) के बारे में जानकारी प्रदान करता है।

 

प्रमुख निष्कर्ष

  • देश का कुल वन और वृक्षों से भरा क्षेत्र 80.9 मिलियन हेक्टेयर हैं जो देश के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का 24.62 प्रतिशत है। 2019 के आकलन की तुलना में देश के कुल वन और वृक्षों से भरे क्षेत्र में 2,261 वर्ग किमी की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। इसमें से वनावरण में 1,540 वर्ग किमी और वृक्षों से भरे क्षेत्र में 721 वर्ग किमी की वृद्धि पाई गई है।
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  • वन आवरण में सबसे ज्यादा वृद्धि खुले जंगल में देखी गई है, उसके बाद यह बहुत घने जंगल में देखी गई है। वन क्षेत्र में वृद्धि दिखाने वाले शीर्ष तीन राज्य आंध्र प्रदेश (647 वर्ग किमी), इसके बाद तेलंगाना (632 वर्ग किमी) और ओडिशा (537 वर्ग किमी) हैं।
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  • क्षेत्रफल के हिसाब से, मध्य प्रदेश में देश का सबसे बड़ा वन क्षेत्र है। इसके बाद अरुणाचल प्रदेश, छत्तीसगढ़, ओडिशा और महाराष्ट्र हैं। कुल भौगोलिक क्षेत्र के प्रतिशत के रूप में वन आवरण के मामले में, शीर्ष पांच राज्य मिजोरम (84.53%), अरुणाचल प्रदेश (79.33%), मेघालय (76.00%), मणिपुर (74.34%) और नगालैंड (73.90%) हैं।
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  • 17 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों का 33 प्रतिशत से अधिक भौगोलिक क्षेत्र वन आच्छादित है। इन राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में से पांच राज्यों/ केंद्र शासित प्रदेशों जैसे लक्षद्वीप, मिजोरम, अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह, अरुणाचल प्रदेश और मेघालय में 75 प्रतिशत से अधिक वन क्षेत्र हैं, जबकि 12 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों अर्थात् मणिपुर, नगालैंड, त्रिपुरा, गोवा, केरल, सिक्किम, उत्तराखंड, छत्तीसगढ़, दादरा एवं नगर हवेली और दमन एवं दीव,असम,ओडिशा में वन क्षेत्र 33 प्रतिशत से 75 प्रतिशत के बीच है।
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  • देश में कुल मैंग्रोव क्षेत्र 4,992 वर्ग किमी है। 2019 के पिछले आकलन की तुलना में मैंग्रोव क्षेत्र में 17 वर्ग किलोमीटर की वृद्धि पाई गई है। मैंग्रोव क्षेत्र में वृद्धि दिखाने वाले शीर्ष तीन राज्य ओडिशा (8 वर्ग किमी), इसके बाद महाराष्ट्र (4 वर्ग किमी) और कर्नाटक (3 वर्ग किमी) हैं।
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  • देश के जंगल में कुल कार्बन स्टॉक 7,204 मिलियन टन होने का अनुमान है और 2019 के अंतिम आकलन की तुलना में देश के कार्बन स्टॉक में 79.4 मिलियन टन की वृद्धि हुई है। कार्बन स्टॉक में वार्षिक वृद्धि 39.7 मिलियन टन है।

 

कार्यप्रणाली

भारत सरकार के डिजिटल भारत के दृष्टिकोण और डिजिटल डेटा सेट के एकीकरण की आवश्यकता के अनुरूप, एफएसआई ने 2011 की जनगणना के अनुसार भौगोलिक क्षेत्रों के साथ व्यापक अनुकूलता सुनिश्चित करने के लिए डिजिटल ओपन सीरीज टॉपो शीट के साथ भारतीय सर्वेक्षण द्वारा प्रदान किए गए जिला स्तर तक विभिन्न प्रशासनिक इकाइयों की हर स्तर की जानकारियों का उपयोग किया है।

मिड-रिज़ॉल्यूशन उपग्रह डेटा का उपयोग करते हुए देश के वन आवरण का द्विवार्षिक मूल्यांकन जिला, राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर वनावरण और वनावरण में बदलावों की निगरानी करने के लिए 23.5 मीटर के स्थानिक रिज़ॉल्यूशन 1:50,000 की व्याख्या के साथ भारतीय रिमोट सेंसिंग उपग्रह डेटा (रिसोर्ससैट-II) से प्राप्त एलआईएसएस-III डेटा की व्याख्या पर आधारित है।

यह जानकारी जीएचजी खोजों, जानवरों की संख्या में बढ़ोत्तरी, कार्बन स्टॉक, फॉरेस्ट रेफरेंस लेवल (एफआरएल) जैसी वैश्विक स्तर की विभिन्न खोजों, रिपोर्टों और यूएनएफसीसीसी लक्ष्यों को वनों के लिए योजना एवं उसके वैज्ञानिक प्रबंधन के लिए सीबीडी वैश्विक वन संसाधन आकलन (जीएफआरए) के तहत अंतर्राष्ट्रीय रिपोर्टिंग के लिए तथ्य प्रदान करेगी।

पूरे देश के लिए उपग्रह डेटा अक्टूबर से दिसंबर 2019 की अवधि के लिए एनआरएससी से प्राप्त किया गया था। उपग्रह डेटा का पहले विश्लेषण किया जाता है और उसके बाद बड़ी कड़ाई से उसकी जमीनी सच्चाई का भी पता लगाया जाता है। विश्लेषित डेटा की सटीकता में सुधार के लिए अन्य स्रोतों से प्राप्त जानकारी का भी उपयोग किया जाता है।

देश में वनों की स्थिति के वर्तमान मूल्यांकन में प्राप्त सटीकता का स्तर काफी अधिक है। वनावरण वर्गीकरण की सटीकता का आकलन 92.99% किया गया है। वन और गैर-वन वर्गों के बीच वर्गीकरण की सटीकता का मूल्यांकन 85% से अधिक के वर्गीकरण की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्वीकृत सटीकता के मुकाबले 95.79% किया गया है। इसमें कठिन क्यूसी और क्यूए अभ्यास भी किया गया

 

आईएसएफआर 2021 की अन्य महत्वपूर्ण विशेषताएं

वर्तमान आईएसएफआर 2021 में, एफएसआई ने भारत के टाइगर रिजर्व, कॉरिडोर और शेर संरक्षण क्षेत्र में वन आवरण के आकलन से संबंधित एक नया अध्याय शामिल किया है। इस संदर्भ में, टाइगर रिजर्व, कॉरिडोर और शेर संरक्षण क्षेत्र में वन आवरण में बदलाव पर यह दशकीय मूल्यांकन वर्षों से लागू किए गए संरक्षण उपायों और प्रबंधन के प्रभाव का आकलन करने में मदद करेगा।

इस दशकीय मूल्यांकन के लिए, प्रत्येक टाइगर रिजर्व क्षेत्र में आईएसएफआर 2011 (डेटा अवधि 2008 से 2009) और वर्तमान चक्र (आईएसएफआर 2021, डेटा अवधि 2019-2020) के बीच की अवधि के दौरान वन आवरण में परिवर्तन का विश्लेषण किया गया है।

इसमें एफएसआई की नई पहल के तहत एक नया अध्याय जोड़ा गया है जिसमें जमीन से ऊपर बायोमास' का अनुमान लगाया गया है। एफएसआई ने अंतरिक्ष अनुप्रयोग केंद्र (एसएसी), इसरो, अहमदाबाद के सहयोग से सिंथेटिक एपर्चर रडार (एसएआर) डेटा के एल-बैंड का उपयोग करते हुए अखिल भारतीय स्तर पर जमीन से ऊपर बायोमास (एजीबी) के आकलन के लिए एक विशेष अध्ययन शुरू किया। 

असम और ओडिशा राज्यों (साथ ही एजीबी मानचित्र) के परिणाम पहले आईएसएफआर 2019 में प्रस्तुत किए गए थे। पूरे देश के लिए एजीबी अनुमानों (और एजीबी मानचित्रों) के अंतरिम परिणाम आईएसएफआर 2021 में एक नए अध्याय के रूप में प्रस्तुत किए जा रहे हैं। विस्तृत रिपोर्ट अध्ययन पूरा होने के बाद प्रकाशित की जाएगी।

एफएसआई ने बिड़ला इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी एंड साइंस (बिट्स) पिलानी के गोवा कैंपस के सहयोग से 'भारतीय वनों में जलवायु परिवर्तन हॉटस्पॉट की मैपिंग' पर आधारित एक अध्ययन किया है। 

यह सहयोगात्मक अध्ययन भविष्य की तीन समय अवधियों यानी वर्ष 2030, 2050 और 2085 के लिए तापमान और वर्षा डेटा पर कंप्यूटर मॉडल-आधारित अनुमान का उपयोग करते हुएभारत में वनावरण पर जलवायु हॉटस्पॉट का मानचित्रण करने के उद्देश्य से सहयोगात्मक अध्ययन किया गया था।

रिपोर्ट में राज्य/केंद्र शासित क्षेत्र के अनुसार विभिन्न मापदंडों पर भी जानकारी शामिल है। रिपोर्ट में पहाड़ी, आदिवासी जिलों और उत्तर पूर्वी क्षेत्र में वनावरण पर विशेष विषयगत जानकारी भी अलग से दी गई है।

ऐसी उम्मीद है कि रिपोर्ट में दी गई जानकारी देश में वन और वृक्ष संसाधनों पर नीति, योजना और दीर्घकालिक प्रबंधन के लिए बहुमूल्य जानकारी प्रदान करेगी।