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MP-will-again-top-in-wheat-procurement-आत्म-निर्भर-मध्यप्रदेश-के-निर्माण-में-कृषि-क्षेत्र-की-अहम-भूमिका-मुख्यमंत्री

एएबी समाचार ।
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के मुताबिक  मध्यप्रदेश के किसानों की मेहनत रंग लाएगी और गेहूँ उपार्जन में प्रदेश पुन: देश में अव्वल होगा। उन्होंने कहा कि अन्नदाता किसानों को राज्य सरकार हरसंभव मदद कर रही है। रबी विपणन 2021-22 में किसानों की फसल को समर्थन मूल्य पर खरीदने के लिये पुख्ता इंतजाम किये जा चुके हैं, जिससे किसानों को अपनी उपज का विक्रय करने में कठिनाई का सामना न करना पड़े।

इस वर्ष भी ई-उपार्जन पोर्टल पर पंजीयन

किसानों की सहूलियत के लिये इस बार भी ई-उपार्जन पोर्टल पर पंजीयन की व्यवस्था की गई है। पोर्टल पर अभी तक 21 लाख से अधिक किसानों ने पंजीयन करवाया है। पंजीयन का कार्य प्रदेश के 3518 केन्द्रों पर किया गया है। साथ ही गिरदावरी किसान एप, कॉमन सर्विस सेंटर और कियोस्क केन्द्रों पर भी किसानों को पंजीयन की सुविधा उपलब्ध करवाई गई। उपार्जन व्यवस्थाओं में यह प्रयास भी किया गया कि कोई भी किसान पंजीयन से वंचित न रहे।

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कुल 4500 केन्द्रों पर होगी गेहूँ खरीदी

अधिकृत जानकारी के अनुसार वर्ष २०२१ के लिए प्रदेश के 4500 खरीदी केन्द्रों पर गेहूँ उपार्जन का कार्य किया जाएगा। खरीदी कार्य में स्व-सहायता समूहों, एफपीयू और एफपीसी को भी शामिल किया गया है। उन्होंने बताया कि समर्थन मूल्य पर गेहूँ की खरीदी के साथ उसके भंडारण और परिवहन की पुख्ता व्यवस्थाएँ की जा रही हैं। उपार्जन केन्द्रों पर गेहूँ खरीदी का कार्य मार्च माह से शुरू किया जाएगा। इसके लिये तय किया गया है कि इंदौर और उज्जैन में 22 मार्च से और शेष अन्य जिलों में एक अप्रैल से गेहूँ उपार्जन शुरू किया जाएगा। इस वर्ष लगभग एक करोड़ 25 लाख मीट्रिक टन गेहूँ और 20 लाख मीट्रिक टन दलहन एवं तिलहन उपार्जन का अनुमान है। उपार्जित स्कन्धों के शीघ्र परिवहन एवं भंडार की व्यवस्थाएँ भी सुनिश्चित की जा रही हैं।

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गेहूँ उपार्जन में प्रदेश का कीर्तिमान किसानों की बदौलत

मुख्यमंत्री श्री चौहान ने कहा कि मध्यप्रदेश में रबी विपणन वर्ष 2020-21 में समर्थन मूल्य पर एक करोड़ 29 लाख मीट्रिक टन गेहूँ उपार्जन का जो इतिहास रचा गया, उसके मूल में किसानों की कड़ी मेहनत है। प्रदेश के किसानों ने मध्यप्रदेश का नाम राष्ट्रीय स्तर पर गौरवान्वित किया है, जिसकी सर्वत्र प्रशंसा भी हुई। मुख्यमंत्री श्री चौहान ने कहा कि कोरोना काल में प्रदेश के इतिहास में समर्थन मूल्य पर हुई रिकार्ड खरीदी में सरकार द्वारा की गई चाक-चौबंद व्यवस्थाओं ने भी उत्प्रेरक की भूमिका निभाई।

कृषि क्षेत्र में किये गये हैं अनेक नवाचार

मुख्यमंत्री श्री चौहान ने कहा कि आत्म-निर्भर मध्यप्रदेश के निर्माण में कृषि क्षेत्र की अहम भूमिका है। कृषि क्षेत्र में आत्म-निर्भरता के लिये प्रदेश के किसानों के हित में खेती को लाभ का धंधा बनाने और किसानों की आय को दोगुना करने के लिये अनेक नवाचार किये गये हैं। राज्य सरकार लगातार प्रयास कर रही है कि कृषि का उत्पादन बढ़े, उत्पादन की लागत कम हो और किसानों को अधिक से अधिक लाभ मिले। मुख्यमंत्री श्री चौहान ने बताया कि प्राकृतिक आपदा के दौरान किसानों की फसलों को होने वाले नुकसान की पर्याप्त क्षतिपूर्ति हो सके, इसके लिये प्रावधानों में संशोधन भी किया गया है।

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खाद, बीज के साथ सिंचाई और बिजली की व्यवस्था

मुख्यमंत्री श्री चौहान ने कहा कि किसानों को समय पर खाद-बीज की उपलब्धता सुनिश्चित कराते हुए सिंचाई के लिये पानी और बिजली की व्यवस्थाएँ की गई हैं। कोरोना काल में जब सभी गतिविधियाँ प्राय: बंद हो रही थी, उस समय विभिन्न योजनाओं में ग्रामीण क्षेत्रों में व्यापक रूप से जल-संरचनाओं का निर्माण करवाया गया। इससे जहाँ एक ओर स्थानीय लोगों को कोरोना काल में रोजगार मिला, वहीं दूसरी ओर भू-जल स्तर में बढ़ोत्तरी होने से किसानों को सिंचाई के लिये पानी की सहज उपलब्धता भी सुनिश्चित हुई। प्रदेश में बड़ी एवं लघु सिंचाई योजनाओं पर भी युद्ध स्तर पर कार्य हुआ, जिसका लाभ किसानों को मिला।

मुख्यमंत्री किसान कल्याण योजना

किसानों को आर्थिक रूप से संबल प्रदान करने के लिये मुख्यमंत्री किसान कल्याण योजना भी शुरू की गई। इस योजना में अब तक 57 लाख 50 हजार से अधिक पात्र किसानों को दो-दो हजार के मान से लगभग 1150 करोड़ रूपये का भुगतान ऑनलाईन किया गया है। इसके अलावा किसानों को प्रधानमंत्री सम्मान निधि का लाभ भी प्रतिवर्ष प्रति किसान 6 हजार रूपये पूर्व से प्राप्त हो रहा है।

मुख्यमंत्री श्री चौहान ने बताया कि खाद, बीज और कीटनाशक दवाओं के नाम से किसानों के साथ छल करने वाले व्यवसायियों पर भी कड़ी कार्यवाहियाँ की गई हैं। यह सुनिश्चित किया गया है कि प्रदेश में नकली खाद, बीज और दवाओं का विक्रय न हो।

 

 

INDIA'S-FIRST-CNG-TRACTOR-LAUNCHED-ईंधन-कि-लागत-में -साल-भर-में-करेगा-एक-लाख-कि-बचत

एएबी समाचार ।
भारत में पहली बार डीजल ट्रैक्टर को सीएनजी में परिवर्तित किया गया है। केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री श्री नितिन गडकरी द्वारा इसे कल औपचारिक रूप से लॉन्च किया जाएगा। रावमट टेक्नो सॉल्यूशंस और टॉमासेटो अचीले इंडिया द्वारा संयुक्त रूप से किए गए इस रूपांतरण से किसानों को उत्पादन लागत कम करने तथा ग्रामीण भारत में रोजगार के ज़्यादा से ज़्यादा अवसर पैदा करने में मदद मिलेगी। 
केंद्रीय मंत्री श्री धर्मेंद्र प्रधान, नरेंद्र सिंह तोमर, पुरुषोत्तम रूपाला और जनरल (सेवानिवृत्त) वी.के. सिंह भी उद्घाटन समारोह में मौजूद रहेंगे। इस प्रकार से किसानों के लिए सबसे महत्वपूर्ण लाभ ईंधन की लागत पर सालाना एक लाख रुपये से अधिक की बचत करना सुलभ होगा। इसके अतिरिक्त उन्हें अपनी आजीविका में सुधार करने में भी मदद मिलेगी।

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सीएनजी में रूपांतरण के महत्वपूर्ण लाभ हैं:

 

  • यह एक स्वच्छ ईंधन है क्योंकि इसमें कार्बन और अन्य प्रदूषकों की मात्रा सबसे कम है।
  • यह बहुत किफायती है क्योंकि इसमें सीसा लगभग शून्य के बराबर है। यह गैर-संक्षारक, गाढ़ा और कम प्रदूषण फैलाने वाला है जो इंजन की जीवन क्षमता बढ़ाने में मदद करता है और इसके लिए नियमित रखरखाव की कम आवश्यकता होती है।
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  • यह बेहद सस्ता है क्योंकि सीएनजी की कीमतें पेट्रोल की कीमतों में उतार-चढ़ाव की तुलना में कहीं अधिक सुसंगत हैं। डीजल तथा पेट्रोल चालित वाहनों की तुलना में सीएनजी वाहनों का औसत माइलेज भी बेहतर है। यह बहुत सुरक्षित है क्योंकि सीएनजी वाहन सीलबंद टैंक के साथ आते हैं, जो ईंधन भरने या स्पिल की स्थिति में विस्फोट की संभावना को न्यूनतम करता है।
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  • यह भविष्य को बेहतर बनाएगा क्योंकि पूरी दुनिया में लगभग 1 करोड़ 20 लाख वाहन वर्तमान में प्राकृतिक गैस द्वारा ही संचालित होते हैं। दिन प्रतिदिन अधिक से अधिक कंपनियां और नगर पालिकाएं सीएनजी को बढ़ावा देने के आंदोलन में शामिल हो रही हैं।
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  • यह कचरे से धन (Wast To Wealth) कार्यक्रम का ही एक हिस्सा है क्योंकि फ़सल की पराली का उपयोग बायो-सीएनजी के उत्पादन के लिए कच्चे माल के रूप में किया जा सकता है जो किसानों को उनके अपने इलाके में बायो-सीएनजी उत्पादन इकाइयों को बेचकर पैसा कमाने में मदद करेगा।
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ट्रैक्टर को सीएनजी में परिवर्तित करने के  विशिष्ट लाभ:

  • परीक्षण रिपोर्ट यह बताती है कि डीजल से चलने वाले इंजन की तुलना में रेट्रोफिटेड ट्रैक्टर उससे अधिक / बराबर शक्ति का उत्पादन करता है। इससे डीजल की तुलना में कुल कार्बन उत्सर्जन में 70% की कमी आई है।
  • यह किसानों को ईंधन की लागत पर 50% तक की बचत करने में मदद करेगा क्योंकि वर्तमान में डीजल की कीमत 77.43 रुपये प्रति लीटर हैं जबकि सीएनजी केवल 42 रुपये प्रति किलोग्राम हैं।

Kisan-Credit-Card-किसानों-को-बिना-गारंटी-लोन-हासिल-करने-का-आसान-तरीका

एएबी समाचार ।
Kisan Credit Card: किसान क्रेडिट कार्ड (KCC) का छोटे किसानों के लिए फायदे की योजना है. इसके जरिए किसानों को 1.6 लाख रुपये का लोन बिना गारंटी के दिया जा रहा है.इस सीमा से अधिक ऋण लेने के लिए अतिरिक्त गारंटी देनी होती है । वहीं 3 साल में किसान इसके जरिए 5 लाख रुपये तक का लोन ले सकते हैं.
 इस कार्ड में ब्याज दर महज  4 फीसदी सालाना है. लेकिन इसके लिए पीएम किसान में आपका खाता खुला होना जरूरी है. सरकार आगे करीब 2.5 करोड़ किसानों को किसान क्रेडिट कार्ड इश्यू करने जा रही है. इस योजना का लाभ लेने के  इच्छुक किसानों को  इसके बारे में हर जरूरी जानकारी रखनी जरूरी है.

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Kisan Credit Card: किसान क्रेडिट कार्ड पर क्यों मिलता है कम ब्याज ..?

 
किसान क्रेडिट कार्ड के जरिए किसान 5 साल में 3 लाख रुपये तक का लोन लघु अवधि का ऋण ले सकते हैं. वैसे तो 9 फीसदी की दर पर कर्ज  मिलता है, लेकिन सरकार इसपर 2 फीसदी की सब्सिडी देती है. इस लिहाज से यह 7 फीसदी हुआ. वहीं अगर किसान इस कर्ज समय पर लौटा देता है तो उसे 3 फीसदी की अतिरिक्त  छूट मिल जाती है. यानी इस शर्त पर उसको कर्ज  पर महज 4 फीसदी ब्याज देना होता है.

Kisan Credit Card: 5 साल कि होती है  किसान क्रेडिट कार्ड कि वैधता 


किसान क्रेडिट कार्ड की वैधता  5 साल की है. 1.6 लाख रुपये तक का कर्ज  अब बिना गारंटी मिल रहा है. इसके पहले यह सीमा 1 लाख रुपये थी. कर्ज कि राशि एक लाख साठ हजार से अधिक होने पर अतिरिक्त गारंटी (collateral security )  देनी होती है । सभी केसीसी लोन पर अधिसूचित फसल /अधिसूचित क्षेत्र, फसल बीमा के अंतर्गत लिए  जाते हैं.

Kisan Credit Card: किसान कार्ड पाने के लिए पीएम किसान में खाता होना जरूरी
किसान क्रेडिट कार्ड के लिए  आवेदन के लिए पीएम किसान सम्मान निधि में खाता  होना जरूरी है. सिर्फ वही ग्राहक सरकार की इस योजना का फायदा ले सकते हैं.

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Kisan Credit Card: आवेदन का तरीका

इसके लिए किसान को सबसे पहले अधिकारिक वेब  साइट पर जाना होगा.
यहां किसान को क्रेडिट कार्ड का फॉर्म डाउनलोड करना होता है . इस फॉर्म में किसान को अपनी भूमि के दस्तावेज, फसल की डिटेल के साथ भरना होती है .

 यह जानकारी भी देनी होगी कि आवेदक किसान ने किसी अन्य बैंक या शाखा से कोई और किसान क्रेडिट कार्ड तो नहीं बनवाया है.  आवेदन भरकर जमा करें, जिसके बाद संबंधित बैंक से किसान क्रेडिट कार्ड आपको मिल जाएगा.

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 Kisan Credit Card: इन दस्तावेजों कि होती है जरूरत 

पहचान के लिए: वोटर ID card/ PAN कार्ड/ पासपोर्ट/आधार कार्ड/ ड्राइविंग लाइसेंस आदि. पता कि पुष्टि के लिए : वोटर ID card / पासपोर्ट/आधार कार्ड/ड्राइविंग लाइसेंस आदि.
 

Kisan Credit Card: कहां से मिल सकता है यह कार्ड

KCC किसी भी को-ऑपरेटिव बैंक, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक(RRB) के अलावा SBI, BOI और IDBI बैंक से भी यह कार्ड से हासिल किया जा सकता है. नेशनल पेमेंट्स कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया(NPCI) रुपे KCC जारी करता है.

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एएबी समाचार ।
केसर के राष्ट्रीय मिशन का मानना है कि केसर का कटोरा जो अभी तक कश्मीर तक ही सीमित था अब उसका जल्द ही भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र तक विस्तार हो सकता है। केसर के बीजों से निकले पौधे कश्मीर से सिक्किम ले जाए गए और उन्हें वहां रोपा गया। ये पौधे पूर्वोत्तर राज्य के दक्षिण भाग में स्थित यांगयांग में फल-फूल रहे हैं।

मिशन की मुताबिक केसर का उत्पादन लंबे समय से केन्द्र शासित प्रदेश जम्मू एवं कश्मीर में एक सीमित भौगोलिक क्षेत्र तक ही सीमित रहा है। भारत में पंपोर क्षेत्र को आमतौर पर कश्मीर के केसर के कटोरे के रूप में जाना जाता है। इसका केसर के उत्पादन में मुख्य योगदान है। इसके बाद बडगाम, श्रीनगर और किश्तवाड़ जिलों का स्थान हैं । 

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 केसर पारंपरिक रूप से प्रसिद्ध कश्मीरी व्यंजनों के साथ जुड़ा हुआ है। इसके औषधीय गुणों को कश्मीर की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा माना जाता था। क्योंकि केसर की खेती कश्मीर के कुछ विशिष्ट क्षेत्रों तक सीमित रही इसलिए इसका उत्पादन भी सीमित ही रहा। हालांकि नेशनल मिशन ऑन केसर ने इसकी खेती को बेहतर बनाने के लिए कई उपायों पर ध्यान केंद्रित किया, लेकिन ये उपाय अभी तक विशिष्ट क्षेत्रों तक ही सीमित थे।

 नॉर्थ ईस्ट सेंटर फॉर टेक्नोलॉजी एप्लिकेशन एंड रीच (एनईसीटीएआर), विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग, भारत सरकार के तहत एक स्वायत्त निकाय है। इसने गुणवत्ता और उच्चतर प्रमात्रा के साथ, भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र में केसर उगाने की व्यवहार्यता का पता लगाने के लिए एक पायलट परियोजना में मदद की है।

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  सिक्किम सेंट्रल यूनिवर्सिटी के बॉटनी और हॉर्टिकल्चर डिपार्टमेंट ने सिक्किम के यांगयांग की मिट्टी और उसके वास्तविक पीएच स्थितियों को समझने के लिए परीक्षण किए । इसने पाया कि यहां की मिट्टी कश्मीर के केसर उगाने वाले स्थानों के समान ही है।
 
विभाग ने कश्मीर से केसर के बीज/कॉर्म खरीदे और इन्हें यांगयांग लाया गया एक केसर उत्पादक को नियोजित किया गया और उसे इस विश्वविद्यालय के शिक्षकों के साथ पूरी उत्पादन प्रक्रिया की देखभाल के लिए रखा गया। सितंबर और अक्टूबर के दौरान कॉर्म की सिंचाई की गई, जिससे समय पर कॉर्म अंकुरित हुआ और इस पर बहुत अच्छे फूल आए। पंपोर (कश्मीर) और यांगयांग (सिक्किम) के बीच जलवायु और भौगोलिक परिस्थितियां समान होने से केसर की नमूना खेती सफल हुई।
 
इस परियोजना में फसल कटाई के बाद के प्रबंधन और मूल्य संवर्धन पर भी ध्यान केंद्रित किया गया ताकि केसर की गुणवत्तायुक्त सुखाई हो और कटाई के बाद अच्छी केसर की प्राप्ति हो तभी इसके उत्पादन में सुधार होगा। इसके अलावा, मृदा परीक्षण, गुणवत्ता, प्रमात्रा, और संभावित मूल्यवर्धन सहित सभी मानकों के विस्तृत विश्लेषण किए गए। इस परियोजना के तत्काल परिणाम और एक्सट्रपलेशन का सूक्ष्म खाद्य उद्यमों के साथ-साथ पूर्वोत्तरे क्षेत्र के अन्य भागों में भी उपयोग करने की योजना है ।
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एएबी समाचार ।
प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी की अध्‍यक्षता में आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडल समिति ने जूट उद्योग को बढ़ावा देने के मकसद से खाद्यान्‍नों की शत-प्रतिशत  और  चीनी की 20 फीसदी पैकिंग  अनिवार्य रूप से विविध प्रकार के जूट बोरों में  किए जाने को मंजूरी दी है।

 सरकार ने जूट पैकिंग सामग्री अधिनियम, 1987 के तहत अनिवार्य रूप से पैकिंग किए जाने के इस मानक को विस्‍तारित करते हुए कहा है कि इस कदम से चीनी को विविध प्रकार के जूट बोरों में पैक किए जाने के निर्णय से जूट उद्योग को काफी बल मिलेगा ।


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 इसके अलावा, यह भी अनिवार्य किया गया है कि खाद्यान्‍नों की पैकिंग के लिए शुरू में 10 प्रतिशत जूट बोरों की खरीद जीईएम पोर्टल पर रिवर्स ऑक्शन के जरिए होगी। इससे भी धीरे-धीरे इनकी कीमतों में वृद्धि होगी। अगर जूट पैकिंग सामग्री की आपूर्ति में कोई कमी अथवा व्‍यवधान आता है अथवा किसी तरह की कोई प्रतिकूल स्थिति पैदा होती है तो कपड़ा मंत्रालय अन्‍य संबद्ध मंत्रालयों के साथ मिलकर उपबंधों में छूट दे सकता है और खाद्यान्‍नों की अधिकतम 30 प्रतिशत पैकिंग किए जाने का निर्णय ले सकता है।

 जूट क्षेत्र पर लगभग 3.7 लाख श्रमिक और कई लाख किसान परिवारों की आजीविका निर्भर है जिसे देखते हुए सरकार इस क्षेत्र के विकास के लिए काफी संगठित प्रयास कर रही है। जिसमें कच्‍चे जूट के उत्‍पादन और मात्रा को बढ़ाना, जूट सेक्‍टर का विविधीकरण करना और जूट उत्‍पादों की सतत मांग को बढ़ावा देना आदि शामिल है।      


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 देश की पूर्वी और पूर्वोत्तर राज्यों को होगा विशेष फायदा
 

सरकार की इस अनुमति से देश के पूर्वी और पूर्वोत्तर खासकर पश्चिम बंगाल, बिहार, ओडिशा, असम, आंध्र प्रदेश, मेघालय और त्रिपुरा के किसानों तथा श्रमिकों को लाभ मिलेगा। जूट सामग्री (पैकिंग सामग्री में अनिवार्यत: इस्‍तेमाल,1987, जेपीएम अधिनियम) के तहत कुछ विशेष सामग्रियों की पैकिंग के लिए जूट के अनिवार्य इस्‍तेमाल की बात कही गई है ।

 यह इस क्षेत्र में कार्यरत लोगों के कल्‍याण के लिए किया गया है और मौजूदा प्रस्‍ताव में पैकिंग के जो मानक तय किए गए हैं उनसे भी देश में कच्‍चे जूट के घरेलू इस्‍तेमाल और जूट पैकिंग सामग्री को बढ़ावा मिलेगा। इससे देश को आत्‍मनिर्भर भारत की दिशा में ले जाने में मदद मिलेगी।

 जूट उद्योग मुख्‍यत: सरकारी क्षेत्र पर निर्भर है और प्रतिवर्ष खाद्यान्‍नों की पैकिंग के लिए सरकार 7500 करोड़ रुपये से अधिक कीमत के जूट बोरों की खरीद करती है। यह जूट क्षेत्र की मांग को जारी रखने और इस क्षेत्र में कार्यरत श्रमिकों और किसानों की आजीविका को सहारा देने की दिशा में एक कदम है।


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 जूट क्षेत्र को दी गई अन्‍य प्रकार की सहायता:

 
 सरकार ने कच्‍चे जूट की उत्‍पादकता और गुणवत्‍ता में सुधार लाने के लिए एक विशेष कार्यक्रम जूट आईसीएआरई को डिजाइन किया है । इसके तहत सरकार विभिन्‍न प्रकार की कृषि पद्धतियों को उपलब्‍ध कराकर दो लाख जूट किसानों की मदद कर रही है । 

जिसमें बीजों को जमीन में पंक्तियों में बुवाई, व्‍हील-होइंग और नेल-वीडर्स का इस्‍तेमाल करके खरपतवार का प्रबंधन करना और गुणवत्‍ता युक्‍त प्रमाणित बीजों का वितरण करना तथा सूक्ष्‍म जीवों की मदद से कच्‍चे जूट को सड़ाने की प्रक्रिया शामिल है ।  सरकार के इन मध्‍यवर्ती प्रयासों से कच्‍चे जूट की गुणवत्ता और उत्‍पादन में काफी इजाफा हुआ है और जूट किसानों की आमदनी बढ़कर 10,000 रुपये प्रति हेक्‍टेयर हो गई है।

 हाल ही में भारत जूट निगम ने वाणिज्यिक आधार पर 10,000 क्विंटल प्रमाणित बीजों के वितरण के लिए राष्ट्रीय बीज निगम के साथ समझौता ज्ञापन पर हस्‍ताक्षर किए हैं । तकनीकी उन्‍नयन और प्रमाणित बीजों के वितरण से जूट फसलों की गुणवत्ता और उत्‍पादकता में बढ़ोतरी होगी और इससे किसानों की आमदनी में वृद्धि होगी।

 जूट सेक्‍टर के विविधीकरण को बढ़ावा देने के मद्देनजर राष्‍ट्रीय जूट बोर्ड ने राष्‍ट्रीय डिजाइन संस्‍थान के साथ एक समझौता किया है और इसी के अनुरूप गांधी नगर में एक जूट डिजाइन प्रकोष्‍ठ खोला गया है। इसके अलावा, विभिन्‍न राज्‍य सरकारों खासकर पूर्वोत्तर क्षेत्र में जूट जियो टेक्‍सटाइल्‍स और एग्रो टेक्‍सटाइल्‍स को बढ़ावा दिया गया है। इसमें सड़क परिवहन और जल संसाधन मंत्रालय की भी सहभागिता है। 

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 जूट सेक्‍टर में मांग को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने बांग्‍लादेश और नेपाल से जूट वस्‍तुओं के आयात पर एंटी-डंपिंग ड्यूटी लगाई है और यह 5 जनवरी, 2017 से प्रभावी है। जूट क्षेत्र में पारदर्शिता को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने दिसम्‍बर, 2016 में जूट स्‍मार्ट ई- कार्यक्रम की पहल की है जिसमें बी-टी विल किस्‍म के टाट के बोरों की खरीद के लिए सरकारी एजेंसियों ने एक समन्वित प्‍लेटफॉर्म उपलब्‍ध कराया है।

 इसके अलावा, भारत जूट निगम न्‍यूनतम समर्थन मूल्‍य और वाणिज्यिक अभियानों के तहत जूट की ऑनलाइन खरीद के लिए जूट किसानों को 100 प्रतिशत धनराशि हस्‍तांतरित कर रहा है । 

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